essay on azadi ka amrit mahotsav in 500 words
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1857 का स्वतंत्रता संग्राम, महात्मा गांधी का विदेश से लौटना, देश को ‘सत्याग्रह’ की ताकत फिर याद दिलाना, लोकमान्य तिलक का “पूर्ण स्वराज्य” का आह्वान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का “दिल्ली मार्च”, “दिल्ली चलो” का नारा कौन भूल सकता है।
आज नए भारत के समुद्र-मंथन में,
जन-जन की भागीदारी है।
आजादी के अमृत महोत्सव की बेला में,
आत्मनिर्भर भारत की तैयारी है।
21वीं सदी का भारत आत्मनिर्भरता की तरफ कदम बढ़ा रहा है। कोरोना काल में यह सारे विश्व के सामने प्रत्यक्ष सिद्ध भी हो गया कि आत्मनिर्भर भारत मानवता को महामारी के संकट से बाहर निकालने में, वैक्सीन निर्माण में एक स्वस्थ उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। जिसने न केवल अपनी अपितु विश्व के अनेक देशों की जनता की स्वास्थ्य रक्षा के लिए भरसक प्रयास किए तथा कोरोना वैक्सीन उपलब्ध करवाई।
भारत की उपल्धियां आज सिर्फ हमारी अपनी नहीं हैं, बल्कि ये पूरी दुनिया को रोशनी दिखाने वाली हैं, पूरी मानवता को उम्मीद जगाने वाली हैं। हम भारतीय चाहे देश में रहे हों, या फिर विदेश में, हमने अपनी मेहनत से खुद को साबित किया है। हमें गर्व है । हमें अपने संविधान, हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं पर गर्व है। भारत लोकतंत्र की जननी है और आज भी लोकतंत्र को मजबूती देते हुए आगे बढ़ रहा है। भारत की आत्मनिर्भरता से ओतप्रोत हमारी विकास यात्रा पूरी दुनिया की विकास यात्रा को गति देने वाली है।
इतिहास के इस गौरव को सहेजने के लिए हर राज्य, हर क्षेत्र में इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। दांडी यात्रा से जुड़े स्थल का पुनरुद्धार देश ने दो साल पहले ही पूरा किया है। अंडमान में जहां नेताजी सुभाष ने देश की पहली आज़ाद सरकार बनाकर तिरंगा फहराया था, देश ने उस विस्मृत इतिहास को भी भव्य आकार दिया है। अंडमान निकोबार के द्वीपों को स्वतन्त्रता संग्राम के नामों पर रखा गया है। जालियाँवाला बाग में स्मारक हो या फिर ‘पाइका-आंदोलन’ की स्मृति में स्मारक, सभी पर काम हुआ है। बाबा साहेब से जुड़े जो स्थान दशकों से भूले-बिसरे पड़े थे, उनका भी विकास देश ने पंचतीर्थ के रूप में किया है।
भारत का हर नागरिक लोकमान्य तिलक के 'पूर्ण स्वराज' 'आज़ाद हिंद फ़ौज के 'दिल्ली चलो', भारत छोड़ो आंदोलन के आह्वान को देश कभी नहीं भूल सकता। हम मंगल पांडे, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मी बाई, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, पं. नेहरू, सरदार पटेल, अंबेडकर से प्रेरणा लेता हैं।
भारत को स्वतंत्र कराने में देश के कोने-कोने से कितने ही दलित, आदिवासी, महिलाएं और युवा थे जिन्होंने असंख्य तप-त्याग किए। आजादी के आंदोलन की इस ज्योति को निरंतर जागृत करने का काम, पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, हर दिशा में, हर क्षेत्र में, हमारे संतो-महंतों, आचार्यों ने किया था। एक प्रकार से भक्ति आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी स्वाधीनता आंदोलन की पीठिका तैयार की थी।
जब गाँधी जी ने दांडी यात्रा की और नमक कानून तोडा, उस दौर में नमक भारत की आत्मनिर्भरता का एक प्रतीक था। अंग्रेजों ने भारत के मूल्यों के साथ-साथ इस आत्मनिर्भरता पर भी चोट की थी। भारत के लोगों को इंग्लैंड से आने वाले नमक पर निर्भर होना पड़ा था । गांधी जी ने देश के इस पुराने दर्द को समझा, जन-जन से जुड़ी उस नब्ज को पकड़ा। देखते ही देखते ये आंदोलन हर एक भारतीय का आंदोलन बन गया, हर एक भारतीय का संकल्प बन गया। हमारे यहां नमक का मतलब है- वफादारी। हम आज भी कहते हैं कि हमने देश का नमक खाया है। ऐसा इसलिए नहीं क्योंकि नमक कोई बहुत कीमती चीज है। ऐसा इसलिए क्योंकि नमक हमारे यहाँ श्रम और समानता का प्रतीक है।
जब हम ब्रिटिश शासन के युग के बारे में सोचते हैं तो ध्यान आता है कि जब करोड़ों लोग स्वतंत्रता का इंतजार कर रहे थे, तो यह स्वतंत्रता के 75 वर्षों के उत्सव को और भी महत्वपूर्ण बना देता है। आजादी का अमृत महोत्सव आज़ादी की लड़ाई के साथ-साथ आज़ाद भारत के सपनों और कर्तव्यों को देश के सामने रखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा।
हम सभी का सौभाग्य है कि हम आजाद भारत के इस ऐतिहासिक कालखंड के साक्षी बन रहे हैं जिसमें भारत उन्नति की नई ऊंचाइयों को छू रहा है। आज का भारत विश्व में अपना नाम अग्रिम पंक्ति में लिखवा चुका है। हम इस पुण्य अवसर पर बापू के चरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं तथा देश के स्वाधीनता संग्राम में अपने आपको आहूत करने वाले, देश को नेतृत्व देने वाली सभी महान विभूतियों के चरणों में नमन और उनका कोटि-कोटि वंदन करते हैं।