Essay on Kaisa Sheehan Nina anushashan
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केसा शासन , बिना अनुशासन
भूमिका – शासन और अनुशासन दोनों में अटूट सम्बन्ध हैं | शासन अनुशासन को बनाने के एक व्यवस्था का ही नाम है | मानव –जीवन को चलने के लिए ही शासन – व्यवस्था की ज़रूरत होती है | पुरे देश चलाने के लिए तो कठोर अनुशासन और नियम-व्यवस्था की ज़रूरत होती है |
शासकों में अनुशासन की आवश्यकता – अनुशासन बनाने के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी शासकों की होती है | जिस देश के शासक खुद अनुशासित होते है, वहां का शासन ही नहीं पूरा जन-जीवन अनुशासित हो जाता है | जनता सता अपने बड़ो का आचरण देखती है | जब राजा धुड तपस्वी हो जाये तो जनता भोग-विलास की छूट नहीं ले सकती |
देश की वर्तमान स्थिति – दुर्भाग्य से आज स्थिति यह है कि शासन करने वाले लीग अपने-आप को सभी नियमों से ऊपर समझते है | वे अनुशासन का पालन करने में अपना अपमान मानते है | वे खुद को खुदा समझते लगते है | इसी कारन उनकी गर्दन अकड़ जाती है | वे अपनी मनमानी करे है | हे स्वय की नियम-निर्माता मानते है |
शासन में व्याप्त अनुशासन्हीनता – सचिवनियम बनाते हैं, परन्तु रिश्वत के बिना यहाँ फाइल नहीं सरकती | कचहरी में घूस न दी जाये टॉप छोटे-छोटे केस सालों-साल लटक जाते हैं | पुलिस का तो कहना ही क्या ! आज जनता का शासन, प्रशासन और सरकारी तंत्र से विश्वास उठ चूका है | सच तो यह है कि सरकार जनता की लूट में खुद शामिल हो गई है |
न्याय में देरी – आज नेताओं, सरकारी अधिकारिओं और न्याय-व्यवस्था में ईएसआई सांठ-गाँठ हो चुकी है कि किसी राजनेता को दंड नहीं मिल पता | इसी कारण आम आदमी के हौसले बुलंद हो गए हैं | आज भरे बाज़ार में किसी को मरकर भाग जाना बाएँ हाथ का खेल हो गया है |
समाधान – आज भारत में प्रजातंत्र है | अतः अब शासकों में अनुशासन लाने की शक्ति जनता के हाथों में है | बह अनुशासित लोगो को चुने | भ्रष्टचारियो को वोट न दे | अपराधिओं का बहिष्कार करे | अपनी भाग्य-विधाता खुद बने | तभी शासन में अनुशासन आना संभव है |