essay on elections in school in hindi
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चुनाव या फिर जिसे निर्वाचन प्रक्रिया के नाम से भी जाना जाता है, लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है और इसके बिना तो लोकतंत्र की परिकल्पना करना भी मुश्किल है क्योंकि चुनाव का यह विशेष अधिकार किसी भी लोकतांत्रिक देश के व्यक्ति को यह शक्ति देता है कि वह अपने नेता को चुन सके तथा आवश्यकता पड़ने पर सत्ता परिवर्तन भी कर सके।
एक देश के विकास के लिए चुनाव बहुत अहम प्रक्रिया है क्योंकि यह देश के राजनेताओं में इस बात का भय पैदा करता है कि यदि वह जनता का दमन या शोषण करेंगे तो चुनाव के समय जनता अपनी वोटों के ताकत द्वारा उन्हें सत्ता से बाहर कर सकती है।
चुनाव के इसी महत्व को देखते हुए हमने इन निबंधों को तैयार किया है। जिसमें हमने काफी सरल तथा आसान भाषा में चुनाव जुड़े विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने का कार्य किया है।
हमारे द्वारा तैयार किये गये यह निबंध आपके विद्यालय तथा प्रतियोगी कार्यों में काफी सहायक सिद्ध होंगे। हमारे वेबसाइट पर दिये गये इन निबंधों का आप अपनी आवश्यकता अनुसार अपने कार्यों में उपयोग कर सकते है।चुनाव शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है चुन और नाव जिसका अर्थ होता है योग्य व्यक्ति का चयन करना। वैसे तो चुनाव का इतिहास काफी पुराना है लेकिन वर्तमान समय में यह मानव विकास का एक अहम हिस्सा है। चुनाव को किसी भी लोकतंत्र का आधार स्तंभ माना जाता है। किसी भी स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए एक निश्चित अंतराल के बाद चुनाव प्रक्रिया का होना काफी आवश्यक होता है क्योंकि ऐसा ना होने पर वर्तमान राजनेताओं और देश की बागडोर संभालने वाले व्यक्तियों में ऐसी भावना उत्पन्न हो जाती है कि उन्हें उनके पद से कोई नही हटा सकता है।
चुनाव के ही द्वारा आधुनिक लोकतंत्रों के विभिन्न संस्थाओं के पदों के लिए भी लोगों का चयन किया जाता है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों द्वारा लोकतंत्र को मजबूती प्राप्त होती है। चुनावों द्वारा समय-समय पर होने वाले सत्ता परिवर्तन इस बात को साबित करते हैं कि लोकतंत्र में अंतिम निर्णय जनता का ही होता है। यहीं कारण है चुनावों को लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व के रुप में भी जाना जाता है। हर देश की चुनावी प्रक्रिया दूसरे देश से भिन्न होती है लेकिन इन सभी का मकसद एक ही होता है यानि योग्य या फिर अपने पसंद के प्रत्याशी का चयन करना।भारत में मतदाताओं के विशाल संख्या को देखते हुए कई चरणों में चुनाव आयोजित किये जाते है। पहले के वर्षों में भारत में चुनाव साधरण तरीकों से होते रहे है लेकिन वर्ष 1999 में पहली बार कुछ राज्यों में इलेक्ट्रानिक मशीनों का प्रयोग किया गया, जोकि काफी सफल रहा तभी से चुनाव प्रक्रिया को सरल, पारदर्शी तथा तेज बनाने के लिए निरंतर इनका उपयोग किया जाने लगा।
भारत में पार्षद पद से लेकर प्रधानमंत्री जैसे विभिन्न प्रकार के चुनावों का आयोजन होता है। हालांकि इनमें से जो सबसे महत्वपूर्ण चुनाव होते है वह होते है लोकसभा और विधानसभा के चुनाव क्योंकि इन दो चुनावों द्वारा केंद्र तथा राज्य में सरकार का चयन होता है। आजादी के बाद से लेकर अबतक हमारे देश में कई बार चुनाव हुए है और इसके साथ ही इसकी प्रक्रिया में कई प्रकार के संसोधन भी किये गये है। जिन्होंने चुनावी प्रक्रिया को और भी बेहतर तथा सरल बनाने का कार्य किया है।
इसमें सबसे बड़ा संसोधन वर्ष 1989 में हुआ था। जब चुनाव में मतदान करने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था। इस परिवर्तन के कारण देशभर के करोड़ों युवाओं को जल्द ही मतदान करने का अवसर मिला वास्तव में भारतीय लोकतंत्र के चुनाव प्रक्रिया में किये गये सबसे साहसिक संसोधनों में से एक था।
