Essay on kaal kare so aaj in hindi
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सन्त कबीर एक महान ज्ञानी साधक और संत हुए हैं । उन्हीं का रचा हुआ एक प्रसिद्ध दोहा है कि जिसकी प्रथम पंक्ति को उपयुक्त शीर्षक बनाया गया है ।
पूरा दोहा इस प्रकार है:
काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब,
पल में परले होयगी, बहुरी करौगे कब ।
सामान्य सी लगने वाली इन दो पंक्तियों में ज्ञानी संत और साधक ने जीवन और समय के महत्त्व का – सार तत्व भर दिया है । आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए । प्रश्न उठता है कि क्यों नहीं छोड़ना चाहिए ? उत्तर यह है कि पता नहीं अगला पल प्रलय का ही पल हो ।
यदि ऐसा हुआ तो वह अधूरा या सोचा गया काम कर पाने का अवसर ही न मिल पाएगा । फिर कब करोगे ? कहा जा सकता है कि यदि कोई काम नहीं भी हो पाया, तो उससे क्या बनता-बिगड़ता है ? बस यही यह बात, वह मुद्दा या नुकता है कि जिसे ज्ञानी संत ने हमें समझाना और स्पष्ट करना चाहा है । कहा जा सकता है कि भारतीय पुर्नजन्म और मुक्ति के सिद्धान्त का समूचा तत्त्व वास्तव में इस कथन में समाया हुआ है ।
भारत में माना जाता है कि मरते समय यदि व्यक्ति का मान और आत्मा किसी प्रकार की इच्छाएं लिए रहते हैं, तभी दुबारा और किसी भी योनि में जन्म हुआ करता है । यदि मृत्यु के समय मन में कोई इच्छा नहीं रहती, अपने लिए कर्मों को पूर्ण मानकर सन्तुष्ट और तृप्त रहा रहता है तो जन्म मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाया करता है ।
इस मुक्तावस्था को पाने के लिए ही संत कवि ने आज का काम कल पर नहीं छोड़ना की प्रेरणा दी है । कहा है कि जो काम कल के लिए सोच कर रखा है उसे आज बल्कि अभी ही शुरू करके पूरा कर डालो ताकि प्रलय यानि मृत्यु का अल्पप्रभावी अवसर आने तक करने को बाकी कुछ न बचा रहे । फलस्वरूप जनम-मरण और कर्मों के बन्धन से मुक्ति का अधिकारी बना सके ।
सामान्य व्यवहारिक दृष्टि से भी आज का काम कल पर कभी नहीं छोड़ना चाहिए । कल करने के लिए कोई अन्य काम आवश्यक हो सकता है । उसको करने के चक्कर में पिछला काम अधूरा रहकर हानि का कारण बन सकता है । फिर आज का काम कल पर छोड़ते रहने से स्वभाव या आदत डालते जाने वाले बन सकते हैं ।
जिसे किसी भी प्रकार अच्छा एवं उचित नहीं कहा जा सकता । सांसारिक सफलता के लिए भी समय पर प्रत्येक काम को पूरा करते जाना आवश्यक हुआ करता है । लोक-परलोक, काम पूर्ण किए बिना कहीं यदि छुटकारा नहीं फिर क्यों न समय पर ही सब कुछ करने का निश्चित प्रयास किया जाए ।
पूरा दोहा इस प्रकार है:
काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब,
पल में परले होयगी, बहुरी करौगे कब ।
सामान्य सी लगने वाली इन दो पंक्तियों में ज्ञानी संत और साधक ने जीवन और समय के महत्त्व का – सार तत्व भर दिया है । आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए । प्रश्न उठता है कि क्यों नहीं छोड़ना चाहिए ? उत्तर यह है कि पता नहीं अगला पल प्रलय का ही पल हो ।
यदि ऐसा हुआ तो वह अधूरा या सोचा गया काम कर पाने का अवसर ही न मिल पाएगा । फिर कब करोगे ? कहा जा सकता है कि यदि कोई काम नहीं भी हो पाया, तो उससे क्या बनता-बिगड़ता है ? बस यही यह बात, वह मुद्दा या नुकता है कि जिसे ज्ञानी संत ने हमें समझाना और स्पष्ट करना चाहा है । कहा जा सकता है कि भारतीय पुर्नजन्म और मुक्ति के सिद्धान्त का समूचा तत्त्व वास्तव में इस कथन में समाया हुआ है ।
भारत में माना जाता है कि मरते समय यदि व्यक्ति का मान और आत्मा किसी प्रकार की इच्छाएं लिए रहते हैं, तभी दुबारा और किसी भी योनि में जन्म हुआ करता है । यदि मृत्यु के समय मन में कोई इच्छा नहीं रहती, अपने लिए कर्मों को पूर्ण मानकर सन्तुष्ट और तृप्त रहा रहता है तो जन्म मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाया करता है ।
इस मुक्तावस्था को पाने के लिए ही संत कवि ने आज का काम कल पर नहीं छोड़ना की प्रेरणा दी है । कहा है कि जो काम कल के लिए सोच कर रखा है उसे आज बल्कि अभी ही शुरू करके पूरा कर डालो ताकि प्रलय यानि मृत्यु का अल्पप्रभावी अवसर आने तक करने को बाकी कुछ न बचा रहे । फलस्वरूप जनम-मरण और कर्मों के बन्धन से मुक्ति का अधिकारी बना सके ।
सामान्य व्यवहारिक दृष्टि से भी आज का काम कल पर कभी नहीं छोड़ना चाहिए । कल करने के लिए कोई अन्य काम आवश्यक हो सकता है । उसको करने के चक्कर में पिछला काम अधूरा रहकर हानि का कारण बन सकता है । फिर आज का काम कल पर छोड़ते रहने से स्वभाव या आदत डालते जाने वाले बन सकते हैं ।
जिसे किसी भी प्रकार अच्छा एवं उचित नहीं कहा जा सकता । सांसारिक सफलता के लिए भी समय पर प्रत्येक काम को पूरा करते जाना आवश्यक हुआ करता है । लोक-परलोक, काम पूर्ण किए बिना कहीं यदि छुटकारा नहीं फिर क्यों न समय पर ही सब कुछ करने का निश्चित प्रयास किया जाए ।
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