Hindi, asked by alishaan, 1 year ago

एक विवेक दिमाग का होता है और एक विवेक दिल का होता है ( चार्ल्स डिकेन्स ) 600 शब्द

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Answered by kashyap36
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विवेक' ऐसी भावना है, जो हमें सही गलत की पहचान करवाता है और गलत मार्ग पर बढ़ने से रोकता है। विवेक का संबंध दिल और दिमाग से नहीं है। हमारा निर्णय दिल और दिमाग से लिया हो सकता है। प्रायः लोग विवेक का प्रयोग अपने स्वार्थों के लिए करते हैं। जब हम अपने स्वार्थों का उपयोग करने के लिए किसी की सहायता करते हैं, तो वह विवेक दिमाग से लिए गए निर्णय पर आधारित होता है। इसके विपरीत जब हम दूसरे की सहायता के लिए अपने विवेक का प्रयोग करते हैं, तो वह निर्णय दिल से लिया गया होता है।


एक विवेक दिमाग का होता है और एक विवेक दिल का होता है। यह कथन सत्य है। हम एक बात को यदि दिल के अनुसार सोचें फिर दिमाग के अनुसार सोचें, तो दोनों के निर्णय अलग-अलग होंगे। इसका मतलब है दिल उन बातों पर अपना विवेक का पूर्ण इस्तेमाल नहीं करता, जो उसे सोचना पड़ता है। दिमाग इन बातों पर अपने विवेक का पूर्ण इस्तेमाल करता है और `किन्तु, परन्तु` अधिक सोचता है। इस तरह दोनों के नतीजे अलग-अलग आते हैं।
Answered by abhi178
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पता है हम सभी जीवों से अलग क्यों हैं? आखिर क्यों हम प्रगति कर रहे ? आखिर क्या कारण है , जिससे हम प्रगतिशील बनते जा रहे हैं? इन सभी प्रश्नों का उत्तर केवल एक ही है , और वह है कि मनुष्य का दिमाग । क्योंकि हम सभी जानते हैं दिल तो सभी जीवों के पास होता है किंतु दिमाग यानि विवेक हमारे पास विरासत के रूप में मिलती चली आ रही है।

ऐसा बिल्कुल नही है कि बगैर दिमाग के जीवन यापन करना संभव न हो । आपको ऐसे कई जीवों के उदाहरण मिलेंगे जो सदियों से जीवन यापन तो कर ही रहे हैं तथापि उनका विकास भी हुआ है। अतः यह कहने में मुझे कोइ अतिश्योक्ति नही होगी कि दिमाग और दिल जीवन के दो अलग -अलग पहलू हैं। दोनों के अपने - अपने मायने हैं।

अब बात करें निबंद के मुख्य वाक्य " एक विवेक दिल का होता है " । ये वाक्य कुछ अजीब -सा लग रहा है न ? किन्तु ये सर्वथा सत्य है । इसे समझने हेतु मुझे कबीर दास के वो दोहे को अवश्य अंकित करना चाहिए।
"पोथी पढ़ी -पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोइ ।
ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ै सो पंडित होए ।। "
इस दोहे यह स्पष्ट है कि प्रेम यानि दिल द्वारा महसुस की गयी मधुर संबंध ज्ञान के पराकाष्ठा के अधिक सर्वोपरि है। इसिलए तो कबीर दास जी ने कहा चाहे अनेक पुस्तकों का अध्ययन क्यों न कर लो लेकिन पंडित (संपूर्ण ज्ञानी) नही बन पाओगे जब तक प्रेम को अच्छी तरह समझ न लो। वैसे भी आपने अनेक प्रेम प्रसंग फ़िल्म देखे होंगे। इसमें आपने ये तो अवश्य देखा होगा प्रेम का हारा व्यक्ति दिमाग से भी पंगु हो जाता है । इससे यह तो स्पष्ठ है कि दिल का अपना एक विवेक है जिससे वह कभी - कभी दिमाग पर हावी हो जाती है।

अब दूसरा वाक्य " दिमाग का अपना विवेक है " इस वाक्य को समझने या समझाने की तनिक भी आवश्यकता नही है। यह सभी जानते है कि उनका मानस पटल पर जो भी वजूद है उनके दिमाग के विवेक के कारण ही तो है। विवेकी मानव सर्वथा अव्वल होते हैं वे अपने ज्ञान के बल पर जग जीत सकते हैं । दिमाग के प्रबल उपयोगकर्ता तो अपने दिल पर भी धाक जमा लेते हैं । यह कहने में तनिक अतिशयोक्ति नही होगी की दिमाग दिल से कुछ मायनो में बेहतर है।

इन सभी चीजों से परे जिन्दगी है । यह न तो केवल दिमाग से जिया जा सकता है न ही दिल से । जिंदगी जीने के लिए तो दिल और दिमाग का समन्वय होना अत्यंत आवश्यक है। दिल हमें रिश्ते मजबूत करने का गुर सिखाता है तो दिमाग रिश्ते बनाये रखने के लिए अन्योन्य सुविधा प्रदान करता है।
अतः एक विवेक दिल का होता है तो एक विवेक दिमाग का।
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