Hindi, asked by GINITHOMAS7031, 1 year ago

Essay on if i were a teacher in hindi language

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Answered by Royal213warrior
80
किसी भी समाज में अध्यापक का बहुत महत्त्व होता है । अध्यापक समाज की नयी पीढ़ी को शिक्षित करता है । यह एक अध्यापक की योग्यता पर बहुत निर्भर करता है कि उसके छात्र भविष्य में देश के योग्य नागरिक बनते हैं या नहीं ।  अध्यापक अपनी बुद्धिमत्ता से छात्रों की प्रतिभा को पहचानकर उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है ।

सरल शिक्षा-पद्धति के द्वारा वह छात्रों को रोचक ढंग से पढाता है और इस प्रकार पढ़ाई छात्रों को बोझ नहीं लगती, बल्कि वे पढ़ाई में स्वेच्छा से रुचि लेते हैं । दूसरी ओर अपने कर्तव्य का पालन न करने वाले अध्यापक अपने छात्रों पर ध्यान नहीं देते और अध्यापकों की लापरवाही के कारण ऐसे छात्रों का भविष्य अनिश्चित हो जाता है ।

वास्तव में किसी भी समाज एवं देश के विकास में अध्यापक का बहुत बड़ा योगदान होता है । अध्यापक होना गौरव की बात मानी जाती है । इसी कारण मैं प्राय : अध्यापक बनने का विचार करता हूँ, ताकि अध्यापक के रूप में आदर्श स्थापित कर सकूँ ।

आज धन की लालसा में कछ अध्यापक अपने कर्तव्य से विमुख हो गए हैं । वे छात्रों को शिक्षित करने पर अधिक ध्यान नहीं देते बल्कि विभिन्न स्रोतों से धन अर्जित करने के प्रयास करते रहते हैं । ऐसे अध्यापक विद्यालय में केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने आते हैं । वे कक्षा में छात्रों को नाम मात्र को पढ़ाते हैं और उन्हें अपने घर ट्‌यूशन लेने के लिए बुलाते हैं ।

ऐसे अध्यापकों के कारण शिक्षा के मन्दिर अपना सम्मान खो रहे हैं । यदि मैं अध्यापक होता तो अध्यापकों के गौरव को बचाए रखने का यथासम्भव प्रयत्न करता । अध्यापक का एकमात्र र्स्तव्य छात्रों को विद्वान बनाना है, ताकि वे देश के विकास में पना सहयोग दे सकें ।

छात्रों को विद्वान बनाने, उनका चरित्र-निर्माण करने के लिए मैं दिन-रात परिश्रम करता । छात्रों को शिक्षित करने के लिए अध्यापकों को स्वयं अध्ययन करना आवश्यक है । यदि मैं अध्यापक होता तो नियमित रूप से । अध्ययन करता, ताकि छात्रों के सभी प्रश्नों के समुचित देने में मुझे कठिनाई नहीं होती ।

मैं नियमित रूप से समय अपने विद्यालय जाता और विद्यालय में अन्य अध्यापकों के साथ व्यर्थ हँसी-मजाक न करके केवल छात्रों की शिक्षा पर ध्यान । अपनी कक्षा के छात्रों के साथ मैं मित्रतापूर्ण व्यवहार के मधुर सम्बन्ध स्थापित करता, ताकि छात्र उत्साहित होकर पढ़ाई में रुचि लेते और अपनी समस्याओं कठिनाईयों से मुझे अवगत कराने में संकोच नहीं करते ।

छात्रों से मधुर सम्बन्ध के साथ मैं पढ़ाई में उनकी लापरवाही कतई सहन नहीं   करता । मैं अपने छात्रों को इस सत्य से अवगत कराने का यथासम्भव प्रयत्न करता कि कठोर परिश्रम से ही शिक्षा प्राप्त होती है और इसके लिए अनुशासन आवश्यक है । मैं यदि अध्यापक होता तो छात्रों को नियमित रूप से कक्षा में ही पढ़ाता ।

आवश्यक होने पर मैं छात्रों को अतिरिक्त समय में भी पढ़ाता, ताकि किसी भी विषय में उन्हें ट्‌यूशन की आवश्यकता नहीं पड़ती । पढ़ाई में अधिक कमजोर छात्रों को मैं निस्संकोच मेरे घर आने की छूट देता, ताकि वे पढ़ाई से सम्बंधित अपनी कमियों को दूर कर सकते । मैं अपने छात्रों को उत्तीर्ण होने के लिए गाइड-पुस्तकों पर निर्भर नहीं रहने देता ।

मैं उन्हें विषय को रटने की सलाह न देकर विषय से सम्बंधित समस्त जानकारी इस प्रकार देता, ताकि वह उनके मन-मस्तिष्क में स्थाई रूप से बैठ जाती । मैं यदि अध्यापक होता तो छात्रों की पढ़ाई के अतिरिक्त उनके चरित्र-निर्माण पर विशेष बल देता ।

मैं अपने छात्रों को नियमित रूप से नैतिक शिक्षा देता, उन्हें प्रेरणादायक साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करता, ताकि आदर्श व्यक्ति के रूप में वे समाज में सम्मान प्राप्त कर सकें और सदैव अपना सिर उठाकर चल सकें । इसके अतिरिक्त मैं अपने छात्रों को स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के लिए भी प्रेरित करता ।

मैं उन्हें नियमित व्यायाम की सलाह देता ताकि वे स्वस्थ रह सकें और जीवन के संघर्ष में उन्हें कठिनाई का सामना न करना पड़े । समाज एवं राष्ट्र के निर्माण में एक अध्यापक का योगदान बहुत महत्वपूर्ण होता है यदि मैं अध्यापक होता तो यह सिद्ध करके दिखाता । छात्र अध्यापक का अनुसरण करते हैं अत: मैं स्वयं आदर्श स्थापित करता, ताकि मेरे छात्र उचित पथ पर प्रेरित हो सकें ।

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Answered by Priatouri
52

यदि मैं शिक्षिका होती तो मैं विद्यार्थियों को बहुत स्नेह प्यार से पढ़ाती I मैं विद्यार्थियों को शिक्षा के अलावा और भी अच्छी-अच्छी जानकारी देती I ये जानकारियाँ जिससे विद्यार्थियों को समझदार बनाती I मैं विद्यार्थियों को नए नए तरह के खेल खिलाती ताकि पढ़ाई के साथ-साथ उनकी रूचि खेलों में भी हो और खेलों के जरिए उन्हें पढ़ा भी सकती I उनको हर भाषा के बारे में बताकर उनकी रुचि बढ़ाती तथा उन्हें स्नेह से समझाती I विद्यार्थियों के गलती करने पर उन्हें मारने पीटने की जगह उन्हें स्नेह से समझाती जिससे वे जल्दी समझ जातेl

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