एक गाँव में एक धोबी रहता था. उसके पास एक गधा और एक घोड़ा था. धोबी जब भी नदी पर कपड़े धोने जाता, तो गठरी में कपड़े बांधकर गधे की पीठ पर लाद देता. घोड़े का इस्तेमाल वह सवारी करने के लिए किया करता था.
रोज़ की तरह एक दिन धोबी कपड़े धोने नदी की ओर जा रहा था. कपड़े की गठरी गधे की पीठ पर लदी हुई थी. उस दिन कपड़े अधिक होने के कारण गठरी बहुत भारी था. जिसके बोझ से कुछ ही दूर चलकर गधा थक गया.
उस दिन साथ में घोड़ा भी था. गधे ने मदद मांगते हुए घोड़े से कहा, “घोड़े भाई! ज़रा मेरी मदद कर दो. कपड़े की गठरी बहुत भारी हैं. तुम भी थोड़ा बोझ उठा लो. इस तरह बोझ आधा-आधा बंट जायेगा.”
घोड़ा घमंडी था. वह बोला, “ये क्या कह रहे हो तुम? मैं घोड़ा हूँ और तुम गधे. मेरा काम सवारी ले जाना है और तुम्हारा काम बोझ ढोना. इसलिए तुम अपना काम ख़ुद करो. उसे मेरे सिर पर मत डालो.”
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घोड़े के दो टूक जवाब से गधा उदास हो गया. पर क्या करता? बोझ उठाये चलता रहा. लेकिन कुछ दूर और चलने के बाद उससे आगे चला न गया. वह निढाल होकर गिर पड़ा.
धोबी ने जब गधे को हालत देखी, तो उसे उस पर दया आ गई. उसे लगा कि इतना सारा बोझ उसे गधे पर नहीं लादना चाहिए था. उसने गधे को उठाकर खड़ा किया और कपड़ों की गठरी घोड़े की पीठ पर रख दी.
अब गधा बिना किसी बोझ के चल रहा था और घोड़ा पूरा बोझ उठाये चल रहा था. पूरे रास्ते घोड़ा सोचता रहा, ‘काश मैंने गधे की बात मान ली होती और आधा बोझ बांट लिया होता. तो अभी मैं पूरा बोझ उठाये अकेला नहीं चल रहा होता.’
उस दिन घोड़े ने तय किया कि हमेशा अपने साथियों की और ज़रुरतमंदों की मदद करेगा.
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