Essay on jeevan me khel kood ka mahatva in hindi
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उत्तम और पूर्ण जीवन का आदर्श है स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का होना । अपने कर्तव्यों के निष्पादन के लिए स्वस्थ शरीर का होना परम आवश्यक है ।
शरीर और मन को अपनी पूरी क्षमता से कार्य करना चाहिए और वे अंग लचीले, सक्रिय और अपनी इच्छा के अनुरूप कार्य करने वाले होने चाहिए । यदि वे अंग स्वस्थ और पुष्ट होंगे तभी अपने कार्यों को ठीक समय पर और दक्षतापूर्वक कर पाएंगे । शरीर के अंगों को स्वस्थ रखने का सर्वोतम तरीका यह है कि शारीरिक दक्षता और परिश्रम वाले खेलों द्वारा व्यायाम करके उनको ठीक रखा जाए ।
वस्तुत: क्रीड़ा का महत्व यही होता है और कोई समाज ऐसा नहीं है जिसके पास अपने विशेष प्रकार के खेल न हों । खेलों से शरीर स्वस्थ बनता है, व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से ठीक रहता है । पुराने समय में, शिकार और मछली पकड़ने जैसी क्रीड़ाओं, का प्रयोजन मुख्यत: उनकी उपयोगिता होता था । अर्थात् मनुष्य भोजन प्राप्त करने के लिए शिकार खेलते थे ।
परन्तु यूनानी सभ्यता के आगमन के बाद क्रीड़ा को शरीर को सुन्दर बनाने के साधन के रूप में माना जाने लगा था । यूनानी लोग अपने शरीर को अत्यधिक मनोहर और सुंदर बनाने में अपना कोई सानी नहीं रखते थे । प्रत्येक चार वर्ष के बाद खेली जाने वाली प्रसिद्ध ओलम्पिक खेलें इस बात का प्रमाण है कि क्रीड़ा और व्यायामों को कितना महत्व दिया जाता था । इन्हें 1896 से फिर से शुरू किया गया और अब ये खेल विभिन्न देशों में चार वर्षो में एक बार आयोजित किए जाते है ।
क्रीड़ा और खेलकूद हमारी सभ्यता के मानव की गतिविधियों का एक स्थायी अनिवार्य भाग बन गए है और उनका उद्देश्य केवल उनकी उपयोगिता का लाभ उठाना ही नहीं है । जहाँ खेल शरीर को रूप और शक्ति प्रदान करते है वहाँ इनसे अनुशासन और मिल-जुल कर काम करने की भावना भी पैदा होती हैं ।
ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश साम्राज्य की विजय युद्ध क्षेत्रों में उतनी नहीं होती थी जितनी ऐटन जैसे पब्लिक स्कूलों के खेल के मैदानों में । नि:संदेह यह बात सत्य है । खेलों में सीखा गया अनुशासन बाद के जीवन में बहुमूल्य सिद्ध होता है । यह जीवन में सहयोग और साथ मिलकर चलने की भावना पैदा करता है जिसका उपयोग समाज और राष्ट्र को महान बनाने के लिए किया जा सकता है ।
इसलिए यह बेहतर होगा यदि हमारे युवक और युवतियां खेलों और व्यायामों के मुकाबले में सक्रिय भाग लें । यह अच्छी बात है कि हमारी शिक्षा संस्थाएं खेलों का आयोजन करके और पुरस्कार और ट्राफियाँ देकर क्रीड़ाओं को प्रोत्साहित करती हैं । प्रत्येक युवक को कोई न कोई खेल अवश्य ही खेलना चाहिए । सैनिक प्रशिक्षण की तरह खेलों को भी अनिवार्य बनाया जाना चाहिए । वास्तव में खेल ही युवकों में सैनिक भावना और अनुशासन पैदा करने का आधार है ।
शरीर और मन को अपनी पूरी क्षमता से कार्य करना चाहिए और वे अंग लचीले, सक्रिय और अपनी इच्छा के अनुरूप कार्य करने वाले होने चाहिए । यदि वे अंग स्वस्थ और पुष्ट होंगे तभी अपने कार्यों को ठीक समय पर और दक्षतापूर्वक कर पाएंगे । शरीर के अंगों को स्वस्थ रखने का सर्वोतम तरीका यह है कि शारीरिक दक्षता और परिश्रम वाले खेलों द्वारा व्यायाम करके उनको ठीक रखा जाए ।
वस्तुत: क्रीड़ा का महत्व यही होता है और कोई समाज ऐसा नहीं है जिसके पास अपने विशेष प्रकार के खेल न हों । खेलों से शरीर स्वस्थ बनता है, व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से ठीक रहता है । पुराने समय में, शिकार और मछली पकड़ने जैसी क्रीड़ाओं, का प्रयोजन मुख्यत: उनकी उपयोगिता होता था । अर्थात् मनुष्य भोजन प्राप्त करने के लिए शिकार खेलते थे ।
परन्तु यूनानी सभ्यता के आगमन के बाद क्रीड़ा को शरीर को सुन्दर बनाने के साधन के रूप में माना जाने लगा था । यूनानी लोग अपने शरीर को अत्यधिक मनोहर और सुंदर बनाने में अपना कोई सानी नहीं रखते थे । प्रत्येक चार वर्ष के बाद खेली जाने वाली प्रसिद्ध ओलम्पिक खेलें इस बात का प्रमाण है कि क्रीड़ा और व्यायामों को कितना महत्व दिया जाता था । इन्हें 1896 से फिर से शुरू किया गया और अब ये खेल विभिन्न देशों में चार वर्षो में एक बार आयोजित किए जाते है ।
क्रीड़ा और खेलकूद हमारी सभ्यता के मानव की गतिविधियों का एक स्थायी अनिवार्य भाग बन गए है और उनका उद्देश्य केवल उनकी उपयोगिता का लाभ उठाना ही नहीं है । जहाँ खेल शरीर को रूप और शक्ति प्रदान करते है वहाँ इनसे अनुशासन और मिल-जुल कर काम करने की भावना भी पैदा होती हैं ।
ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश साम्राज्य की विजय युद्ध क्षेत्रों में उतनी नहीं होती थी जितनी ऐटन जैसे पब्लिक स्कूलों के खेल के मैदानों में । नि:संदेह यह बात सत्य है । खेलों में सीखा गया अनुशासन बाद के जीवन में बहुमूल्य सिद्ध होता है । यह जीवन में सहयोग और साथ मिलकर चलने की भावना पैदा करता है जिसका उपयोग समाज और राष्ट्र को महान बनाने के लिए किया जा सकता है ।
इसलिए यह बेहतर होगा यदि हमारे युवक और युवतियां खेलों और व्यायामों के मुकाबले में सक्रिय भाग लें । यह अच्छी बात है कि हमारी शिक्षा संस्थाएं खेलों का आयोजन करके और पुरस्कार और ट्राफियाँ देकर क्रीड़ाओं को प्रोत्साहित करती हैं । प्रत्येक युवक को कोई न कोई खेल अवश्य ही खेलना चाहिए । सैनिक प्रशिक्षण की तरह खेलों को भी अनिवार्य बनाया जाना चाहिए । वास्तव में खेल ही युवकों में सैनिक भावना और अनुशासन पैदा करने का आधार है ।
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