Hindi, asked by johithjp, 1 year ago

Essay on importance
of newspaper in Hindi

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Answered by vrindharamesh0706
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समाचार पत्र या अख़बार, समाचारो पर आधारित एक प्रकाशन है। इसमे मुख्य रूप से ताजी घटनाएँ, खेल.कूद, व्यक्तित्व, राजनीति व  विज्ञापन की जानकारियाँ सस्ते कागज पर छपी होती है। समाचार पत्र संचार के साधनो में महत्वपुर्ण स्थान रखते हैं । ये कागज़ पर शब्दों से बनें वाक्यों को लिख कर या छाप कर तेयार किये जाते हैं। समाचार पत्र प्रायः दैनिक होते हैं लेकिन कुछ समाचार पत्र साप्ताहिकए पाक्षिकए मासिक एवं छमाही भी होतें हैं। अधिकतर समाचारपत्र स्थानीय भाषाओं मे और स्थानीय विषयों पर केन्द्रित होते है।

समाचारपत्रो का इतिहास : सबसे पहला ज्ञात समाचारपत्र 59 ई0 का "द  रोमन एक्टा डिउरना" है। जूलिएस सीसर ने जनसाधरण को महत्वपूर्ण राजनैतिज्ञ और समाजिक घटनाओं से अवगत कराने के लिए उन्हे शहरो के प्रमुख स्थानो पर प्रेषित किया। 8वी शताब्दी मे चीन मे हस्तलिखित समाचारपत्रो का प्रचलन हुआ।

अखबार का इतिहास और योगदान यूँ तो ब्रिटिश शासन के एक पूर्व अधिकारी के द्वारा अखबारों की शुरुआत मानी जाती हैए लेकिन उसका स्वरूप अखबारों की तरह नहीं था। वह केवल एक पन्ने का सूचनात्मक पर्चा था। पूर्णरूपेण अखबार बंगाल से "बंगाल गज़ट" के नाम से वायसराय हिक्की द्वारा निकाला गया था। आरंभ में अँग्रेजों ने अपने फायदे के लिए अखबारों का इस्तेमाल कियाए चूँकि सारे अखबार अँग्रेजी में ही निकल रहे थे, इसलिए बहुसंख्यक लोगों तक खबरें और सूचनाएँ पहुँच नहीं पाती थीं। जो खबरें बाहर निकलकर आती थीं। उन्हें काफी तोड़.मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता थाए ताकि अँग्रेजी सरकार के अत्याचारों की खबरें दबी रह जाएँ। अँग्रेज सिपाही किसी भी क्षेत्र में घुसकर मनमाना व्यवहार करते थे। लूटए हत्याए बलात्कार जैसी घटनाएँ आम होती थीं। वो जिस भी क्षेत्र से गुजरते, वहाँ अपना आतंक फैलाते रहते थे। उनके खिलाफ न तो मुकदमे होते और न ही उन्हें कोई दंड ही दिया जाता था। इन नारकीय परिस्थितियों को झेलते हुए भी लोग खामोश थे। इस दौरान भारत में "हिंदुस्तान टाइम्सष", "नेशनल हेराल्ड", "पायनियर",  "मुंबई मिरर" जैसे अखबार अँग्रेजी में निकलते थे।  जिसमें उन अत्याचारों का दूर.दूर तक उल्लेख नहीं रहता था। इन अँग्रेजी पत्रों के अतिरिक्त बंगलाए उर्दू आदि में पत्रों का प्रकाशन तो होता रहाए लेकिन उसका दायरा सीमित था। उसे कोई बंगाली पढ़ने वाला या उर्दू जानने वाला ही समझ सकता था। ऐसे में पहली बार 30 मईए 1826 को हिन्दी का प्रथम पत्र ष्उदंत मार्तंडष् का पहला अंक प्रकाशित हुआ।

यह पत्र साप्ताहिक था। उदंत.मार्तंड की शुरुआत ने भाषायी स्तर पर लोगों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। यह केवल एक पत्र नहीं थाए बल्कि उन हजारों लोगों की जुबान थाए जो अब तक खामोश और भयभीत थे। हिन्दी में पत्रों की शुरुआत से देश में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और आजादी की जंग को भी एक नई दिशा मिली। अब लोगों तक देश के कोने.कोन में घट रही घटनाओं की जानकारी पहुँचने लगी। लेकिन कुछ ही समय बाद इस पत्र के संपादक जुगल किशोर को सहायता के अभाव में 11 दिसंबरए 1827 को पत्र बंद करना पड़ा। 10 मई 1829 को बंगाल से हिन्दी अखबार श्बंगदूतश् का प्रकाशन हुआ। यह पत्र भी लोगों की आवाज बना और उन्हें जोड़े रखने का माध्यम। इसके बाद जुलाईए 1854 में श्यामसुंदर सेन ने कलकत्ता से समाचार सुधा वर्षण का प्रकाशन किया। उस दौरान जिन भी अखबारों ने अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कोई भी खबर या आलेख छपाए उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ी। अखबारों को प्रतिबंधित कर दिया जाता था। उसकी प्रतियाँ जलवाई जाती थीं, उसके प्रकाशकों, संपादकों, लेखकों को दंड दिया जाता था। उन पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाता था, ताकि वो दुबारा फिर उठने की हिम्मत न जुटा पाएँ।

