Essay in hindi on jansanchar abhivyakti aur madhyam
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संचार या संप्रेषण में भाषा मुख्य माध्यम है। बिना माध्यम के संचार असंभव है। भाषा वह पहला विकसित माध्यम है, जिसने संचार को व्यवस्था दी। माध्यम भाषा हो, चित्र हो या संगीत, वह माध्यम तभी माना जायेगा जब सूचना भेजनेवाला और सूचना पानेवाला-दोनों उसे समझें।
जन माध्यमों में भाषा का स्तर बदलता रहता है। इसमें हमें उनमें भाषा के अलग ढंग से लिखने, पढ़ने और बोलने की आवश्यकता होती है। भाषा के कुछ सूक्ष्म एवम् महत्वपूर्ण पक्ष हैं-1.प्रोक्ति 2. एकालाप 3.प्रत्यक्ष एवम् अप्रत्यक्ष कथन और 4.सहप्रयोग।
1.प्रोक्ति (Discoures)- प्रोक्ति में प्र+उक्ति अर्थात् प्रकृष्ट उक्ति होती है। कोश के अनुसार प्रोक्ति के अर्थ हैं- विचारों का संप्रेषण (Communication of ideas), वार्तालाप (Conversation), सूचना (Information), विशेषतः बातचीत द्वारा, भाषण, एक औपचारिक एवम् व्यवस्थित लेख (Article) और किसी विषय का विस्तृत और औपचारिक विवेचन। उक्ति या उक्तियों का समुच्चय जब संदर्भ के साथ-साथ कोई संदेश भी संप्रेषित करता है, तो उसे प्रोक्ति कहते हैं। सामान्य उक्ति से साहित्य रचना को अलग करके दिखाने के लिए प्रोक्ति के साथ साहित्यिक विशेषण जोड़कर साहित्यिक प्रोक्ति शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
1. चिड़िया उड़ती है।- यह केवल वाक्य है।
2. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सदन इस वाक्य में वक्ता, श्रोता
में भरोसा दिलाया कि सरकार हर और परिवेश का संदर्भ है।
मामले में पारदर्शित बनाये रखेगी, इसलिए यह वाक्य उक्ति है।
किसी के खिलाफ बदले की भावना
से काम नहीं करेगी और दोषियों को
किसी हालत में नहीं बख्शेगी।
3. वास्तव में जीवन सौंदर्य का आत्मा इस वाक्य में संदर्भ है। इसलिए यह कथन प्रोक्ति है।
है, पर वह सामंजस्य की रेखाओं में इसमें संदेश है-1.जीवन सौंदर्य की आत्मा के समान होता है।
जितनी मूर्तिमत्ता पाता है, उतनी 2.वह सामंजस्य में ही सुंदर होता है। विषमता में नहीं।
विषमता में नहीं। इसलिए हमें जीवन में सामंजस्य रखना चाहिये।
इस दृष्टि से किसी नाटक के संवाद, उपन्यास या उपन्यास का कोई अंश, कहानी, कविता आदि सब प्रोक्ति हैं। इसके लिए शर्त यह है कि प्रोक्ति कहलानेवाली संरचना वक्ता, श्रोता और परिवेश के संदर्भ तथा संदेश से युक्त होनी चाहिये। यदि ऐसा नहीं है तो वह केवल वाक्य है।
संक्षेप में, संदेशयुक्त संरचना प्रोक्ति है। यानी संदेश प्रेषित करनेवाली संदर्भयुक्त उक्ति को प्रोक्ति कहते हैं। प्रोक्ति की रचना पूरी तरह व्याकरण संमत भी हो सकती है और व्याकरण का अतिक्रमण करनेवाली भी। साहित्यिक प्रोक्ति में व्याकरण द्वारा अनुमोदित संरचना से भिन्न तरह की संरचना मिलती है। इस प्रकार की प्रोक्तियाँ धारावाहिक की पट-कथा, नाट्य-लेखन, वृत्तचित्र (ड्रोक्यूमेंट्री) की कमेंटरी आदि लिखने में प्रयुक्त होती हैं। समाचार-लेखन में इनका प्रयोग बहुत कम होता है। समाचारों में उक्ति का प्रयोग सर्वाधिक होता है।
2.संलाप- भाषा के व्यवहार में कम से कम दो व्यक्त होते हैं-एक वक्ता और दूसरा श्रोता। इन के बीच भाषा के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान होता है। संलाप में वक्ता उत्तम पुरूष एकवचन होता है और श्रोता मध्यम पुरूष, किन्तु यह स्थिति बदलती रहती है। वक्ता के कथन का उत्तर देते समय पहले जो श्रोता होता है, वह वक्ता बन जाता है और वक्ता श्रोता बन जाता है।
