Hindi, asked by saanvi6080, 1 year ago

Essay on athithi devo bhav in hindi 150 words

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Answered by vaibhav176
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हिंदुस्तान एक ऐसा देश है जिसमें एक नहीं अनेकों विशेषताएं हैं ! फिर चाहे वो अपनत्व की भावना हो , फिर चाहे वो रिश्तों का मान सम्मान हो , सब कुछ अपने आप में विशाल है ! इन सब के अलावा एक और परंपरा है हमारे देश में जो युगों युगों से चली आ रही है , और आज भी चल रही है ! और वो परम्परा है "अतिथि देवो भवः" की ! आज भी हमारे कई घरों में अतिथि को भगवान के रूप में देखा जाता हैं ! और ये बात सही भी है , क्योंकि हमारा अतिथि कई किलोमीटर की दूरी तय कर हमसे मिलने जो आता है ! कई अतिथियों से तो हमारा कई वर्षों में मिलना होता है ! तो हमारा भी फर्ज बनता है उनकी सेवा करना और उसका उचित ध्यान रखना ! अतिथि हमारा भगवान् होता है और हमें उनका आदर करना चाहिए ! हम तो वो हिन्दुस्तानी हैं जो दुश्मन को भी अपने गले लगा लेते हैं , फिर अतिथि तो हमारे अपने होते हैं ! और हम लोग तो हमेशा से ही हर किसी का आदर करते हैं ! यह हमारी परंपरा है और यही हमें सिखाया जाता है और हम इस परम्परा को कभी नहीं भूलेंगे ! मैं यहाँ बात कर रहा हूँ ऐसे विदेशी अतिथियों की जो अतिथि बनकर तो आते हैं किन्तु भूल जाते हैं अपने आने का सबब !

आज देश के सभी न्यूज़ पेपर, टेलीविजन और सरकार हम सभी को सिर्फ एक बात बार-बार रट्टू तोते की तरह याद करवा रही है कि, "अतिथि देवो भवः" देश में आने वाले सभी विदेशी महमानों का हमें ध्यान रखना चाहिए, उनसे हमारी रोजी रोटी चलती है , वह देश की अर्थव्यवस्था में बहुत सहयोग करते हैं ! और दुनिया भर की बातें जो हमें बताई जाती है ! हम सभी लोग इन सब बातों का विशेष ध्यान रखते हैं और ये बात है भी सही किन्तु देश में हमारे कुछ असमाजिक तत्व ऐसे भी हैं जो भूल जाते हैं इन सब बातों को और करते हैं देश को शर्मशार करने बाली हरकतें ! हम सभी को उनको एक अच्छा सबक सिखाना चाहिए जिससे वह इस तरह की हरकतें ना कर सकें , और देश का नाम ख़राब ना हो , तभी कहलायेगा सही "अतिथि देवो भवः " 

किन्तु आज देश में आने वाले महमानों को भी अपनी मर्यादाओं में रहना चाहिए उनका उलंघन नहीं करना चाहिए ! हमारी अच्छाई को वो हमारी कमजोरी ना समझें ! इस देश में एक अच्छे मेहमान की तरह आयें और चले जाएँ ! किन्तु ऐसा नहीं हैं , कुछ दिनों पहले इन्ही अतिथियों ने जो उधम जो उत्पात मचाया वह भी देखने लायक था ! हमारे देश के एक ऐसे राष्ट्रिय पार्क , जहाँ पर इन्होने पावंदी होने बावजूद दो -तीन दिन तक जमकर शराब , नाच गाना और अश्लील हरकतें की जो हमारे लिए शर्मिंदगी वाली थी ! तो फिर क्या करना चाहिए ऐसे महमानों का , यह कोई एक अकेली घटना नहीं हैं जो इस देश में पहली बार हुई हो ! यह लोग इस देश में मेहमान बनकर आते हैं और अपने साथ लाते हैं नशे का बड़ा बाजार , जिसमें कई युवा इनके चक्कर में फंसकर नशे के आदि हो रहे हैं ! कुछ विदेशी अपने यहाँ की गन्दी संस्कृति को हमारे बीच में फैलाकर हमारे माहौल को गन्दा कर रहे हैं ! आज देश की युवा पीढ़ी ज्यादातर इन्ही लोगों का अनुशरण कर रही है ! देश बड़े बड़े होटलों में इन विदेशियों द्वारा जिस्मफरोशी के लिए लड़कियों की फरमाइश की जाती है ! ऐसे बहुत से गलत काम हैं जो इस देश आकर ये लोग करते हैं ! आते हैं मेहमान बनकर और फिर अपने पैसे की चमक धमक से भटके हुए लोगों को बरगलाकर , भ्रमित कर अपने यहाँ की गंदगी हमारे दिलो -दिमाग में भर कर हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर चले जाते हैं ! 