आजादी की लहर जिस तरह पूरे देश में फैल रही थी, अखबार भी अत्याचारों को सहकर और मुखर हो रहे थे। यही वजह थी कि बंगाल विभाजन के उपरांत हिन्दी पत्रों की आवाज और बुलंद हो गई। लोकमान्य तिलक ने "केसरी" का संपादन किया और लाला लाजपत राय ने पंजाब से "वंदे मातरम" पत्र निकाला। इन पत्रों ने युवाओं को आजादी की लड़ाई में अधिक.से.अधिक सहयोग देने का आह्वान किया। इन पत्रों ने आजादी पाने का एक जज्बा पैदा कर दिया। केसरी को नागपुर से माधवराव सप्रे ने निकाला, लेकिन तिलक के उत्तेजक लेखों के कारण इस पत्र पर पाबंदी लगा दी गई।

उत्तर भारत में आजादी की जंग में जान फूँकने के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1913 में कानपुर से साप्ताहिक पत्र "प्रताप" का प्रकाशन आरंभ किया। इसमें देश के हर हिस्से में हो रहे अत्याचारों के बारे में जानकारियाँ प्रकाशित होती थीं। इससे लोगों में आक्रोश भड़कने लगा था और वे ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए और भी उत्साहित हो उठे थे। इसकी आक्रामकता को देखते हुए अँग्रेज प्रशासन ने इसके लेखकों, संपादकों को तरह.तरह की प्रताड़नाएँ दीं।  लेकिन यह पत्र अपने लक्ष्य पर डटा रहा।

इसी प्रकार बंगालए बिहार, महाराष्ट्र के क्षेत्रों से पत्रों का प्रकाशन होता रहा। उन पत्रों ने लोगों में स्वतंत्रता को पाने की ललक और जागरूकता फैलाने का प्रयास किया। अगर यह कहा जाए कि स्वतंत्रता सेनानियों के लिए ये अखबार किसी हथियार से कमतर नहीं थेए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

अखबार बने आजादी का हथियार प्रेस आज जितना स्वतंत्र और मुखर दिखता है। आजादी की जंग में यह उतनी ही बंदिशों और पाबंदियों से बँधा हुआ था। न तो उसमें मनोरंजन का पुट था और न ही ये किसी की कमाई का जरिया ही। ये अखबार और पत्र.पत्रिकाएँ आजादी के जाँबाजों का एक हथियार और माध्यम थेए जो उन्हें लोगों और घटनाओं से जोड़े रखता था। आजादी की लड़ाई का कोई भी ऐसा योद्धा नहीं थाए जिसने अखबारों के जरिए अपनी बात कहने का प्रयास न किया हो। गाँधीजी ने भी हरिजन और यंग इंडिया के नाम से अखबारों का प्रकाशन किया था तो मौलाना अबुल कलाम आजाद ने "अल हिलाल" पत्र का प्रकाशन। ऐसे और कितने ही उदाहरण हैं, जो यह साबित करते हैं कि पत्र.पत्रिकाओं की आजादी की लड़ाई में महती भूमिका थी।



jatin2186: wow great sir
Answered by jatin2186
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Importance of newspapers
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As We know that the day of our old grandapents starts with reading of newspaper daily. No doubt this is good habit of them but in today's life ,it will became a really difficult for the employed ones to give up time to read a newspaper for a while. Which makes them not aware about the current happenings in our nation. So we can assure that by reading a newspaper we can be make ourself better known for all those things, which are going on these days or months. The students who wants to learn English must make their habit of spending 1 hour on reading a newspaper. Surely it make our English better or best with the time.
English newspaper reading will make us to focus on any issue that we will try to understand ,which increase our power of understanding . It will also make us people of disciple because of its fix timings of reading .
So English newspaper is that thing which can be helpful for all kinds of people ages and also best suitable thing to know about the political and economical surroundings.
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