संलाप में हिस्सा लेनेवालों में माध्यम रूप में एक ही भाषा होनी चाहिये और उसकी जानकारी उन्हें हो, यह जरूरी है। वरना संलाप (बातचीत) नहीं होगा। इसी प्रकार उस भाषा के व्याकरण, वाक्य-विन्यास आदि का ज्ञान दोनों पक्षों का होना चाहिये।
जन माध्यमों में भाषा का स्तर बदलता रहता है। इसमें हमें उनमें भाषा के अलग ढंग से लिखने, पढ़ने और बोलने की आवश्यकता होती है। भाषा के कुछ सूक्ष्म एवम् महत्वपूर्ण पक्ष हैं-1.प्रोक्ति 2. एकालाप 3.प्रत्यक्ष एवम् अप्रत्यक्ष कथन और 4.सहप्रयोग।
1.प्रोक्ति (Discoures)- प्रोक्ति में प्र+उक्ति अर्थात् प्रकृष्ट उक्ति होती है। कोश के अनुसार प्रोक्ति के अर्थ हैं- विचारों का संप्रेषण (Communication of ideas), वार्तालाप (Conversation), सूचना (Information), विशेषतः बातचीत द्वारा, भाषण, एक औपचारिक एवम् व्यवस्थित लेख (Article) और किसी विषय का विस्तृत और औपचारिक विवेचन। उक्ति या उक्तियों का समुच्चय जब संदर्भ के साथ-साथ कोई संदेश भी संप्रेषित करता है, तो उसे प्रोक्ति कहते हैं। सामान्य उक्ति से साहित्य रचना को अलग करके दिखाने के लिए प्रोक्ति के साथ साहित्यिक विशेषण जोड़कर साहित्यिक प्रोक्ति शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
1. चिड़िया उड़ती है।- यह केवल वाक्य है।
2. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सदन इस वाक्य में वक्ता, श्रोता
में भरोसा दिलाया कि सरकार हर और परिवेश का संदर्भ है।
मामले में पारदर्शित बनाये रखेगी, इसलिए यह वाक्य उक्ति है।
किसी के खिलाफ बदले की भावना
से काम नहीं करेगी और दोषियों को
किसी हालत में नहीं बख्शेगी।
3. वास्तव में जीवन सौंदर्य का आत्मा इस वाक्य में संदर्भ है। इसलिए यह कथन प्रोक्ति है।
है, पर वह सामंजस्य की रेखाओं में इसमें संदेश है-1.जीवन सौंदर्य की आत्मा के समान होता है।
जितनी मूर्तिमत्ता पाता है, उतनी 2.वह सामंजस्य में ही सुंदर होता है। विषमता में नहीं।
विषमता में नहीं। इसलिए हमें जीवन में सामंजस्य रखना चाहिये।
इस दृष्टि से किसी नाटक के संवाद, उपन्यास या उपन्यास का कोई अंश, कहानी, कविता आदि सब प्रोक्ति हैं। इसके लिए शर्त यह है कि प्रोक्ति कहलानेवाली संरचना वक्ता, श्रोता और परिवेश के संदर्भ तथा संदेश से युक्त होनी चाहिये। यदि ऐसा नहीं है तो वह केवल वाक्य है।
संक्षेप में, संदेशयुक्त संरचना प्रोक्ति है। यानी संदेश प्रेषित करनेवाली संदर्भयुक्त उक्ति को प्रोक्ति कहते हैं। प्रोक्ति की रचना पूरी तरह व्याकरण संमत भी हो सकती है और व्याकरण का अतिक्रमण करनेवाली भी। साहित्यिक प्रोक्ति में व्याकरण द्वारा अनुमोदित संरचना से भिन्न तरह की संरचना मिलती है। इस प्रकार की प्रोक्तियाँ धारावाहिक की पट-कथा, नाट्य-लेखन, वृत्तचित्र (ड्रोक्यूमेंट्री) की कमेंटरी आदि लिखने में प्रयुक्त होती हैं। समाचार-लेखन में इनका प्रयोग बहुत कम होता है। समाचारों में उक्ति का प्रयोग सर्वाधिक होता है।
2.संलाप- भाषा के व्यवहार में कम से कम दो व्यक्त होते हैं-एक वक्ता और दूसरा श्रोता। इन के बीच भाषा के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान होता है। संलाप में वक्ता उत्तम पुरूष एकवचन होता है और श्रोता मध्यम पुरूष, किन्तु यह स्थिति बदलती रहती है। वक्ता के कथन का उत्तर देते समय पहले जो श्रोता होता है, वह वक्ता बन जाता है और वक्ता श्रोता बन जाता है।
संलाप में हिस्सा लेनेवालों में माध्यम रूप में एक ही भाषा होनी चाहिये और उसकी जानकारी उन्हें हो, यह जरूरी है। वरना संलाप (बातचीत) नहीं होगा। इसी प्रकार उस भाषा के व्याकरण, वाक्य-विन्यास आदि का ज्ञान दोनों पक्षों का होना चाहिये।
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