Essay on leaders Abul kalam azad
Answers
Answered by
0
Maulana Abul Kalam Azad was one of the most influential independence activists during India’s freedom struggle. He was also a noted writer, poet and journalist. He was a prominent political leader of the Indian National Congress and was elected as Congress President in 1923 and 1940. Despite being a Muslim, Azad often stood against the radicalizing policies of other prominent Muslims leaders like Muhammad Ali Jinnah. Azad was the first education minister of independent India. Maulana Abul Kalam Azad was posthumously awarded ‘Bharat Ratna’, India's highest civilian honor, in 1992.
Answered by
0
1. प्रस्तावना:
मौलाना अबुल कलाम आजाद भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक महान् सेनानी तथा राष्ट्रवादी नेता थे । आचार्य जे०बी० कृपलानी ने उनके सम्बन्ध में कहा था- ”वे भारत के एक महान् शास्त्रवेत्ता, विद्वान्, प्रभावशाली वक्ता, राष्ट्रभक्त एवं विश्ववादी नेता थे ।” धर्मनिरपेक्षतावादी सिद्धान्तों में उनकी गहरी आस्था थी । उनकी निडरता एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के कई उदाहरण मिलते हैं । भारतीय संस्कृति में उनका अटूट विश्वास था ।
2. जन्म परिचय:
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म सन् 1888 में मक्के में हुआ था । उनके पिता सूफी पण्डित थे, अर्थात् धर्मशास्त्र के आचार्य थे । अबदुल कलाम के पिता मौलाना खैरूद्दीन का विवाह मदीन के प्रसिद्ध विद्वान् शेख मोहम्मद जहर की कन्या से हुआ था ।
मौलाना खैरूद्दीन को धर्मशास्त्र का अगाध ज्ञान था । उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं । उनके पिता को दुर्घटना में चोट लगी थी । अत: अपनी चिकित्सा कराने कलकत्ता आ गये और यहीं के होकर रह गये । पिता की मृत्यु के बाद उन्हें उनका स्थान ग्रहण करने पर जोर दिया गया, किन्तु उन्होंने अस्वीकार कर दिया ।
अबुल कलाम ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की । उन्हें विभिन्न विषयों को पढ़ाने के लिए अलग-अलग अध्यापक आया करते थे । इस्लामी ढंग की शिक्षा पूर्ण रूप से प्राप्त कर उन्होंने दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र व गणित की भी शिक्षा प्राप्त की । वे प्रगतिशील विचारों के मुसलमान थे ।
एक बार उन्होंने सर सैयद अहमद के रूढ़िवादी धार्मिक विचारों का विरोध भी किया था । वे जानते थे कि पुराने ढंग की शिक्षा प्राप्त करने से काम नहीं चलेगा । अत: विज्ञान के साथ-साथ अंग्रेजी का ज्ञान भी आवश्यक है । अपने मित्र की सहायता से शब्दकोश और समाचार-पत्रों के माध्यम से अंग्रेजी सीख ली । अबुल कलाम के विचारों में एक उदार दृष्टिकोण था, जिससे कुछ लोग प्रभावित हुए और कुछ ने इनका विरोध किया ।
3. उनके कार्य:
अबुल कलाम देश के सच्चे सपूत थे । अत: 1905 के बंग-भंग आन्दोलन में वे सक्रिय रूप से कूद पड़े । उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम बहुमत के आधार पर बंगाल विभाजन का पुरजोर विरोध किया । बंगाल के क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आकर इस आन्दोलन को आगे बढ़ाया । उन्होंने इराक, मिश्र, सीरिया, तुर्की और फ्रांस की भी यात्रा की और इन देशों के राष्ट्रवादियों से सम्पर्क किया ।
मुसलमानों में राष्ट्रीय विचारधारा का प्रचार करने के लिए उन्होंने 1912 में उर्दू साप्ताहिक पत्रिका ”अलहिलाल” का प्रकाशन किया । इसकी लोकप्रियता ऐसी थी कि सप्ताह में 26 हजार प्रतियां बिकने लगीं । 1914 में अंग्रेज सरकार ने इसे साम्राज्यवाद विरोधी मानकर जब्त कर लिया । 1916 में उन्हें कलकत्ता से निष्कासित कर अन्य राज्यों में प्रवेश से वंचित कर दिया । उन्हें 6 माह के लिए बिहार के रांची में नजरबन्द कर दिया गया ।
1920 में रिहा होते ही वे गांधीजी से मिले और असहयोग आन्दोलन में पूरी शक्ति से भाग लिया । 1923 में जब वे रिहा होकर आये, तो उन्हें न केवल कलकत्ता अधिवेशन का सभापति चुना गया, वरन् अखिल भारतीय स्तर का राष्ट्रीय नेता भी घोषित किया गया । नमक सत्याग्रह में गांधीजी के साथ फिर जेल में डाल दिये गये । लंदन के गोलमेल सम्मेलन के असफल होते ही उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के सिलसिले में कैद कर लिया गया । वे सन् 1945 तक जेल में रहे ।
