Ending on pollution in hindi
Answers
Answered by
2
ANSWER}
भूमिका
मनुष्य प्रकृति की सर्व श्रेष्ठ रचना है । जब तक वह प्रकृति .के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता तब तक उसका जीवन सहज और स्वाभाविक गति से चलता रहता है । विज्ञान की प्रगति के कारण औद्योगिक विकास में मनुष्य की रुचि इतनी बढ़ गई है कि वह प्रकृति के साथ अपना सामंजस्य प्रायः समाप्त न बैठा है । वैज्ञानिकों का मत है कि प्रकृति में किसी प्रकार की गन्दगी नहीं । उसका बदला हुआ रूप प्राणी जगत् को किसी प्रकार कीं हानि नहीं पहुंचाता ।
प्रदूषण का कारण
आज के औद्योगिक युग में संयन्त्रों, मोटर-वाहनों, रेलों तथा कल-कारखानों की संख्या अत्यधिक बढ़ गई है । उद्योग जितने बढ़ेंगे, उतनी ही ज्यादा गर्मी फैलाएंगे । धूएँ में से कार्बन मोनोक्साइड काफी मात्रा में निकलती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है । अनुमान लगाया गया है कि 960 किलोमीटर की यात्रा में एक मोटर-वाहन जितनी आक्सीजन का प्रयोग करता है, उतनी आक्सीजन मनुष्य .को एक वर्ष के लिए चाहिए । हवाई जहाज., तेल-शोधन, चीनी-मिट्टी की मिल, चमड़ा, कागज, रबर के कारखाने आदि को ईंधन की आवश्यकता होती है । इस ईंधन के जलने से जो धूँआ उत्पन्न होता है, उससे प्रदूषण फैलता है । यह प्रदूषण एक जगह स्थिर नहीं रहता बल्कि वायु के प्रवाह से यह तीव्र गति से सारे संसार को कुप्रभावित करता है । घनी आबादी वाले क्षेत्र इससे अधिक प्रभावित होते हैं । वायु में प्रदूषण फैलता है और आक्सीजन की कमी होने लगती है ।
प्रदूषण की वृद्धि का कारण
टोकियो विश्व भर में सबसे अधिक प्रदूषित नगर है । यहां पुलिस के लिए जगह-जगह पर ऑक्सीजन के सिलण्डर लगे रहते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर वे उनका उपयोग कर सकें । धुएं और कुहरे की स्थिति में हवा को छानने के लिए मुँह पर पट्टी बांधनी पड़ती है । इस पर भी वहां आँख, नाक और गले के रोगों की अधिकता बनी रहती है । लन्दन में चार घण्टों तक ट्रैफिक सम्भालने वाले सिपाही के फेफड़ों में इतना विष भर जाता है मानो उसने 105 सिगरेट पिए हों ।
प्रदूषण की समस्या के पीछे जन वृद्धि का संकट भी काम कर रहा है । इस जनवृद्धि के कारण ग्रामों, नगरों .तथा महानगरों को विस्तार देने की आवश्यकता का अनुभव हो रहा है । परिणामस्वरूप जंगल काटकर वहां बस्तियां बसाई जा रही हैं । वृक्षों और वनस्पतियों की कमी के कारण प्रकृति की स्वाभाविक क्रिया में असन्तुलन पैदा हो गया है । प्रकृति जो जीवनोपयोगी सामग्री जुटाती है, उसकी उपेक्षा हो रही है । प्रकृति का स्वस्थ वातावरण दोषपूर्ण हो गया है । इसी को पर्यावरण या प्रदूषण की समस्या कहा जाता है । कल-कारखानों की अधिकता के कारण वातावरण दूषित होता जा रहा है । वाहनों तथा मशीनों के शोर से ध्वनि प्रदूषण फैलता है जिससे कानों के बहरा हो जाने का डर बना रहता है । मनुष्य अनेक प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक रोगों का शिकार बनता जा रहा है ।
