एक दिन की विहार यात्रा का अनुभव डायरी के रुप मे लिखिए .. Plz fast it is for 15 marks.. And the best will be marked as brainliest.. Plz no silly answers...
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प्रस्तावना- हमारे देश में अनेक पर्वतीय स्थान देखने योग्य हैं। श्रीनगर, नैनीताल, मसूरी, डलहौजी, धर्मशाला, आबू पर्वत इन सबकी शोभी ही निराली है। लाखों पर्यटक इन स्थानों पर प्रतिवर्ष जाते हैं। विदेशों से भी अनेक पर्यटक इन स्थानों पर जाते हैं। ये स्थान अत्यन्त आकर्षक हैं। ऐसे ही स्थानों में एक है वैष्णो देवी। यह पर्वतीय स्थान तो है ही, धार्मिक स्थान भी है।
वैष्णों देवी की यात्रा- वैष्णो देवी जाने के लिए पहले जम्मू जाना होता है। जम्मू से वैष्णो देवी जाने के लिए कटरा तक बस से जा सकते हैं। हम कटरा जाने के लिए जम्म बस स्टैंड पर गए। वहाँ से हमने कटरा के लिए बस ली
जम्मू से कटरा- जम्मू से ही पर्वतीय भाग आरम्भ हो जाता है। इसलिए हम जिस बस में बैठे, वह बस बहुत छोटी थी। उसमें तीस-पैंतीस व्यक्ति बड़ी मुश्किल से बैठ सकते थे। बस में बैठे लोगों में अपार श्रद्धा थी। बस के चलते ही सभी ने मिलकर ‘वैष्णो माता दी जय’ का नारा लगाया।
सड़क के दोनों ओर देवदार के वृक्षों की पंक्तियाँ दूर दूर तक दिखाई दे रही थीं। जम्मू से ही चढ़ाई आरम्भ हो गई थी। सर्प के आकार वाली सड़क पर हमारी बस धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।
पन्द्रह बीस किलोमीटर चलने के बाद हमारी बस रूकी। वहाँ दो तीन दुकानें थीं, बस चालक बस को वहाँ जरूर खड़ा करते हैं। वहाँ हम बस से नीचे उतरे और ठंडा पानी पीकर फिर से बस में बैठ गए। थोड़ी ही देर में बस चल दी। हम लगभग 5 बजे कटरा पहुँच गए। बस कटरा तक ही जाती है।
कटरा से वैष्णो देवी- कटरा से वैष्णो देवी जाने के दो मार्ग हैं। सीढि़यों का रास्ता थोड़ा छोटा है, पर सीढि़यों पर चढ़ते चढ़ते दम फूलने लगता है। दूसरा रास्ता पाँच छः फुट चौड़ी पगडंडी का है। इस रास्ते में टट्टू भी आते जाते हैं। हमने अपना सामान कटरा में एक धर्मशाला में रख दिया। धूप भी अब ढल चुकी थी। हमने कटरा में थोड़ी देर आराम किया और कटरा से वैष्णो देवी के लिए रवाना हो गए।
अर्ध कुवारी-कटरा से वैष्णो देवी के मार्ग में सब से पहले बाण गंगा आती है। बाण गंगा का जल शुद्ध और शीतल है। यहाँ से ही दो मार्ग आरम्भ होते हैं। हमने सीढि़यों वाला रास्ता अपनाया और तेजी से ऊपर चढ़ना शुरू कर दिया। हम दस बारह सीढि़याँ चढ़ते और फिर रूक जाते थे। पाँच सात मिनट के बाद फिर चढ़ना शुरू कर देते। अंधेरा होने लगा था। माता के दर्शन का उत्साह हमें ऊपर खींचे लिए जा रहा था। ठंडी हवा के झोंके हमारी थकान को दूर कर रहे थे। हम लगभग 10 बजे रात को उस स्थान पर पहुँचे जिसे अर्ध कुवारी कहते हैं। यहाँ हम ने भोजन किया और थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर यात्रा आरम्भ कर दी।
