essay on charak in sanskrit
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इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘चरक संहिता’ हैं।चरक संहिता, आज भी चिकित्सा शास्त्र से जुड़ा सबसे पुराना और प्रामाणिक दस्तावेज माना है। इस ग्रन्थ की मूल रचना तो आत्रेय ऋषि के प्रतिभाशाली शिष्य वैद्य अग्निवेश ने की थी परन्तु महर्षि चरक ने इसमें संशोधन कर कुछ नये अध्यायों को इसमें जोड़कर इसे और अधिक उपयोगी बनाया। (Their famous scripture is ‘Charak Samhita’. The Charak Samhita, even today, is considered the oldest and authentic document associated with medical science. The original composition of this text was made by Vaidya Agnivesh, the talented disciple of Atreya Rishi, but Maharishi Charak made it more useful by amending it and adding a few new chapters to it.)
मूल रूप में तो इसकी रचना संस्कृत भाषा में हुई लेकिन बाद में इसका अनुवाद हिंदी के साथ – साथ अन्य भाषाओं में भी किया गया। (Originally it was composed in Sanskrit language but later it was translated into Hindi as well as in other languages.)
आयुर्वेद का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए भी ये ग्रन्थ प्रमाणिक और उपयोगी होने के कारण इसे आयुर्वेद के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया हैं। (For the students studying Ayurveda, these books have been included in the syllabus of Ayurveda due to being authentic and useful.)
mahrisi charak in hindi
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चरक संहिता के आठ खंड हैं –1 सूत्र स्थान| 2-निदान स्थान| 3-विमान स्थान| 4-शरीर स्थान| 5-इन्द्रिय स्थान| 6– चिकित्सा स्थान| 7-कल्प स्थान| 8-सिद्धि स्थान|(There are eight sections of Charak Samhita-1 formula. 2-Diagnostic Location | 3-plane space. 4-body location. 5-sense spot. 6- Medical location. 7-Ecliptic Location | 8-Siddhi place.)
महर्षि चरक को औषधि विज्ञान का पिता माना जाता हैं। महर्षि चरक ने समस्त रोगों का कारण वात ,पित और कफ को माना हैं जब भी उनका संतुलन बिगड़ता हैं शरीर में विभिन्न व्याधियां जन्म लेने लगती हैं। उनकी इस अवधारणा को आज भी आयुर्वेद भी माना जाता हैं। (Maharishi Charak is considered as the father of medicine. Maharishi Charak has considered the cause of all diseases as Vata, Pata, and Kaapha, whenever their balance worsens, various diseases in the body begin to take birth. Their concept is still considered Ayurveda.)
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महर्षि चरक का मानना था कि चिकित्सक के लिए ज्ञानी और बुद्धिमान होना ही आवश्यक नहीं हैं बल्कि उसे दयावान तथा सदाचारी भी होना चाहिये। इसीलिए उन्होंने चरक संहिता में उन प्रतिज्ञाओं का भी उल्लेख किया हैं जो चिकित्सक बनने से पहले ली जाती हैं। इन प्रतिज्ञाओं का पालन करना प्रत्येक चिकित्सक के लिए आवश्यक माना जाता है |(Maharishi Charak believed that it is not only necessary for a doctor to be wise and intelligent, but he should also be Merciful and virtuous. That is why he also mentioned the promises in the Charak Samhita which are taken before becoming a physician. Following these pledges is considered necessary for every doctor.)
चरक कहते थे- ” जो चिकित्सक अपने ज्ञान और समझ का दीपक लेकर बीमार के शरीर को नहीं समझता, वह बीमारी ठीक नहीं कर सकता है।इसलिए सबसे पहले उन सब कारणों का समझना चाहिए जिनसे रोगी प्रभावित है, फिर उसका इलाज करना चाहिए। बीमारी से बचाना महत्वपूर्ण है न की इलाज करना। “Charak says that, “The doctor who does not understand the body of the sick by taking the lamp of his knowledge and understanding, can not cure the disease. Therefore, first of all the causes should be understood by whom the patient is affected and then he should be treated. It is important to protect against disease and not to cure it. “