vansh197: good
Answered by Anonymous
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अतिथि देवो भवः

हम हिंदुस्तानियों को मेहमान नवाजी की महान परम्परा विरासत में मिली है | यहाँ मेहमान को भगवान का दर्जा दिया जाता है | हमारे पूर्वजों का मानना था कि वे लोग बहुत भाग्यवान होते हैं जिनके घर मेहमान आते हैं | तभी तो यहाँ की संस्कृति में लिखा गया है कि ‘अतिथि देवो भवः’|

यह केवल अपने खुद के मेहमानों के बारे में लागू नहीं होता बल्कि इस संसार के प्रत्येक व्यक्ति का हिदुस्तान में इतना भावभीना स्वागत किया जाता है कि यहाँ आने वाला हमारी मेहमान नवाजी पर अभिभूत होकर रह जाता है | हाल ही में इसका उदहारण अमेरिका के राष्ट्रपति बैरक ओबामा के शब्दों में साफ़ झलकता है जबकि उन्होंने कहा था, “भारतीयों की आँखों से उनका दिल नजर आता है |”

अतिथि हमारी संस्कृति के चेतना स्वरूप हैं। वे जहां जाते हैं स्वयं से श्रेष्ठ स्थान मानकर जाते हैं। उनका विश्वास सेवा करने वाले का मंगल ही करता है। अतिथि को जिस आंख से देखा जाता है, उसका फल तत्काल दिखाई पड़ता है। अतिथि का मान बढ़ाने वाले गौरव पाते हैं। श्रीकृष्ण जिस तरह सुदामा का नाम सुनते ही नंगे पांव उनके दर्शन के लिए अकुलाते हुए पहुंचते हैं, घायल पैरों को अपने हाथ से धोकर कृष्ण अपनी महानता दिखाते हैं। टूटे तंदुल को सुदामा से मांगकर जितनी आत्मीयता में भगवान फांका मारते हैं, वह अतिथि के प्रति सामान्य को असामान्य बनाने का दैवी भाव ही है। समर्थ होकर भी असमर्थ को गले लगाने का करुणा भाव अतिथि सत्कार का सोपान है। अतिथि पर हंसने वाले अतिथि के श्राप पाते हैं। अतिथि को भाव की भूख रहती है, संपत्ति की नहीं। महात्मा विदुर के घर भगवान का साग खाना कौन नहीं जानता। दुर्योधन के घर मेवा को बिना भाव के त्याग दिया। शबरी के जूठे बेर राम प्रेम भाव से खाते हैं। बेर की मिठास जानने के लिए शबरी अनजाने प्रेम में जूठे बेर ही राम को खिलाकर धन्य होती है। अतिथि वह है जो दोष को गुण जाने और बिना खाए अघाने की अनुभूति करे। अतिथि बिगड़ते कार्य को संभालने का धर्म निभाने पर आदर पाते हैं। अतिथि मान के साथ गरल का पान अमृत जानकर जगदीश बनते हैं। बिना सम्मान, अपनी मनमानी करके अनुचित स्थान ग्रहण करने मात्र से अमृत पान करके भी अतिथि को राहु बनकर अपना सिर ही गंवाना पड़ता है। आसन के पाने पर अपना आसन छोड़ने वाले महान बनते हैं। बिना समय अतिथि का प्रदर्शन मान देने वाले के अंदर घृणा-भेद बढ़ाता है। भूखे अतिथि का श्राप अभाव व कुमति बढ़ाता है। अतिथि की संतुष्टि असीम फलदायक है। संकोच करने वाले भूखे का पेट भरने वाले पुण्यात्मा होते हैं। रहीम कहते हैं-रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। प्रेम का धागा तोड़ने पर गांठ पड़ ही जाती है। अत: अतिथि देवता है
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