एक बुद्धिमता दिमाग की और एक बुद्धिमता दिल की- विषय पर निबन्ध
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दिल और दिमाग भले ही शरीर के दो अलग अलग स्थान पर रहते हो। मगर दिल और दिमाग का विवेक हमारे बहुत काम आता है। दिल और दिमाग एक दूसरे के पूरक हैं। दिल को हम दिमाग से अलग करके कुछ सोच ही नहीं सकते हैं।
दूसरे शब्दों में,दिल न केवल मस्तिष्क के अनुरूप है, बल्कि मस्तिष्क दिल से प्रतिक्रिया देता है। तनावपूर्ण या नकारात्मक भावनाओं के दौरान मस्तिष्क में दिल का इनपुट भी मस्तिष्क की भावनात्मक प्रक्रियाओं पर गहरा असर डालता है-वास्तव में तनाव के भावनात्मक अनुभव को मजबूत करने के लिए सेवा प्रदान करता है दिल।
दिल और दिमाग की जंग में दिमाग ही जीत जाता है।यदि आप मेरे जैसे हैं, तो संभवतः आपको अपने जीवन में निर्णय लेने के लिए सभी प्रकार की सलाह मिल गई है-- " आप अपने दिल को सुनो।"
अपने दिमाग का प्रयोग तर्कसंगत निर्णय लेने में करें। विवादित बयानों के लिए दिमाग की जरूरत होती है। वहां दिल के निर्णय की कोई महत्व नहीं रहती है।
इसके अलावा आपके जीवन से जुड़े किसी भी फैसले के लिए आपको अपने दिल और दिमाग दोनों से निर्णय लेना चाहिए।
याद रखें दिल के निर्णय को दिमाग पर और दिमाग के निर्णय को दिल पर हावी नहीं होने देना है। फैसले ऐसे लिजिए जिससे की आपको कोई तकलीफ़ न हो।
पता है हम सभी जीवों से अलग क्यों हैं? आखिर क्यों हम प्रगति कर रहे ? आखिर क्या कारण है , जिससे हम प्रगतिशील बनते जा रहे हैं? इन सभी प्रश्नों का उत्तर केवल एक ही है , और वह है कि मनुष्य का दिमाग । क्योंकि हम सभी जानते हैं दिल तो सभी जीवों के पास होता है किंतु दिमाग यानि विवेक हमारे पास विरासत के रूप में मिलती चली आ रही है।
ऐसा बिल्कुल नही है कि बगैर दिमाग के जीवन यापन करना संभव न हो । आपको ऐसे कई जीवों के उदाहरण मिलेंगे जो सदियों से जीवन यापन तो कर ही रहे हैं तथापि उनका विकास भी हुआ है। अतः यह कहने में मुझे कोइ अतिश्योक्ति नही होगी कि दिमाग और दिल जीवन के दो अलग -अलग पहलू हैं। दोनों के अपने - अपने मायने हैं।
अब बात करें निबंद के मुख्य वाक्य " एक विवेक दिल का होता है " । ये वाक्य कुछ अजीब -सा लग रहा है न ? किन्तु ये सर्वथा सत्य है । इसे समझने हेतु मुझे कबीर दास के वो दोहे को अवश्य अंकित करना चाहिए।
"पोथी पढ़ी -पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोइ ।
ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ै सो पंडित होए ।। "
इस दोहे यह स्पष्ट है कि प्रेम यानि दिल द्वारा महसुस की गयी मधुर संबंध ज्ञान के पराकाष्ठा के अधिक सर्वोपरि है। इसिलए तो कबीर दास जी ने कहा चाहे अनेक पुस्तकों का अध्ययन क्यों न कर लो लेकिन पंडित (संपूर्ण ज्ञानी) नही बन पाओगे जब तक प्रेम को अच्छी तरह समझ न लो। वैसे भी आपने अनेक प्रेम प्रसंग फ़िल्म देखे होंगे। इसमें आपने ये तो अवश्य देखा होगा प्रेम का हारा व्यक्ति दिमाग से भी पंगु हो जाता है । इससे यह तो स्पष्ठ है कि दिल का अपना एक विवेक है जिससे वह कभी - कभी दिमाग पर हावी हो जाती है।
अब दूसरा वाक्य " दिमाग का अपना विवेक है " इस वाक्य को समझने या समझाने की तनिक भी आवश्यकता नही है। यह सभी जानते है कि उनका मानस पटल पर जो भी वजूद है उनके दिमाग के विवेक के कारण ही तो है। विवेकी मानव सर्वथा अव्वल होते हैं वे अपने ज्ञान के बल पर जग जीत सकते हैं । दिमाग के प्रबल उपयोगकर्ता तो अपने दिल पर भी धाक जमा लेते हैं । यह कहने में तनिक अतिशयोक्ति नही होगी की दिमाग दिल से कुछ मायनो में बेहतर है।
इन सभी चीजों से परे जिन्दगी है । यह न तो केवल दिमाग से जिया जा सकता है न ही दिल से । जिंदगी जीने के लिए तो दिल और दिमाग का समन्वय होना अत्यंत आवश्यक है। दिल हमें रिश्ते मजबूत करने का गुर सिखाता है तो दिमाग रिश्ते बनाये रखने के लिए अन्योन्य सुविधा प्रदान करता है।
अतः एक विवेक दिल का होता है तो एक विवेक दिमाग का ।