एक्सपेंस वाले वाटर पोलूशन हाउ वी कैन बे प्रीवेंटेड
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ऑक्सीजन के उपरान्त जल जीवन के लिये अति आवश्यक है। मनुष्य के शरीर के भार का 70 प्रतिशत जल होता है। विश्व में पृथ्वी के चारों ओर जल है, 71 प्रतिशत भाग में जल है और 29 प्रतिशत में सतह है। सतह के कुछ भाग पर ही आबादी है। अधिकतर भाग पर पहाड़, जंगल, नदियाँ, झरने व तालाब हैं। जितना भी जल है उसका केवल 3 प्रतिशत जल पीने योग्य है। ताजा पीने योग्य जल ग्लेशियर (हिमखण्ड), पोलर आइस से प्राप्त होता है। इसी प्रकार भूजल गहरी चट्टान बनने के कारण एकत्रित होता रहता है।
जल प्रदूषण
जल की उत्पत्ति के लिये विश्व में हाइड्रोलॉजिकल चक्र है। विश्व में पृथ्वी की आर्द्रता और समुद्र जल सूर्य की गर्मी से वाष्पीकृत होकर वायुमण्डल में चले जाते हैं। वहाँ धूल के कणों से मिलकर बादल का निर्माण करते हैं। जब बादलों में आर्द्रता अधिक हो जाती है, तो वह वर्षा या बर्फ के रूप में पृथ्वी पर आ जाती है। वर्षा जल, झरनों, झीलों, नदियों द्वारा पृथ्वी में आर्द्रता पुनः उत्पन्न होती है। इस प्रकार हाइड्रोलॉजिकल चक्र पूर्ण होता है और विश्व में जल की पूर्ति होती रहती है।
विश्व में जहाँ-जहाँ जल उपलब्ध है वहाँ-वहाँ आबादी बसी, फिर व्यापार शुरू हुआ। व्यापार होने से सभ्यता का विकास हुआ जो बढ़ता गया। जल का उपयोग आवागमन, सफाई, कृषि, पीने में किया जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन की उत्पत्ति जल में ही हुई है। अतः जल का विशेष महत्त्व है विकास एवं उन्नति से विश्व दो भागों में विभाजित हो गया है। एक भाग विकसित राष्ट्र कहलाता है। जहाँ विकास चरम पर है। उससे सम्पन्नता है। फिर विलासिता! दूसरा भाग विकासशील राष्ट्र हैं। जहाँ सम्पन्नता नहीं है। गरीबी है। सुख सुविधाएँ नहीं हैं। जनसंख्या भी अधिक है। इससे जल का दोहन और उपयोग अधिक हो रहा है।
जल प्रदूषण
जल प्रदूषण
जनसंख्या विस्फोट के कारण औद्योगीकरण भी बढ़ा है एवं शहरीकरण भी बढ़ रहा है। वाहनों की संख्या में अपार वृद्धि हुई है। जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है। जंगलों, वनों की कटाई भी चरम पर है इसके दुष्परिणाम दृष्टिगोचर हो रहे हैं। प्राकृतिक आपदायें भू-स्खलन, बाढ़ आना, सूखा पड़ना, जटिल रोगों की संख्या में अपार वृद्धि हो रही है। विकासशील राष्ट्रों में साफ-सफाई (सेनीटेशन) पर अधिक बल नहीं दिया जाता है। जनसंख्या विस्फोट, जंगलों की कटाई, सीमेन्ट कंकरीट के जंगलों को खड़ा करने से, औद्योगीकरण, शहरीकरण, वाहनों की संख्या में वृद्धि से जल और भू-जल प्रदूषित हो रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व में जल की कमी हो रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2013 को अंतरराष्ट्रीय जल सहयोग वर्ष घोषित किया है, जिससे सबको जल मिल सके।
कृषि में जल का उपयोग बहुत मात्रा में किया जाता है। जल की कमी को देखते हुए ऐसे प्रयास किये जाते रहे हैं कि ऐसे बीजों का उपयोग किया जाये जो कम जल का उपयोग कर उत्पादन अधिक दे सकें। पेस्टीसाइड (कीटनाशकों) का उपयोग भी समुचित मात्रा में जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए। उससे भी जल प्रदूषित होता है।
जल का मुख्य स्रोत कुआँ, तालाब, झीलें, नदियाँ हैं। आजकल जल की कमी हो रही है। साथ ही जल प्रदूषित भी हो रहा है। प्रदूषित जल पर्यावरण तथा स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। शुद्ध जल रंगहीन, गंधहीन, दिखने में साफ, मीठे स्वाद वाला होता है। जल के PH का मान 7-8.5 के मध्य होता है। जल उच्च आवेशित, उच्च डाइइलेक्ट्रिक स्थिरांक, उच्च श्यनता, उच्च पृष्ठ तनाव, उच्च ऊष्म ताप वाला होता है। ये गुण विशेष स्थान की वनस्पति और जानवरों पर प्रभाव डालते हैं।
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