एक मौलिक कहानी लिखिए जिसमें आंदोलन निम्नलिखित उठती हो जान बची तो लाखों पाए
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सावन का महीना था। पिछले दो तीन दिनों से सावन की फुहारें नहीं पड़ रहीं थी। मौसम साफ था। धूप होने के कारण लोग राहत महसूस कर रहे थे। सावन के झूले पड़ चुके थे। गाँव में पेड़ की शाखाओं पर बच्चों ने झूले डाल रखे थे जिस पर झूलते हुए औरतें सावन के गीत गाती थीं। खेतों से थकी-मादी औरतें वापस लौटतीं तो उस पर झूलती, गीत गाती और उनकी थकान दूर हो जाती।
आज तो सभी के घरों में ख़ुशी का माहौल था क्योंकि आज जो नागपंचमी थी। आज के दिन नागदेवता को खुश करने के लिए औरतें व्रत और उपवास रखतीं। घरों में आज पकवान और मिष्ठान बन रहे थे। आज लोग अपने-अपने बैलों को तालाब में नहलाने के लिए ले जा रहे थे। तालाब गाँव के पास ही स्थित था जो वर्षा होने के कारण जल से लबालब भरा हुआ था। मेरे मन में विचार आया कि मैं भी अपने बैलों को नहलाने के लिए ले जाऊँ।
मैंने भाई से पूछा-“क्या हम भी अपने बैलों को नहलाने के लिए ले जाएँ ?” भाई ने पहले तो मना कर दिया, फिर दोबारा से मैंने कहा-“ मैं और शंकर दोनों पगहिया पकड़कर ले जायेंगे। सभी लोग अपने-अपने बैलों को नहलाने के लिए ले जा रहे हैं। ”
बैल हमारे बहुत सीधे थे। जैसे उन्होंने मारना सीखा ही नहीं हो। हम उनके ऊपर लेटते। उनके नीचे से निकलते। वे हमारे कंधे पर अपना मुँह रख देते। हमारे हाथ-हथेली चाटते मगर मजाल कि वे हमें भूलकर भी सींग दिखा दें। हम उन्हें रोटी खिलाते, पानी पिलाते। शायद इसी वजह से वे हमें बहुत चाहते थे। हम अपने बैलों को बहुत प्यार करते थे। कुछ सोचकर भाई ने कहा-“ अच्छा, तुम दोनों बैलों को पगहिया पकड़कर ले चलो। मैं अभी आता हूँ। सावधानी से ले जाना, देखना कहीं इधर-उधर खिंचाकर भागे न। ”
हमने बैलों को खूंटे से खोल लिया और सड़क से होते गुए पोखर पर जा पहुँचे। लोग अपने-अपने बैलों को नहला रहे थे। हमने भी अपने बैलों को पानी में घुसाया जैसे बैलों को भी मजा आ रहा हो। हमने बैलों को नहलाकर छोड़ दिया। और वे किनारे पर जाकर घास चरने लगे।
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