Biology, asked by pooja12051, 11 months ago

एकान्तर व सम्मुख प्रकार के पर्णविन्यास में मुख्य अन्तर क्या है ?​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

एकान्तर में पर्णसन्धियों पर एक ही पर्ण लगती है। यदि एक पर्णसंधि पर पर्ण दाईं ओर है तो अगली पर्णसंधि पर बाईं ओर होती है। सम्मुख में एक पर्णसंधि पर दो पणें सदैव एक-दूसरे के सम्मुख स्थित होती है।

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Answered by student6586
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Hey mate here is ur answer

पर्ण स्तम्भ या शाखा की पाश्र्व अतिवृद्धि है , यह चपटी व फैली हुई पर्वसन्धि पर विकसित होती है। ये अग्राभिसारी क्रम में व्यवस्थित होती है। पत्ती के कक्ष में कली होती है जो शाखा बनाती है। पत्तियाँ सामान्यतया हरी व प्रकाश संश्लेषण कर भोजन का निर्माण करती है।

पत्ती की संरचना

पर्ण के तीन प्रमुख भाग है –

1. पर्णाधार (Leaf Base) : पर्ण का वह भाग जिसके द्वारा पर्ण , तने व शाखा से जुडी रहती है पर्णाधार कहलाता है। इसके आधार पर एक या दो छोटी पत्तियों के समान प्रवर्ध होते है , जिन्हें अनुपर्ण कहते है।

एक बीज पत्ती व लैग्यूमिनेसी कुल के पादपों में पर्णाधार फूला हुआ होता है ऐसे पर्णाधार को पर्णवृन्त तल्प कहते है।

2. पर्णवृन्त (Petiole) : पर्ण के डंडलनुमा भाग को पर्णवृन्त कहते है , यह पर्णफलक को उपयुक्त सूर्य का प्रकाश ग्रहण करने के लिए अग्रसर करता है , यदि पादपो में पत्तियों के पर्णवृन्त उपस्थित हो तो उसे संवृन्त पत्ती और यदि उपस्थित नहीं हो तो अवृन्त पत्ती कहते है।

3. पर्णफलक / विस्तारिका (leaf blade) : पर्ण का हरा , चपटा व फैला हुआ भाग पर्णफलक कहलाता है। पर्णफलक के मध्य में धागेनुमा संरचना को मध्यशिरा कहते है। मध्यशिरा से अनेक शिराएँ व शिराकाएँ निकलती है। ये पर्ण को दृढ़ता प्रदान करती है तथा जल खनिज लवण व भोजन आदि का स्थानांतरण का कार्य भी करती है।

शिराविन्यास : वर्ण में शिराओ व शिराकाओं के विन्यास को शिरा विन्यास कहते है , शिराविन्यास दो प्रकार का होता है।

(a) समान्तर शिराविन्यास : जब शिराएँ मध्य शिरा के समान्तर व्यवस्थित होती है तो उसे समान्तर शिराविन्यास कहते है।

उदाहरण : राकबीज पत्ती पादप।

(b) जालिका शिराविन्यास : जब शिराएँ मध्यशिरा से निकलकर पर्णफलक में एक जाल बनाती है तो इसे जालिका पत शिराविन्यास कहते है।

उदाहरण : द्विबीज पत्री पादप।

पत्ती के प्रकार (types of leaf)

1. सरल पत्ती (simple leaf) : जब पर्णफलक अछिन्न अथवा कटी हुई न होकर पूर्ण रूप से फैली हुई होती है तथा कटाव मध्य शिरा तक नहीं हो। तो इसे सरल पत्ती कहते है।

उदाहरण : आम , बरगद , पीपल , अमरुद आदि।

2. संयुक्त पत्ती (compalind leaf) : जब पर्णफलक में कटाव मध्य शिरा तक पहुँच जाते है जिसके फलस्वरूप अनेक पर्णक बन जाते है तो इसे संयुक्त पत्ती कहते है , यह दो प्रकार की होती है –

(a) पिच्छाकार संयुक्त पत्ती : इस प्रकार की पत्ती में अनेक पर्णक एक मध्यशिरा पर स्थित होते है। उदाहरण – नीम आदि।

(b) हस्ताकार संयुक्त पत्ती : इस प्रकार की पत्ती में अनेक पर्णक एक ही बिंदु अर्थात पर्णवृन्त के शीर्ष से जुड़े रहते है। उदाहरण – शिल्ककोटन वृक्ष।

पूर्ण विन्यास (phyllotaxy) : तने या शाखा पर पर्णों की व्याख्या को पर्ण विन्यास कहते है। पादपो में यह तिन प्रकार का होता है।

(i) एकांतर पर्ण विन्यास : इस प्रकार के पर्णविन्यास में तने या शाखा पर एक अकेली पत्ती पर्णसन्धि पर एकान्तर क्रम में लगी रहती है।

उदाहरण : गेहूं , गुडहल , सरसों , सूरजमुखी आदि।

(ii) सम्मुख पर्णविन्यास : इस प्रकार के पर्ण विन्यास में प्रत्येक पर्णसन्धि पर एक जोड़ी पत्तियाँ आमने सामने लगी रहती है।

उदाहरण : अमरुद , केलोट्रोफिस (आक) आदि।

(iii) चक्करदार पर्णविन्यास : यदि एक ही पर्ण सन्धि पर दो से अधिक पत्तियाँ चक्र में व्यवस्थित हो तो उसे चक्करदार पर्ण विन्यास कहते है।

उदाहरण – कनेर , एल्सटोनियम आदि।

पत्ती के रूपान्तरण (modification of leaf)

1. खाद्य संचय हेतु रूपान्तरण : कुछ पादपों की पत्तियाँ भोजन संचय का कार्य करती है। उदाहरण – प्याज , लहसून आदि।

2. सहारा प्रदान करने हेतु रूपान्तरण : शाकीय पादपो की पत्तियाँ सहारा प्रदान करने हेतु प्रतान में बदल जाती है।

उदाहरण – मटर

3. सुरक्षा हेतु रूपान्तरण : अनेक पादपों में पत्तियाँ कांटो में बदल कर सुरक्षा का कार्य करती है।

उदाहरण : बैर , केक्ट्स , नागफनी आदि।

4. पर्णाभवृन्त में रूपान्तरण : कुछ पादपो की पत्तियों का पर्णवृन्त पत्ती की समान हरी संरचना में बदल जाता है तथा प्रकाश संश्लेषण कर भोजन का निर्माण करता है।

उदाहरण – आस्ट्रेलियन अकेनिया , कैर आदि।

5. घट रूपान्तरण : कुछ पादपों में पत्तियों का पर्ण फलक घट में तथा पर्ण शिखाग्र उसके ढक्कन में रूपांतरित हो जाता है जो कीटो को पकड़ने में सहायक है ऐसे पादप किटाहारी पादप कहलाते है।

उदाहरण : घटपादप , डायोनिया , ड्रेसिरा , वीनस , प्लाई ट्रेप आदि।

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