एक्सप्लेन अबाउट द फॉर्मेशन ऑफ ईस्ट इंडिया कंपनी एंड इट्स इंर्पोटेंस
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लॉर्ड स्टैनली के इस प्रस्ताव पर कि भारत के लिए कानून बनाने की बात को स्थगित कर दिया जाए, शाम तक के लिए बहस टाल दी गई है। 1783 के बाद से पहली बार भारतीय प्रश्न इंगलैंड में मंत्रिमंडल के जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है। ऐसा क्यों हुआ?
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ईस्ट इंडिया कंपनी की वास्तविक शुरुआत को 1702 के उस वर्ष से पीछे के किसी और युग में नहीं माना जा सकता जिसमें पूर्वी भारत के व्यापार के इजारे का दावा करने वाले विभिन्न संघों ने मिलकर अपनी एक कंपनी बना ली थी। उस समय तक असली ईस्ट इंडिया कंपनी का अस्तित्व तक बार-बार संकट में पड़ जाता था। एक बार, क्रोमवेल के संरक्षण काल में, वर्षों के लिए उसे स्थगित कर दिया गया था; और, एक बार, विलियम तृतीय के शासनकाल में, पार्लियामेंट के हस्तक्षेप के द्वारा उसे बिलकुल ही खतम कर दिए जाने का खतरा पैदा हो गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी के अस्तित्व को पार्लियामेंट ने उस डच राजकुमार के उत्थान काल में तब स्वीकार किया था जब ह्विग लोग ब्रिटिश साम्राज्य की आमदनियों के अहलकार बन गए थे, बैंक ऑफ इंगलैंड का जन्म हो चुका था, इंगलैंड में संरक्षण की व्यवस्था दृढ़ता से स्थापित हो गई थी और यूरोप में शक्ति का संतुलन निश्चित रूप से निर्धारित हो गया था। ऊपर से दिखने वाली स्वतंत्रता का वह युग वास्तव में इजारेदारियों का युग था। एलिजाबेथ और चार्ल्स प्रथम के कालों की तरह, इन इजारेदारियों की सृष्टि शाही स्वीकृतियों के द्वारा नहीं हुई थी, बल्कि उन्हें पार्लियामेंट ने अधिकार प्रदान किया था और उनका राष्ट्रीकरण किया था। इंगलैंड के इतिहास का यह युग वास्तव में फ्रांस के लुई फिलिप के युग से अत्यधिक मिलता-जुलता हैभूस्वामियों का पुराना अभिजात वर्ग पराजित हो गया है और पूंजीपति वर्ग 'वित्तीय प्रभुत्ता' का झंडा उठाए बिना और किसी तरह से उसका स्थान लेने में असमर्थ है। ईस्ट इंडिया कंपनी आम लोगों को भारत के साथ व्यापार करने से वंचित रखती थी, उसी तरह जिस तरह कि कॉमन्स सभा पार्लियामेंट में प्रतिनिधित्व पाने से उन्हें वंचित रखती थी। इस और दूसरे उदाहरणों से हम देखते हैं कि सामंती अभिजात वर्ग के ऊपर पूंजीपति वर्ग की प्रथम निर्णायक विजय के साथ ही साथ जनता के विरुध्द जबरदस्त आक्रमण भी शुरू हो जाता है। इस चीज की वजह से कोबेट जैसे एक से अधिक जन-प्रेमी लेखक जनता की आजादी के लिए भविष्य की ओर देखने के बजाए वर्तमान की ओर देखने को बाध्य हो गए थे।
वैधानिक राजतंत्र और इजारेदार पैसे वाले वर्ग के बीच, ईस्ट इंडिया की कंपनी और 1688 की 'गौरवशाली' क्रांति के बीच एकता उसी शक्ति ने कायम की थी जिसके कारण तमाम कालों और तमाम देशों में उदारपंथी वर्ग और उदार राजवंश मिले और एकताबध्द हुए हैं। यह शक्ति भ्रष्टाचार की शक्ति है जो वैधानिक राजतंत्र को चलाने वाली प्रथम और अंतिम शक्ति है। विलियम तृतीय की यही रक्षक देवता थी और यही लुई फिलिप का जानलेवा दैत्य था। पार्लियामेंटरी जांचों से यह बात 1693 में ही सामने आ गई थी कि सत्ताशाली व्यक्तियों को दी जाने वाली 'भेंटों' की मद में होने वाला ईस्ट इंडिया कंपनी का सालाना खर्च, जो क्रांति से पहले शायद ही कभी 1,200 पौंड से अधिक हुआ था, अब 90,000 पौंड प्रति वर्ष तक पहुंच गया था। लीड्स के डयूक पर इस बात के लिए मुकदमा चलाया गया था कि उसने 5,000 पौंड की रिश्वत ली थी, और स्वयं धर्मात्मास्वरूप राजा को 10,000 पौंड लेने का अपराधी घोषित किया गया था। इन सीधी रिश्वतों के अलावा, विरोधी कंपनियों को हराने के लिए सरकार को सूद की नीची से नीची दर पर विशाल रकमों के ऋण देने का लालच दिया जाता था और विरोधी डायरेक्टरों को खरीद लिया जाता था।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने सरकार को रिश्वत देकर सत्ता हासिल की थी। उसे कायम रखने के लिए वह फिर रिश्वत देने के लिए मजबूर थी। बैंक ऑफ इंगलैंड ने भी इसी प्रकार सत्ता प्राप्त की थी और अपने को बनाए रखने के लिए वह फिर रिश्वत देने के लिए बाध्य थी। हर बार जब कंपनी की इजारेदारी खतम होने लगती थी तब वह सरकार को नए कर्जे और नई भेंटें देकर ही अपनी सनद को फिर से बढ़वा पाती थी। सात-वर्षीय युध्द ने ईस्ट इंडिया कंपनी को व्यावसायिक शक्ति से बदल कर एक सैनिक और प्रदेशीय शक्ति बना दिया था। पूर्व में वर्तमान ब्रिटिश साम्राज्य की नींव उसी वक्त पड़ी थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के शेयर की कीमत बढ़ कर तब 263 पौंड हो गई और डिवीडेंड (शेयर पर मुनाफे) 12.5 प्रतिशत की दर से दिए जाने लगे। लेकिन तभी कंपनी का एक नया दुश्मन पैदा हो गया। इस बार वह प्रतिद्वंद्वी संघों के रूप में नहीं, बल्कि प्रतिद्वंद्वी मंत्रियों और एक प्रतिद्वंद्वी प्रजा के रूप में पैदा हुआ था। कहा जाने लगा कि कंपनी के राज्य को ब्रिटिश जहाजी बेड़ों और ब्रिटिश फौजों की मदद से जीतकर कायम किया गया है और ब्रिटिश प्रजा के किन्हीं भी व्यक्तियों को इस बात का अधिकार नहीं है कि वे ताज (बादशाह) से अलग कोई स्वतंत्र राज्य रख सकें। पिछली जीतों के द्वारा जिन 'आश्चर्यजनक खजानों' को हासिल किया गया था उनमें उस समय के मंत्री और उस समय के लोग भी अपने हिस्से का दावा करने लगे। कंपनी अपने अस्तित्व को 1767 में यह समझौता करके ही बचा सकी कि राष्ट्रीय कोष को प्रति वर्ष वह 4,00,000 पौंड दिया करेगी।