एल्कायनों में इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रिया समझाइए।
Explain electrophillic addition reaction in alkynes.
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Answer:
Now we will take a look at electrophilic addition reactions, particularly of alkynes. ... Start with a reactant (either an alkene or an alkyne), which has π electrons. An electron pair moves from the π bond to the electrophilic proton to form a new covalent bond. A carbocation intermediate forms on the most stable carbon.
Answer:
इलेक्ट्रॉन स्नेही योगात्मक अभिक्रिया : वे अभिक्रियायें जिनमें पहले इलेक्ट्रोन स्नेही आक्रमण करता है उसके बाद नाभिक स्नेही आक्रमण करता है उन्हें इलेक्ट्रॉन स्नेही योगात्मक अभिक्रिया कहते है। इस अभिक्रिया में मध्यवर्ती कार्ब धनायन का निर्माण होता है। ... यह अभिक्रिया कार्बोनिल यौगिको द्वारा दी जाती है।
Explanation:
1. इलेक्ट्रोन स्नेही (electrophilic)
वह अभिकर्मक जिसमें इलेक्ट्रॉन की कमी होती है तथा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृति होती है , इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिक्रमण कहलाता है।
सभी धनावेशित अभिकर्मक तथा कुछ इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक [AlCl3, BF3 , FeCl3] इलेक्ट्रान स्नेही अभिकर्मक की भांति व्यवहार करते है।
ये अभिकर्मक रासायनिक अभिक्रिया में उस स्थान पर आक्रमण
करते है जहाँ इलेक्ट्रॉन घनत्व अधिकतम होता है इन्हें ‘E+‘ से व्यक्त करते है।
2. नाभिक स्नेही (nucleophilic)
वे अभिकर्मक जिनमें इलेक्ट्रॉन की अधिकता होती है , नाभिक स्नेही अभिकर्मक कहलाते है। सभी ऋणावेशित अभिकर्मक तथा कुछ एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म युक्त यौगिक नाभिक स्नेही अभिकर्मक की भाँती व्यवहार करते है।
ये अभिकर्मक रासायनिक अभिक्रिया में उस स्थान पर आक्रमण करते है जहाँ पर इलेक्ट्रॉन की कमी होती है , इन्हें Nu– से व्यक्त करते है।
कार्बनिक अभिक्रियाओं के प्रकार
ये चार प्रकार की होती है –
[I] प्रतिस्थापन अभिक्रिया
[II] योगात्मक अभिक्रिया
[III] विलोपन अभिक्रिया
[IV] पुनर्विन्यास अभिक्रिया
[I] प्रतिस्थापन अभिक्रिया : वे अभिक्रियाएँ जिनमें क्रियाकारको के अणु में से एक परमाणु या परमाणुओं के समूह के स्थान पर दुसरे परमाणु या परमाणुओं का समूह आता है तो इन्हें प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते है।
ये तीन प्रकार की होती है –
नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया : जिनमे एक नाभिक स्नेही के स्थान पर दूसरा नाभिक स्नेही आता है तो इस प्रकार की अभिक्रिया को नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते है।
इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया : वे अभिक्रियाएँ जिनमें एक इलेक्ट्रोन स्नेही के स्थान पर दूसरा इलेक्ट्रॉन स्नेही आता है तो इस प्रकार की अभिक्रिया को इलेक्ट्रोन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते है।
मुक्त मूलक प्रतिस्थापन अभिक्रिया : यह अभिक्रिया सूर्य के प्रकाश या परॉक्साइड की उपस्थिति में संपन्न होती है , इस अभिक्रिया में जब तक मुक्त मूलकों का निर्माण होता है। तब तक अभिक्रिया चलती है अत: इन्हें श्रृंखला अभिक्रिया भी कहते है।
[II] योगात्मक अभिक्रिया
वे अभिक्रियाएँ जिनमें आक्रमणकारी पदार्थ क्रियाकारी अणुओं के साथ बिना किसी विलोपन के जुड़ जाते है उन्हें योगात्मक अभिक्रिया कहते है।
ये अभिक्रियाएँ उन यौगिको द्वारा दी जाती है जिनमें द्विबंध या त्रिबंध उपस्थित होते है।
योगात्मक अभिक्रिया तीन प्रकार की होती है –
इलेक्ट्रॉन स्नेही योगात्मक अभिक्रिया : वे अभिक्रियायें जिनमें पहले इलेक्ट्रोन स्नेही आक्रमण करता है उसके बाद नाभिक स्नेही आक्रमण करता है उन्हें इलेक्ट्रॉन स्नेही योगात्मक अभिक्रिया कहते है। इस अभिक्रिया में मध्यवर्ती कार्ब धनायन का निर्माण होता है। यह अभिक्रिया एल्किन या एल्काइन द्वारा दी जाती है।
नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रिया : वे अभिक्रिया जिनमें नाभिक स्नेही पहले आक्रमण करता है उसके बाद इलेक्ट्रॉन स्नेही आक्रमण करता है उन्हें नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रिया कहते है। यह अभिक्रिया कार्बोनिल यौगिको द्वारा दी जाती है।
मुक्त मूलक योगात्मक अभिक्रिया : यह अभिक्रिया सूर्य के प्रकाश या परॉक्साइड की उपस्थिति में संपन्न होती है। इसमें मध्यवर्ती मुक्त मूलक बनता है जो अन्य किसी मुक्त मूलक से क्रिया करके उत्पाद अणु बना लेता है।
[III] विलोपन अभिक्रिया
यह अभिक्रिया योगात्मक अभिक्रिया के ठीक विपरीत होती है। इन अभिक्रियाओं में किसी अणु में से दो समूह या परमाणु निकल जाते है तथा एक नए बंध का निर्माण होता है। अणुओं के विलोपन के आधार पर ये तीन प्रकार की होती है –
निर्जलीकरण : जल के अणु का बाहर निकलना।
वि-हैलोजनीकरण : हैलोजन के अणु का बाहर निकलना।
वि-हाइड्रो हैलोजनीकरण : HX का बाहर निकलना।
[IV] पुर्नविन्यास अभिक्रिया
इस अभिक्रिया में एक ही अणु में उपस्थित क्रियात्मक समूह एक स्थिति से दूसरी स्थिति पर गमन करता है
या
विभिन्न परमाणुओं की स्थिति बदलने से अणु की मूल संरचना में परिवर्तन होकर नयी संरचना का उत्पाद प्राप्त होता है।
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