एक फटी पुस्तक की आत्मकथा इन हिंदी
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फटी पुस्तक की आत्मकथा / Fati Pustak ki Atmakatha in Hindi
मैं एक फटी हुई पुस्तक हूं जो कभी बिल्कुल नई हुआ करती थी। जब मैं नई थी तब मुझे मेरा मालिक अच्छे से रखता था और मुझे पढ़ता भी था। मगर ज्यों-ज्यों मैं बड़ी होने लगी मेरे मालिक का ध्यान मुझमें से हटता गया और धीरे धीरे वह मेरी कदर करना छोड़ता गया।
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