एक करुण रस से भरा संवाद...please share this topic with me ...I really need your help
Answers
भरतमुनि 'नाट्यशास्त्र' के प्रसिद्ध प्रणेता हुए हैं। इनका समय विवादास्पद हैं। इन्हें 500 ई.पू. 100 ई सन् के बीच किसी समय का माना जाता है। भरत बड़े प्रतिभाशाली थे। इतना स्पष्ट है कि भरतमुनि रचित नाट्यशास्त्र से परिचय था। इनका 'नाट्यशास्त्र' भारतीय नाट्य और काव्यशास्त्र का आदिग्रन्थ है। इसमें नाट्यशास्त्र, संगीत-शास्त्र, छंदशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है। 'भारतीय नाट्यशास्त्र' अपने विषय का आधारभूत ग्रन्थ माना जाता है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था, देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफ़ी क्षेपक बताते हैं।[1]
नाटयं भिन्नरूचेर्जनस्य बहुधाप्येकं समाराधन्म' अर्थात् - जगत् में लोगों की रुचि भिन्न भिन्न होती है, ऐसे सभी लोगों को प्रसन्न करने वाला यदि कुछ है तो वह अधिकांशत: 'नाट्य' है। ऋग्वेद में सरमा पणी, यम यमी, अगस्त्य लोपामुद्रा, पुरुरवा उर्वशी, आदि अनेक संवाद सूक्तों में नाटकों के बीज हों, यह सम्भव है। भरत नाट्य शास्त्र ऐसी दंत कथा है कि त्रेता युग में लोग दु:ख, आपत्ति से पीड़ित हो रहे थे। इन्द्र की प्रार्थना पर ब्रह्मा ने चारों वर्णों और विशेष रूप से शूद्रों के मनोरंजन और अलौकिक आनंद के लिए 'नाट्यवेद' नामक पांचवें वेद का निर्माण किया। इस वेद का निर्माण ऋग्वेद में से पाठ्य वस्तु, सामवेद से गान, यजुर्वेद में से अभिनय और अथर्ववेद में से रस लेकर किया गया। भरतमुनि को उसका प्रयोग करने का कार्य सौंपा गया। भरतमुनि ने 'नाट्य शास्त्र' की रचना की और अपने पुत्रों को पढ़ाया। इस दंत कथा से इतना तो अवश्य फलित होता है कि भरतमुनि संस्कृत नाट्यशास्त्र के आद्य प्रवर्तक हैं।