एक ही वरदान दो तुम कविता की व्याख्या
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जीवन एक संग्राम है जिसमें हार और जीत दोनों होती हैं। इस कारण कवि को किसी प्रकार का डर नहीं है। जीवन संघर्ष करते हुए जीवन में चाहे विजय मिले, चाहे पराजय मिले, दोनों एक ही बात के दो रूप हैं। इसीलिए कवि को कोई वरदान माँगने की जरूरत नहीं।
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