नियंत्रण की आवश्यकता
जब तक मनुष्य प्रकृति के साथ तालमेल. स्थापित नहीं करता तब तक उसकी औद्योगिक प्रगति व्यर्थ है । इस प्रगति को नियन्त्रण में रखने की जरूरत है । मशीन हम पर शासन न करे बल्कि हम मशीन पर शासन करें । हम ऐसे औद्योगिक विकास से विमुख रहें, जो हमारे सहज जीवन में बाधा डाले । हम वनों, पर्वतों, जलाशयों और नदियों के लाभ से वंचित न हों । नगरों के साथ -साथ ग्राम भी सम्पन्न बने रहे क्योंकि बहुत-सी बातों में नगर ग्रामों पर निर्भर करते हैं । नगरीय संस्कृति के साथ -साथ ग्रामीण संस्कृति का भी विकास होता रहे ।
समाधान
प्रदूषण की समस्या से बचने के लिए यह जरूरी है कि विषैली गैस, रसायन तथा जल-मल उत्पन्न करने वाले कारखानों को आवास के स्थानों से कहीं दूर खुले स्थानों पर स्थापित किया जाए ताकि नगरवासियों को प्राकृतिक खुराक ( ऑक्सीजन, प्राणवायु) प्राप्त होती रहे । इसके साथ ही नगरों के जल-मल के बाहर निकालने वाले नालों को जमीन के नीचे दबाया जाए ताकि ये वातावरण को प्रदूषित न कर सकें । वन महौत्सव के महत्त्व को समझते हुए बारा-बगीचों का विकास किया जाए । सड़कों के किनारों पर वृक्ष लगाएं जाएं । औद्योगिक उन्नति एवं प्रगति की सार्थकता इसमें है कि मनुष्य सुखी, स्वस्थ एवं सम्पन्न बना रहे । इसके लिए यह जरूरी है कि प्रकृति को सहज रूप से अपना कार्य करने के लिए अधिक-से-अधिक अवसर दिया जाए ।
भूमिका
मनुष्य प्रकृति की सर्व श्रेष्ठ रचना है । जब तक वह प्रकृति .के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता तब तक उसका जीवन सहज और स्वाभाविक गति से चलता रहता है । विज्ञान की प्रगति के कारण औद्योगिक विकास में मनुष्य की रुचि इतनी बढ़ गई है कि वह प्रकृति के साथ अपना सामंजस्य प्रायः समाप्त न बैठा है । वैज्ञानिकों का मत है कि प्रकृति में किसी प्रकार की गन्दगी नहीं । उसका बदला हुआ रूप प्राणी जगत् को किसी प्रकार कीं हानि नहीं पहुंचाता ।
प्रदूषण का कारण
आज के औद्योगिक युग में संयन्त्रों, मोटर-वाहनों, रेलों तथा कल-कारखानों की संख्या अत्यधिक बढ़ गई है । उद्योग जितने बढ़ेंगे, उतनी ही ज्यादा गर्मी फैलाएंगे । धूएँ में से कार्बन मोनोक्साइड काफी मात्रा में निकलती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है । अनुमान लगाया गया है कि 960 किलोमीटर की यात्रा में एक मोटर-वाहन जितनी आक्सीजन का प्रयोग करता है, उतनी आक्सीजन मनुष्य .को एक वर्ष के लिए चाहिए । हवाई जहाज., तेल-शोधन, चीनी-मिट्टी की मिल, चमड़ा, कागज, रबर के कारखाने आदि को ईंधन की आवश्यकता होती है । इस ईंधन के जलने से जो धूँआ उत्पन्न होता है, उससे प्रदूषण फैलता है । यह प्रदूषण एक जगह स्थिर नहीं रहता बल्कि वायु के प्रवाह से यह तीव्र गति से सारे संसार को कुप्रभावित करता है । घनी आबादी वाले क्षेत्र इससे अधिक प्रभावित होते हैं । वायु में प्रदूषण फैलता है और आक्सीजन की कमी होने लगती है ।
