Essay on agr exams na hote toh
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निबंध - अगर परीक्षा न होती तो
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मनुष्य एक चिन्तनशील प्राणी हैं। वह हर समय सोचता रहता हैं। शायद यहीं वो बात हैं जो मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग भी बनाती हैं। ऐसे मैं हम कभी कभी ऐसी कल्पना भी कर जाते हैं कि जो हमें हसनें पर भी मजबूर कर देती हैं और सोचने पर भी। ऐसी ही एक कल्पना हैं यदि परीक्षा न होती तो..........
कितना अच्छा होता यदि परीक्षा न होती। हम चाहे तो पढ़ते, चाहे न पढ़ते। हम फेल होने का भय भी नहीं होता और बिना पढ़े ही अगली कक्षा में भी आ जातें। साल भर कितनी मस्ती करते? सारे दोस्तो की पार्टियों में भी शामिल हो जाते। जब चाहे ननिहाल भी चले जाते। ननिहाल ही क्यो? जहां चाहे वहां घूम आते। कितना कुछ सीखने को मिलता? न हमें शिक्षक परेशान करते और न हीं परिजन। इससे अच्छा और क्या हो सकता था ?
लेकिन मैं सोचता हूं कि यदि परीक्षा नहीं होती तो शायद हम इतना न तो पढ़ते और न ही शिक्षक भी हमें पढ़ाने में इतनी रूचि लेते। हमारा ज्ञान भी नहीं बढ़ता। परीक्षा परिणाम के दिन न तो अभिभावक हमारे साथ आते और न ही हमें किसी प्रकार का इनाम मिलता। न हमें प्रगति पत्र मिलता और न हीं परिजनों की शाबासी। हमें अपने दोस्तो के बीच भी सम्मान नहीं मिलता। क्यों कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि कौन कक्षा में होशियार हैं और कौन नहीं? फिर तो हमें किसी की शाबासी भी नहीं मिलती। स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर भी हमें मंच पर नहीं बुलाया जाता और न ही किसी प्रकार का इनाम मिलता।
इससे हमारा तो महत्त्व ही कम हो जाता। और आगे भविष्य में भी हम किसी कैरियर में सफल नहीं हो पाते। हम में दबाव झलने की क्षमता ही खत्म हो जाती।
इसलिए ये सोचने के साथ साथ कि परीक्षा न हो इसके साथ ये भी सोचता हूं कि परीक्षा को होना अच्छा भी हैं।