essay on bharat ki yuva shakti in hindi in 200 words
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”मुझे कुछ साहसी और ऊर्जावान युवा पुरुष मिल जाएँ,
तो मैं देशभर में क्रान्ति ला सकता हूँ ।”
शुरू से ही युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहे स्वामी विवेकानन्द का यह कथन राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति के महत्व को दर्शाता है और सचमुच स्वतन्त्रता संग्राम में मंगल पाण्डेय, लक्ष्मीबाई, भगतसिंह, सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, खुदीराम बोस आदि युवाओं ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करके यह साबित कर दिया कि उनके लिए कुछ भी असम्भव नहींl
देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत भारतमाता की इन वीर और साहसी सन्तानों के सामने अंग्रेजों की एक न चली और उन्हें भारत छोड़कर जाना पड़ा । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी भारत को अपने पड़ोसी देशों-पाकिस्तान एवं चीन द्वारा किए गए युद्धों का सामना करना पड़ा ।
देश पर अनावश्यक रूप से थोपे गए इन युद्धों के दौरान हमारी सेना के जवानों ने जिस वीरता और साहस का प्रदर्शन किया, उससे हम भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊँचा उठ जाता है । कुछ वर्ष पूर्व हमारी सेना ने कारगिल में घुस आई पाकिस्तानी सेनाओं के भी छक्के छुड़ाए थे ।
पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा मुम्बई में ताज एवं अन्य स्थानों पर किए गर्व हमलों में भी भारत के जाँबाज सेना अधिकारियों और कमाण्डोज ने पूरी बहादुरी का परिचय दिया । सभी आतंकवादी मार गिराए गए और एक को बन्दी बना लिया गया । भारत के युवा वीरों की यह गाथा किसी से छिपी नहीं है ।
अपने बडे-बुजुर्गों के मार्गदर्शन में भारत के युवाओं ने देशभक्ति के अतिरिक्त अध्यात्म, धर्म, साहित्य, विज्ञान कृषि, उद्योग आदि क्षेत्रों में भी पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया है । बिना युवा शक्ति के भारत सोने की चिड़िया न कहलाता और अपनी अनगिनत देनों से विश्व को अभिभूत न कर पाता । अल्वर्ट आइंसटाइन ने कहा था- ”सम्पूर्ण मानव जाति को उस भारत का ऋणी होना चाहिए, जिसने विश्व को शून्य (0) दिया है ।”
मैक्समूलर ने भी भारतवर्ष की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए लिखा है – ”यदि मुझसे पूछा जाए कि किस आकाश के नीचे मानव-मस्तिष्क ने मुख्यतः अपने गुणों का विकास किया, जीवन की सबसे महत्वपूर्ण समस्या पर सबसे अधिक गहराई के साथ सोच-विचार किया और उनमें से कुछ ऐसे रहस्य दृढ़ निकाले, जिनकी ओर सम्पूर्ण विश्व को ध्यान देना चाहिए, जिन्होंने प्लेटों और काण्ट का अध्ययन किया, तो मैं भारतवर्ष की ओर संकेत करूँगा ।”
भारत की इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्रकवि मैयिलीशरण चुप्त’ ने भी लिखा है-
”देखो हमारा विश्व में, कोई नहीं उपमान था ।
नरदेव थे हम और भारत देवलोक समान था ।”
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