Hindi, asked by jiog3054, 1 year ago

Essay on “Acharya Vinoba Bhave”-in Hindi

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Answered by abushadsiddiqui31
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भारतीय संस्कृति में ॠषी परंपरा का दुवा ऐसी पहचान विनोबा भावे – Vinoba Bhave की जा सकती है. अनेक धर्मो के तत्त्वज्ञान का अभ्यास, सर्वोदय और अहिंसा की विस्तार की रचना और science को अध्यात्म से जोड़ना ऐसी विनोबा की सोच भगवतगिता के भाष्यकार से स्वतंत्रता सेनानी ऐसी बहोत सी भूमिकाये उन्होंने अच्छी से निभायी.

रायगड जिले के गागोदे इस गाव में 11 सिंतबर 1895 को जन्मे विनोबाने वाई के प्राज्ञपाठ स्कूल में भारतीय परंपरा वैसेही वैदिक संस्कृति का अभ्यास किया. लेकिन विनोबा का वैशिष्ट्य मतलब की वो सिर्फ ज्ञानार्थी नाही थे, तो कृतिपर ही उनका विश्वास था. स्वातंत्र पूर्व समय के सविनय सत्याग्रह के आंदोलन में पहले सत्याग्रही के रूप में महात्मा गांधी ने उन्हें चुना था. आधुनिक राजकीय विचारो के विषय में उनका अभ्यास था. और भारतीय संस्कृति और जिंदगी जीने का तरीका इनमे विशेष आकर्षण था. इस Interest में से उन्होंने धुले के जेल में कैदी यों के सामने भगवद्गीता के विषय में प्रवचन दिया.

महात्मा गांधी के जैसी ही विनोबा को भी प्राचीन भारत के आश्रम के जीवन के विषय में विशेष  आस्था थी. गांधीजीने वर्धा में स्थापन किये हुये सेवाग्राम आश्रम में विनोबा का शुरुवाती दौर में रहते थे. बादमे वर्धा  में ही उन्होंने पवनार आश्रम की स्थापना की. आखिर तक वो वही रहे.

विनोबाने किया हुवा ‘सब भूमी गोपाल की’ का नाश उस समय में भारत में बहोत गूंजा. विनोबा खुद को विश्व नागरिक समजते थे इसीवजह से अपने किसी भी लेख अथवा संदेश के आखीर में वो ‘जय जगत’ ऐसा याद से लिखते थे.

हिंदु, मुस्लिम, ख्रिचन वैसेही बौद्ध ये सभी धर्म को लोगों में संघर्ष के अलावा प्रेम, बंधुभाव और शांतता की शिक्षा उन्होंने दी. इसी दृष्टिकोण के वजह से उन्होंने हिंदू के धर्म ग्रथों के जैसे ही मुस्लिम, और ख्रिस्ती इन धर्म ग्रंथो का भी उन्होनें अभ्यास किया.

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