एक फूल की चाह कविता में फूल किस सामाजिक बुराई का वर्णन किया गया है समजेएएन
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एक फूल की चाह कविता में छुआ-छूत की भावना के बारे में बताया है।
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यह कविता समाज में व्याप्त छुआछूत की सामाजिक बुराई का चित्रण करती है| इसमें बताया गया है कि उच्च जाति के कुलीन लोग, निम्न जाति के लोगों को अछूत समझकर उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं| उनका शोषण करते हैं इसलिए कविता में सुखिया के पिता का मंदिर में प्रवेश करना इतना बड़ा अक्षम्य अपराध बन जाता है कि जो भक्त भगवान की आराधना कर रहे थे , उनका ध्यान वहाँ से हटकर छुआछूत की तरफ चला जाता है|
इस कविता में कवि ने व्यक्त भी किया है कि –
“ ऐ, क्या मेरा कलुष बड़ा
देवी की गरिमा से भी
किस बात में हूँ मैं आगे
माता की महिमा के भी? ”
छुआछूत के कारण ही उसे न्यायालय में उसे सज़ा सुनाई जाती है | समाज की इस विकृति केबारे में कवि ने कहा है-
“ मैंने स्वीकृत किया दंड वह शीश झुकाकर चुप ही रह उस असीम अभियोग दोष का क्या उत्तर देता,क्या कह ?”
हमारे अनुसार ऐसा करना सरासर गलत है क्योंकि हम सभी को ईश्वर ने बनाया है व उसके लिए सभी व्यक्ति समान हैं| ईश्वर की भक्ति का दावा करने वाले व्यक्ति ही यदि ईश्वर की भावना से भली-भांति परिचित नहीं हैं तो वह उनके सच्चे भक्त नहीं हैं बल्कि ढोंगी हैं| सभी प्राणियों को ईश्वर की रचना मानकर समान रूप से प्रेम करना चाहिए | यही मानवता है|
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