प्रदूषण की वृद्धि का कारण
टोकियो विश्व भर में सबसे अधिक प्रदूषित नगर है । यहां पुलिस के लिए जगह-जगह पर ऑक्सीजन के सिलण्डर लगे रहते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर वे उनका उपयोग कर सकें । धुएं और कुहरे की स्थिति में हवा को छानने के लिए मुँह पर पट्टी बांधनी पड़ती है । इस पर भी वहां आँख, नाक और गले के रोगों की अधिकता बनी रहती है । लन्दन में चार घण्टों तक ट्रैफिक सम्भालने वाले सिपाही के फेफड़ों में इतना विष भर जाता है मानो उसने 105 सिगरेट पिए हों ।
प्रदूषण की समस्या के पीछे जन वृद्धि का संकट भी काम कर रहा है । इस जनवृद्धि के कारण ग्रामों, नगरों .तथा महानगरों को विस्तार देने की आवश्यकता का अनुभव हो रहा है । परिणामस्वरूप जंगल काटकर वहां बस्तियां बसाई जा रही हैं । वृक्षों और वनस्पतियों की कमी के कारण प्रकृति की स्वाभाविक क्रिया में असन्तुलन पैदा हो गया है । प्रकृति जो जीवनोपयोगी सामग्री जुटाती है, उसकी उपेक्षा हो रही है । प्रकृति का स्वस्थ वातावरण दोषपूर्ण हो गया है । इसी को पर्यावरण या प्रदूषण की समस्या कहा जाता है । कल-कारखानों की अधिकता के कारण वातावरण दूषित होता जा रहा है । वाहनों तथा मशीनों के शोर से ध्वनि प्रदूषण फैलता है जिससे कानों के बहरा हो जाने का डर बना रहता है । मनुष्य अनेक प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक रोगों का शिकार बनता जा रहा है ।
नियंत्रण की आवश्यकता
जब तक मनुष्य प्रकृति के साथ तालमेल. स्थापित नहीं करता तब तक उसकी औद्योगिक प्रगति व्यर्थ है । इस प्रगति को नियन्त्रण में रखने की जरूरत है । मशीन हम पर शासन न करे बल्कि हम मशीन पर शासन करें । हम ऐसे औद्योगिक विकास से विमुख रहें, जो हमारे सहज जीवन में बाधा डाले । हम वनों, पर्वतों, जलाशयों और नदियों के लाभ से वंचित न हों । नगरों के साथ -साथ ग्राम भी सम्पन्न बने रहे क्योंकि बहुत-सी बातों में नगर ग्रामों पर निर्भर करते हैं । नगरीय संस्कृति के साथ -साथ ग्रामीण संस्कृति का भी विकास होता रहे ।
समाधान
प्रदूषण की समस्या से बचने के लिए यह जरूरी है कि विषैली गैस, रसायन तथा जल-मल उत्पन्न करने वाले कारखानों को आवास के स्थानों से कहीं दूर खुले स्थानों पर स्थापित किया जाए ताकि नगरवासियों को प्राकृतिक खुराक ( ऑक्सीजन, प्राणवायु) प्राप्त होती रहे । इसके साथ ही नगरों के जल-मल के बाहर निकालने वाले नालों को जमीन के नीचे दबाया जाए ताकि ये वातावरण को प्रदूषित न कर सकें । वन महौत्सव के महत्त्व को समझते हुए बारा-बगीचों का विकास किया जाए । सड़कों के किनारों पर वृक्ष लगाएं जाएं । औद्योगिक उन्नति एवं प्रगति की सार्थकता इसमें है कि मनुष्य सुखी, स्वस्थ एवं सम्पन्न बना रहे । इसके लिए यह जरूरी है कि प्रकृति को सहज रूप से अपना कार्य करने के लिए अधिक-से-अधिक अवसर दिया जाए ।
Samarthattituded:
mark brainlist plz
Similar questions