एक मनुज संचित करता है,
अर्थ पाप के बल से,
और भोगता उसे दूसरा,
भाग्यवाद के छल से ।
नर समाज का भाग्य एक है,
वह श्रम,वह भुजबल है,
जिसके सम्मुख झुकी हुई.
पृथ्वी, विनीत नभ-तल है।
जिसने श्रम-जल दिया उसे पीछे मत रह जाने दो, विजीत प्रकृति से पहले उसको सुख पाने दो॥
A. यह पद्यांश किस कविता से लिया गया है?
B. नर समाज का भाग्य क्या है?
C. किसने पृथ्वी और आकाश पर विजय प्राप्त की है?
D. पहले सुख पाने का अधिकार श्रम करने वालों को क्यों मिलना चाहिए?
E. पद्यांश किस वर्ग के लोगों के बारे में है?
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b.नर समाजका भाग्य एक हे ।
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yaha padyansh paap ke bal ke kavitha se leya gaya he
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