एक उपयुक्त संगठन का स्वरूप चुनना क्यों महत्त्वपूर्ण है? उन घटकों का विवेचन कीजिए जो संगठन के किसी खास स्वरूप के चुनाव में सहायक होते हैं।
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एक उपयुक्त संगठन का स्वरूप चुनना इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि व्यवसाय संगठन के विभिन्न स्वरूप हो सकते हैं जैसे एकाकी व्यापार , साझेदारी व्यापार, संयुक्त हिंदू परिवार व्यापार, संयुक्त पूंजी वाली कंपनी एवं सहकारी संगठन आदि। सभी की अपनी-अपनी कुछ प्रमुख विशेषताएं एवं गुण दोष होते हैं। अतः स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि कौन सा प्रारूप का चयन सर्वश्रेष्ठ रहेगा। कोई एक प्रारूप किन्हीं विशेष परिस्थितियों के उपयुक्त रहता है तो दूसरा किन्हीं अन्य परिस्थितियों के लिए।
निम्नलिखित घटक जो संगठन के किसी खास स्वरूप के चुनाव में सहायक होते हैं :
व्यवसाय की स्थापना में सुगमता :
कुछ विशेष संगठनों की स्थापना बहुत सरलता से की जा सकती है ; जैसे एकाकी व्यापार या संयुक्त हिंदू परिवार व्यापार। ऐसे संगठन की स्थापना में न तो विशिष्ट औपचारिकताओं का ही पालन करना होता है और न ही अधिक धन की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत कंपनी संगठन में स्थापना संबंधी विशिष्ट औपचारिकताओं के साथ-साथ धन भी अधिक व्यय होता है तथा समय भी अधिक लगता है। अतः एक व्यवसायी को अपनी शक्ति और क्षमता तथा परिस्थिति के अनुरूप ही व्यावसायिक संगठन के प्रारूप का चयन करना चाहिए।
वैधानिक औपचारिकताएं तथा कानूनी स्थिति :
व्यावसायिक संगठन के प्रारूप का चयन करते समय वैधानिक औपचारिकताओं तथा कानूनी स्थिति को भी ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है । ऐसे अनेक संगठन है जिनकी स्थापना किस अधिनियम के अंतर्गत ही की जाती है ; जैसे संयुक्त पूंजी कंपनी की स्थापना भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत की जाती है तथा सहकारी समितियों की स्थापना सहकारिता अधिनियम , 1912 के अंतर्गत की जाती है।
पूंजी की आवश्यकता :
जिस पैमाने पर व्यापार करना हो उसके लिए कितनी पूंजी आवश्यक होगी, इसका अनुमान लगाने के उपरांत यह देखना चाहिए कि किस प्रारूप को अपनाने पर वह सुविधा पूर्वक उपलब्ध हो सकती है । यदि कम पूंजी से कार्य चल सकता है तो एकाकी व्यापार श्रेष्ठ रहेगा । यदि अधिक पूंजी चाहिए तो साझेदारी संगठन एवं अति विशाल मात्रा में पूंजी की आवश्यकता हो तो संयुक्त पूंजी कंपनी का निर्माण किया जा सकता है।
प्रारंभिक लागत :
जहां तक प्रारंभिक लागत का संबंध है, एकाकी व्यापार का स्वामित्व सबसे कम खर्चीला सिद्ध होता है । इसके विपरीत कंपनी संगठन के निर्माण की प्रक्रिया लंबी एवं जटिल है तथा इस पर व्यय भी अधिक होता है। सहकारी समितियों एवं कंपनियों का पंजीयन भी अनिवार्य होता है।
जोखिम की मात्रा :
व्यवसाय जोखिम का ही खेल है। कुछ व्यवसायों में जोखिम की मात्रा अधिक होती तथा कुछ में कम । कम जोखिम की दशा में एकाकी या साझेदारी संगठन के रूप में संगठित किया जा सकते हैं तथा अधिक जोखिम की दशा में कंपनी संगठन उचित रहेगा।
दायित्व :
एकाकी व्यवसाय एवं साझेदारी में स्वामी का दायित्व सीमित होता है , अतः आवश्यकता के समय ऋणों या दायित्वों का भुगतान स्वामियों की निजी संपत्तियों से किया जाता है । संयुक्त हिंदू परिवार में केवल कर्ता का ही दायित्व असीमित होता है । सहकारी समितियों एवं कंपनियों में दायित्व सीमित होता है तथा लेनदारो को अपने दावों के भुगतान के लिए कंपनी की परिसंपत्तियों पर ही संतोष करना पड़ता।
स्वामित्व का हस्तांतरण :
यदि इस बात की संभावना हो कि कुछ समय तक चलते रहने के बाद व्यवसाय का स्वामित्व हस्तांतरित करना होगा तो ऐसे संगठन प्रारूप को चुनना चाहिए जिससे यह कार्य सरलता पूर्वक किया जा सके । इस आशय से एकाकी एवं कंपनी प्रारूप श्रेष्ठ है।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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Explanation:
एक एकल स्वामित्व व्यापारी फर्म या स्वामित्व के रूप में भी जाना जाता है। यह् एक व्यवसाय के रूप में है और एक व्यक्ति द्वारा चलाया जाता है। एक एकमात्र मालिक एक व्यापार नाम या व्यापार के लिए अपने या अपने नाम के अलावा अन्य नाम का प्रयोग कर सकता है। इस कारोबार अपने या अपने स्वयं के लाभ के लिए एक व्यक्ति द्वारा चलाया जाता है। यह व्यापार संगठन का सरलतम रूप है। मालिकों के अलावा इसका अस्तित्व नहीं है। कारोबार से जुड़े देनदारियों के मालिक की व्यक्तिगत दायित्व हैं। व्यापार मालिक की मौत पर समाप्त हो जाता है। मालिक उसका / उसकी संपत्ति की हद तक व्यापार के जोखिम को चलाती है।
एकल प्रोपराइटर पेशेवर लोगों, सेवा प्रदाताओं, और खुदरा विक्रेताओं, जो "खुद के लिए व्यापार में।" शामिल है। एक एकल स्वामित्व उसके मालिक से एक अलग कानूनी इकाई नहीं है, लेकिन् यह लेखा प्रयोजनों के लिए एक अलग इकाई है। व्यवसाय की वित्तीय गतिविधियों निजी वित्तीय गतिविधियों से अलग रखा जाता है।