एक दिन फूलों ने भी कहा था, पत्तियाँ ? पत्तियों ने क्या किया? संख्या के बल पर डालों को छाप लिया, डालों के बल पर ही चल-चपल रही हैं, हवाओं के बल पर ही मचल रही हैं? लेकिन हम अपने से खुले, खिले, फूले हैं- रंग लिए, रस लिए, पराग लिए – हमारी यश-गंध दूर-दूर-दूर फैली है, भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए हैं, हम पर बौराए हैं ।सब की सुन पाई है, जड़ मुसकाई है !
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It is a good poem. I like it.
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