Hindi, asked by rinkle1989, 1 year ago

Ek phool ki chah ...answers for yogyata vistar

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Answered by Shaizakincsem
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उद‍वेिलत कर अशु – रािशयाँ , हदय – िचताएँ धधकाकर , महा महामारी पचंड हो फै ल रही थी इधर-उधर। कीण – कंठ मृतवतसाओ का करण रदन दुदारत िनतांत , भरे हए था िनज कृश रव मे हाहाकार अपार अशांत। –किव महामारी की भयंकरता का िचतण करता हआ कहता है िक चारो ओर एक भयंकर महामारी फै ल गई थी। उसके कारण पीिडत लोगो की आँखो मे आँसुओ की झिड़याँ उमड़ आई थी। उनके हदय िचताओ की भाँित धधक उठे थे। सब लोग दुख के मारे बेचैन थे। अपने बचो को मॄत देखकर माताओ के कंठ से अतयंत दुबरल सवर मे करण रदन िनकल रहा था। वातावरण बहत हदय िवदारक था। सब ओर अतयिधक वाकुल कर देने वाला हाहाकार मचा हआ था। माताएँ दुबरल सवर मे रदन मचा रही थी।

बहत रोकता था सुिखया को , ‘ ’न जा खेलने को बाहर , नही खेलना रकता उसका नही ठहरती वह पल भर । मेरा हदय काँप उठता था , बाहर गई िनहार उसे ; यही मनाता था िक बचा लूँ िकसी भाँित इस बार उसे। –सुिखया का िपता कहता है मै अपनी बेटी सुिखया को बाहर जाकर खेलने से मना करता था। मै बार- – ‘बार कहता था बेटी , बाहर खेलने ’मत जा। परंतु वह बहत चंचल और हठीली थी। उसका खेलना नही रकता था। वह पल भर के िलए भी घर मे नही रकती थी। मै उसकी इस चंचलता को देखकर भयभीत हो उठता था। मेरा िदल काँप उठता था। मै मन मे हमेशा यही कामना करता था िक िकसी तरह अपनी बेटी सुिखया को महामारी की चपेट मे आने से बचा लूँ।

भीतर जो डर था िछपाए , हाय! वही बाहर आया। एक िदवस सुिखया के तनु को –ताप तप उसने पाया। जवर मे िवहवल हो बोली वह , कया जानूँ िकस दर से दर , मुझको देवी के पसाद का एक फू ल ही दो लाकर। सुिखया का िपता कहता है - अफ़सोस ! मेरे मन मे यही डर था िक कही मेरी िबिटया सुिखया को यह महामारी न लग जाए। मई इसीसे डर रहा था। वह डर आिखकार सच हो गया। एक िदन मैने देखा िक सुिखया का शरीर बीमीरी के कारण जल रहा है। वह बुखार से पीिड़त होकर और न जाने िकस अनजाने भय से भयभीत –होकर मुझसे कहने लगी िपताजी ! मुझे माँ भगवती के मंिदर के पसाद का एक फू ल लाकर दो।

कमश: कंठ कीण हो आया , िशिथल हए अवयव सारे , बैठा था नव-नव उपाय की िचता मे मै मनमारे। जान सका न पभात सजग से हई अलस कब दोपहरी , –सवणर घनो मे कब रिव डूबा , कब आई संधया गहरी। सुिखया का िपता महामारी से गसत सुिखया की बीमारी बढ़ने का वणरन करता हआ कहता िक धीरे-धीरे महामारी का पभाव बढ़ने लगा। सुिखया का गला घुटने लगा। आवाज़ मंद होने लगी। शरीर के सारे अंग ढीले पड़ने लगे। मै िचता मे डूबा हआ िनराश मन से उसे ठीक करने के नए-नए उपाय सोचने लगा। इस िचता मे मै इतना डूब गया िक मुझे पता ही नही चल सका िक कब पात:काल की हलचल समाप हई और आलसय भरी दोपहरी आ गई। कब सूरज सुनहरे बादलो मे डूब गया और कब गहरी साँझ हो गई।
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