अर्ध कुवारी से वैष्णो देवी- भोजन आदि कर चुकने के बाद हम ने जब यात्रा आरम्भ की तो पगडंडी का रास्ता अपनाना ही अच्छा समझा। अंधेरे में सीढि़यों से लुढ़कते तो मालूम नहीं कहाँ जा कर रूकते। माता की जय जयकार करते हम अंधेरे में भी लगातार आगे बढ़ते गए। हमारे आनंद का ठिकाना न रहा जब हमने देखा कि हम माता के मंदिर के पास पहुँच गए हैं। उस समय प्रातः चार बजे का समय था।
हमारी यह पर्वतीय यात्रा बहुत ही आनंददायक रही। हमने पर्वतीय स्थान भी देख लिया और माता के दर्शन भी कर लिए।
वैष्णों देवी की यात्रा- वैष्णो देवी जाने के लिए पहले जम्मू जाना होता है। जम्मू से वैष्णो देवी जाने के लिए कटरा तक बस से जा सकते हैं। हम कटरा जाने के लिए जम्म बस स्टैंड पर गए। वहाँ से हमने कटरा के लिए बस ली
जम्मू से कटरा- जम्मू से ही पर्वतीय भाग आरम्भ हो जाता है। इसलिए हम जिस बस में बैठे, वह बस बहुत छोटी थी। उसमें तीस-पैंतीस व्यक्ति बड़ी मुश्किल से बैठ सकते थे। बस में बैठे लोगों में अपार श्रद्धा थी। बस के चलते ही सभी ने मिलकर ‘वैष्णो माता दी जय’ का नारा लगाया।
सड़क के दोनों ओर देवदार के वृक्षों की पंक्तियाँ दूर दूर तक दिखाई दे रही थीं। जम्मू से ही चढ़ाई आरम्भ हो गई थी। सर्प के आकार वाली सड़क पर हमारी बस धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।
पन्द्रह बीस किलोमीटर चलने के बाद हमारी बस रूकी। वहाँ दो तीन दुकानें थीं, बस चालक बस को वहाँ जरूर खड़ा करते हैं। वहाँ हम बस से नीचे उतरे और ठंडा पानी पीकर फिर से बस में बैठ गए। थोड़ी ही देर में बस चल दी। हम लगभग 5 बजे कटरा पहुँच गए। बस कटरा तक ही जाती है।
कटरा से वैष्णो देवी- कटरा से वैष्णो देवी जाने के दो मार्ग हैं। सीढि़यों का रास्ता थोड़ा छोटा है, पर सीढि़यों पर चढ़ते चढ़ते दम फूलने लगता है। दूसरा रास्ता पाँच छः फुट चौड़ी पगडंडी का है। इस रास्ते में टट्टू भी आते जाते हैं। हमने अपना सामान कटरा में एक धर्मशाला में रख दिया। धूप भी अब ढल चुकी थी। हमने कटरा में थोड़ी देर आराम किया और कटरा से वैष्णो देवी के लिए रवाना हो गए।
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अर्ध कुवारी से वैष्णो देवी- भोजन आदि कर चुकने के बाद हम ने जब यात्रा आरम्भ की तो पगडंडी का रास्ता अपनाना ही अच्छा समझा। अंधेरे में सीढि़यों से लुढ़कते तो मालूम नहीं कहाँ जा कर रूकते। माता की जय जयकार करते हम अंधेरे में भी लगातार आगे बढ़ते गए। हमारे आनंद का ठिकाना न रहा जब हमने देखा कि हम माता के मंदिर के पास पहुँच गए हैं। उस समय प्रातः चार बजे का समय था।
हमारी यह पर्वतीय यात्रा बहुत ही आनंददायक रही। हमने पर्वतीय स्थान भी देख लिया और माता के दर्शन भी कर लिए।
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