Essay on Hindi about if I were the prime minister of India in hundred to 120 words
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हमारा राष्ट्र एक संप्रभुता संपन्न गणराज्य है । यहाँ की जनता अपना नेता चुनने के लिए स्वतंत्र है । हमारा अपना संविधान है । संविधान के अनुसार राष्ट्र का सर्वोच्च नागरिक माननीय राष्ट्रपति से केवल प्रमुख विषयों पर ही विचार-विमर्श किया जाता है अथवा अनुमति ली जाती है ।
इस प्रकार देश के प्रधानमंत्री का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद हो जाता है । देश के विकास संबंधी नीति-नियम तथा इसके संचालन के प्रमुख दायित्व एवं अधिकार प्रधानमंत्री के ही पास होते हैं । आज हमारे देश में घूसखोरी और रिश्वतखोरी दिनों-दिन बढ़ती चली जा रही है । यह कुप्रथा हमारे समस्त तंत्र को भीतर ही भीतर खोखला कर रही है ।
एक सामान्य निचले दर्जे के कर्मचारी से लेकर चोटी तक के शीर्षस्थ अधिकारी व नेता सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं । यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो पद ग्रहण करने के उपरांत सर्वप्रथम मेरा प्रयास यही होता, शासन में फैले भ्रष्टाचार व घूसखोरी को त्वरित गति से समाप्त करना ।
भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी व भाई-भतीजावाद आदि बुराइयाँ देश की प्रगति के मार्ग के प्रमुख अवरोधक हैं । मैं यह बात भी भली-भाँति समझता हूँ कि बिना इस पर अंकुश लगाए हमारी कार्य-योजनाएँ पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सकती हैं क्योंकि गरीब व निचले दर्जे के उत्थान के लिए सरकार जो भी आर्थिक मदद मुहैया कराती है उसे उच्च अधिकारी व अन्य भ्रष्ट लोग गंतव्य तक पहुँचने ही नहीं देते ।
इसे रोकने के लिए सर्वप्रथम मैं यह व्यवस्था करूँगा कि भविष्य में अपराधी तत्व के लोगों को चुनाव टिकट न मिल सके अपितु वही लोग सत्ता में आ सकें जो गुणी एवं पद के लिए सर्वथा योग्य हों । इसके अतिरिक्त मेरा प्रयास होगा कि जनता का धन जो सरकार के पास कर तथा अन्य माध्यमों से जमा होता है उसका सदुपयोग हो । अपने मंत्रिपरिषद के समस्त मंत्रियों के वे खर्च रोक दिए जाने चाहिए जो आवश्यक नहीं हैं ।
इसके अतिरिक्त उन भ्रष्ट नेताओं, अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों के प्रति कड़ी कार्यवाई की जाएगी जो भ्रष्टाचार के आरोपी पाए जाते हैं । इसमें किसी को भी छूट नहीं दी जाएगी भले ही वह किसी पद पर क्यों न हो, क्योंकि कानून की दृष्टि में सभी एक समान होते हैं ।
हमारे देश की दो-तिहाई से भी अधिक जनसंख्या गाँवों में निवास करती है जहाँ अधिकांश ऐसे लोग हैं जो आजादी के पाँच दशकों बाद भी गरीबी रेखा से नीचे रहकर जीवन-यापन कर रहे हैं । मेरी विकास योजनाओं का केंद्र बिंदु यही लोग होंगे ।
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मेरा प्रयास होगा कि उन सभी को रोटी, कपड़ा एवं घर जैसी आधारभूत आवश्यकताएँ मुहैया कराई जा सकें ताकि ये भी देश के विकास में स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मस्तिष्क के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे आ सकें ।
आज का युग विज्ञान का युग है । हालाँकि पूर्व प्रधानमंत्रियों के शासनकाल में इस दिशा पर कुछ कार्य हुआ है परंतु अभी भी हम अन्य विकसित देशों की तुलना में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए हैं । आज विज्ञान की प्रगति एवं देश की प्रगति दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं । मेरा यह प्रयास होगा कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएँ और इसका लाभ केवल नगरीय सीमाओं तक ही सीमित न रहे अपितु गाँवों व कस्बों तक पहुँचे ।
देश के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज सरकारी खजाने का एक बहुत बड़ा हिस्सा हमारे रक्षा बजट में खर्च करना पड़ता है । यही धन यदि विकास कार्यों में लगे तो देश का विकास और तीव्र गति से होगा ।
मेरा प्रयास होगा कि अपने सभी पड़ोसी देशों से हमारे संबंध मधुर हों ताकि सभी स्वेच्छा से अपना-अपना रक्षा-व्यय घटाकर इस क्षेत्र में विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा दें । विश्व मंच पर मैं विश्व शांति एवं निरस्त्रीकरण के अपने प्रयास में तेजी लाऊंगा ताकि मानव कल्याण की दिशा में और भी अधिक कार्य हो सके ।
मेरे पूर्व सभी प्रधानमंत्रियों ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से अपने भाषण के दौरान अपनी योजनाओं का खुलासा किया परंतु उसका आकलन करने का पता है अधिकांश योजनाएँ कागज पर ही रह जाती हैं तथा कथनी और करनी में समन्वय नहीं हो पाता है । मेरा प्रयास होगा कि हम जिन योजनाओं को अंतिम रूप देते हैं उन पर पूर्ण दृढ़ता के साथ अमल हो क्योंकि ऐसी समस्त योजनाओं में केवल समय एवं धन का अपव्यय होता है जिन पर अमल नहीं किया जाता है ।
प्रधानमंत्री का पद अत्यंत जिम्मेदारी का पद है । अल्प समय में बहुत कुछ करना होता है । मेरा पूर्ण प्रयास होगा कि मैं निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देश के प्रति पूर्णतया समर्पित हो अपने उत्तरदायित्व का भली-भाँति निर्वाह करूँ तथा देश की गौरवशाली परंपरा व संस्कृति को कायम रख सकूँ । देश की जनता ने जिस आशा और विश्वास के साथ मुझे यह दायित्व सौंपा है मैं उन पर खरा उतर सकूँ क्योंकि, गाँधीजी के ही कथनानुसार
” वैष्णव जन तो तेने कहिए, जो पीर पराई जाने रे ! ”
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