एक साझेदारी समझौता लिखित में क्यों होना चाहिए।
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साझेदारी कानून 1932 में यह आवश्यक नहीं है कि एक साझेदारी समझौता लिखित रूप में होना चाहिए, लेकिन फिर भी हमेशा यह सुझाव दिया जाता है कि इसे लिखित रूप में होना चाहिए क्योंकि आज भागीदारों के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं लेकिन भविष्य में किसी भी मुद्दे के बारे में कोई विवाद हो सकता है , एक लिखित साझेदारी समझौते से भागीदारों के बीच विवादों और गलतफहमी से बचने में मदद मिलेगी।
अगर हम साझेदारी को समझे तो यह एक प्रकार से दो या दो से ज्यादा लोगों के बीच अथवा दो समूह अर्थात कंपनियों के बीच का समझौता है।
समझौता दो प्रकार से किया जा सकता है। एक है मौखिक समझौता तथा दूसरा है लिखित समझौता। मौखिक समझौता विश्वास पर किया जाता है उसका कोई प्रमाण नहीं होता है।
साझेदारी संबंध में लिखित समझौता इसलिए किया जाना चाहिए ताकि वह प्रमाणित हो। कई बार शुरुआत में संबंध अच्छे होते हैं लेकिन बाद में बिगड़ जाते है।
उस समय यह लिखित समझौता सबूत के तौर पर काम आता है ताकि कोई एक पक्ष वहां झूठ ना कह सके या उस समझौते पर मालिकाना हक ना दिखाए।
इसलिए सुरक्षा के दृष्टि से लिखित समझौता किया जाता है।