एक खिलारी एक पढाकू संवाद
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Ek padaku sirf padhai hi karate rehta hai
एक खिलाड़ी और पढ़ाकू का संवाद :
(खिलाडी सनी और पढ़ाकू वेद )
(वेद अपने कमरे में पढ़ रहा है ,सनी का प्रवेश )
सनी -क्या यार वेद !जब देखो किताबों में अटके रहते हो I ज्यादा देर किताबों से चिपके रहोगे तो कुछ भी समझ में नहीं आएगा
चलो खेलते हैं 3 तो बज ही चुके है I कुछ बाहर से भी खिलाडी आये हैं I
वेद : तीन ही बजे हैं कम से कम पांच तो बजने दो और दूसरी बात परीक्षा सर पर है ,नहीं पढेंगे तो अच्छे अंक कहाँ से आयंगे I मेरे दादा जी कहते हैं I
पढोगे ,लिखोगे बनोगे नवाब
खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब
सनी : ये तो गलत है मेरा मानना यह है ,
खेलोगे ,कूदोगे ,बनोगे नवाब
पढोगे लिखोगे होगे बीमार II
अरे शरीर को भी थोड़ी हवा लगाओ तुम्हारे जैसे लोगों का ही नाम किताबी कीड़ा दिया जाता है I
वेद :तुम चाहे जितना खेल लो सनी ,हो सकता है तुम्हारी तैयारी पूरी हो गयी हो पर मेरी तैयारी तो तब तक चलती है जब तक परीक्षा न हो जाए I
सनी : छोड़ यार कल पढ़ लेना I
वेद : तुमने पढ़ा नहीं है :
"काल करे सो आज कर .आज करे सो अब I
पल में परलय होयेगा ,बहुरि करेगा कब II "
सनी :ज्यादा होशियार मत बनो ,मुझे भी ये कविता आती है I सुनो और समझो
"आज करे सो काल कर ,काल करे सो परसों I
हडबड -हडबड क्यूँ करता है जीना है तो बरसों II
वेद : तुमने इतना समय तो बर्बाद कर दिया ,अपना भी और मेरा भी तुझे खेलना है तो सचिन बन धोनी बन या जो भी बन लेकिन उसी में अच्छा कर I
शुभ संध्या