निष्कर्ष
भारतीय लोकतंत्र में चुनाव का एक महत्वपूर्ण योगदान है, इसी वजह से भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में भी जाना जाता है। यह चुनाव प्रक्रिया है जिसने दिन-प्रतिदिन भारत में लोकतंत्र के नींव को और भी मजबूत किया है। यहीं कारण है कि भारतीय लोकतंत्र में चुनाव इतना महत्वपूर्ण स्थान रखते है।
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चुनाव शब्द दो शब्दों को मिलाकर बनाया गया है, चुन और नाव । चुनाव की प्रक्रिया के तहत जनता एक ऐसे नेता रूपी नाव को चुनती है जो जनता को विकास की वैतरणी पार करा सके । भारत में चुनावों का इतिहास पुराना है । देश में पहले जब राजाओं और सम्राटों का राज था, उस समय भी चुनाव होते थे । राजा और सम्राट लोग भावी शासक के रूप में अपने पुत्रों का चुनाव कर डालते थे । उदाहरण के तौर पर राजा दशरथ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र श्री राम का चुनाव किया था जिससे वे गद्दी पर बैठ सके। यह बात अलग है कि कुछ लोचा होने के कारण श्री राम गद्दी पर नहीं बैठ सके ।
राजाओं और सम्राटों द्वारा ऐसी चुनावी प्रक्रिया में जनता का कोई रोल नहीं होता था। देश को जब आजादी नहीं मिली थी और भारत में अंग्रेजी शासन का झोलझाल था, उन दिनों भी चुनाव होते थे । तत्कालीन नेता अपने कर्मो से अपना चुनाव खुद ही कर लेते थे । बाद में देश को आजादी मिलने का परिणाम यह हुआ कि जनता को भी चुनावी प्रक्रिया में हिस्सेदारी का मौका मिलने लगा । नेता और जनता, दोनों आजाद हो गए। जनता को वोट देने की आजादी मिली और नेता को वोट लेने की । वोट लेन-देन की इसी प्रक्रिया का नाम चुनाव है जो लोकतंत्र के स्टेटस को मेंटेन करने के काम आता है ।
परिवर्तन होता है इस बात को साबित करने के लिए सन १९५० से शुरू हुआ ये राजनैतिक कार्यक्रम कालांतर में सारेकृतिक कार्यक्रम के रुप में स्थापित हुआ । सत्तर के दशक के मध्य तक भारत में चुनाव हर पाँच साल पर होते थे । ये ऐसे दिन थे जब जनता को चुनावों का बेसब्री से इंतजार करते देखा जाता था । बेसब्री से इंतजार के बाद जनता को एक अदद चुनाव के दर्शन होते थे ।
पाँच साल के अंतराल पर हुए चुनाव जब खत्म हो जाते थे तब जनता दुखी हो जाती थी । जैसे-जैसे समय बीता, जनता के इस दुःख से दुखी रहने वाले नेताओं को लगा कि पाँच साल में केवल एक बार चुनाव न तो देश के हित में थे और न ही जनता के हित में। ऐसे में पाँच साल में केवल एक बार वोट देकर दुखी होने वाली जनता को सुख देने का एक ही तरीका था कि चुनावों की फ्रीक्वेंसी बढ़ा दी जाय ।
नेताओं की ऐसी सोच का नतीजा यह हुआ कि नेताओं ने प्लान करके सरकारों को गिराना शुरू किया जिससे चुनाव बिना रोक-टोक होते रहें । नतीजतन जनता को न सिर्फ केन्द्र में बल्कि प्रदेशों में भी गिरी हुई सरकारों के दर्शन हुए । नब्बे के दशक तक जनता अपने वोट से केवल नेताओं का चुनाव करती थी जिससे उन्हें शासक बनाया जा सके । तब तक चुनाव का खेल केवल सरकारों और नेताओं को बनाने और बिगाड़ने के लिए खेला जाता रहा ।
कुछ चुनावी विशेषज्ञ यह मानते हैं कि इतिहास अपने आपको दोहराता है, इस सिद्धांत का मान रखते हुए चुनाव की प्रक्रिया का वृत्तचित्र अब पूरा हो गया है। ऐसे विशेषज्ञों के कहने का मतलब यह है कि आज के नेतागण पुराने समय के राजाओं जैसे हो गए हैं और अपने पुत्र-पुत्रियों को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर लेते हैं। वैसे इस विचार के विरोधी विशेषज्ञ मानते हैं कि नेताओं के पुत्र-पुत्रियों को जिताने के लिए चूंकि जनता वोट कर देती है इसलिए आजकल के नेताओं को पुराने समय के राजाओं और सम्राटों जैसा मानना लोकतंत्र की तौहीन होगी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारतीय चुनाव दुनियाँ का सर्वश्रेष्ठ चुनाव है।
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