Essay on bachpan ki shararatein Hindi mein
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मेरा तो बचपना आज भी नहीं गया, मैं तो आज भी बहुत शरारत करता हूँ। बचपन में वैसे मैंने एक शरारत की थी जब मैं गर्मियों की छुट्टी में रायपुर मामा के यहां आया था। उस समय मै दोपहर मे एक दिन क्रिकेट खेलने गया था, तो वही पर मैंने एक मुर्गी दुकान वाले को मुर्गे का रेट पूछा, उस मुर्गे वाले से मैंने बोला कि मुझे एक खड़ी मुर्गा काट के दे दो, तो उसने कहा यह 95 रुपय का है, तो मैंने कहा पैसे की चिंता नहीं करो, मेरे पास बहुत पैसे है तुम इसे काटना शुरू करो। मेरे मन में तो सिर्फ यही चल रहा था कि मैं अपने सामने मुर्गे को कटते देखूं और मजे लूँ इतने में मेरा एक दोस्त आया और मुझे बोला कि चल यहां से भागते हैं क्योंकि पैसे तेरे पास है नहीं
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