देश के स्वत्तन्त्र होने के बाद वे प्रथम शिक्षा मन्त्री बने । विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948 और माध्यमिक शिक्षा आयोग 1959 में उन्होंने वैज्ञानिक व प्राविधिक शिक्षा की वकालत की । उन्हीं के प्रयत्नों से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना हुई । शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के साथ-साथ उन्होंने उर्दू भाषा और साहित्य की बड़ी सेवा की । आजीवन कार्य करते हुए 22 फरवरी 1958 को उनकी मृत्यु हो गयी ।
4. उपसंहार:
मौलाना अबुल कलाम आजाद सच्चे राष्ट्रभक्त, एक कुशल वक्ता तथा महान् विद्वान् थे । पुराने एवं नये विचारों में अद्भुत सामंजस्य रखने वाले हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे । देश सेवा और इस्लाम सेवा दोनों को एक्-दूसरे का पूरक मानते थे । हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संस्कृतियों के अनूठे सम्मिश्रण की वे एक मिसाल थे ।
मौलाना अबुल कलाम आजाद भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक महान् सेनानी तथा राष्ट्रवादी नेता थे । आचार्य जे०बी० कृपलानी ने उनके सम्बन्ध में कहा था- ”वे भारत के एक महान् शास्त्रवेत्ता, विद्वान्, प्रभावशाली वक्ता, राष्ट्रभक्त एवं विश्ववादी नेता थे ।” धर्मनिरपेक्षतावादी सिद्धान्तों में उनकी गहरी आस्था थी । उनकी निडरता एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के कई उदाहरण मिलते हैं । भारतीय संस्कृति में उनका अटूट विश्वास था ।
2. जन्म परिचय:
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म सन् 1888 में मक्के में हुआ था । उनके पिता सूफी पण्डित थे, अर्थात् धर्मशास्त्र के आचार्य थे । अबदुल कलाम के पिता मौलाना खैरूद्दीन का विवाह मदीन के प्रसिद्ध विद्वान् शेख मोहम्मद जहर की कन्या से हुआ था ।
मौलाना खैरूद्दीन को धर्मशास्त्र का अगाध ज्ञान था । उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं । उनके पिता को दुर्घटना में चोट लगी थी । अत: अपनी चिकित्सा कराने कलकत्ता आ गये और यहीं के होकर रह गये । पिता की मृत्यु के बाद उन्हें उनका स्थान ग्रहण करने पर जोर दिया गया, किन्तु उन्होंने अस्वीकार कर दिया ।
अबुल कलाम ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की । उन्हें विभिन्न विषयों को पढ़ाने के लिए अलग-अलग अध्यापक आया करते थे । इस्लामी ढंग की शिक्षा पूर्ण रूप से प्राप्त कर उन्होंने दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र व गणित की भी शिक्षा प्राप्त की । वे प्रगतिशील विचारों के मुसलमान थे ।
एक बार उन्होंने सर सैयद अहमद के रूढ़िवादी धार्मिक विचारों का विरोध भी किया था । वे जानते थे कि पुराने ढंग की शिक्षा प्राप्त करने से काम नहीं चलेगा । अत: विज्ञान के साथ-साथ अंग्रेजी का ज्ञान भी आवश्यक है । अपने मित्र की सहायता से शब्दकोश और समाचार-पत्रों के माध्यम से अंग्रेजी सीख ली । अबुल कलाम के विचारों में एक उदार दृष्टिकोण था, जिससे कुछ लोग प्रभावित हुए और कुछ ने इनका विरोध किया ।
3. उनके कार्य:
अबुल कलाम देश के सच्चे सपूत थे । अत: 1905 के बंग-भंग आन्दोलन में वे सक्रिय रूप से कूद पड़े । उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम बहुमत के आधार पर बंगाल विभाजन का पुरजोर विरोध किया । बंगाल के क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आकर इस आन्दोलन को आगे बढ़ाया । उन्होंने इराक, मिश्र, सीरिया, तुर्की और फ्रांस की भी यात्रा की और इन देशों के राष्ट्रवादियों से सम्पर्क किया ।
मुसलमानों में राष्ट्रीय विचारधारा का प्रचार करने के लिए उन्होंने 1912 में उर्दू साप्ताहिक पत्रिका ”अलहिलाल” का प्रकाशन किया । इसकी लोकप्रियता ऐसी थी कि सप्ताह में 26 हजार प्रतियां बिकने लगीं । 1914 में अंग्रेज सरकार ने इसे साम्राज्यवाद विरोधी मानकर जब्त कर लिया । 1916 में उन्हें कलकत्ता से निष्कासित कर अन्य राज्यों में प्रवेश से वंचित कर दिया । उन्हें 6 माह के लिए बिहार के रांची में नजरबन्द कर दिया गया ।
1920 में रिहा होते ही वे गांधीजी से मिले और असहयोग आन्दोलन में पूरी शक्ति से भाग लिया । 1923 में जब वे रिहा होकर आये, तो उन्हें न केवल कलकत्ता अधिवेशन का सभापति चुना गया, वरन् अखिल भारतीय स्तर का राष्ट्रीय नेता भी घोषित किया गया । नमक सत्याग्रह में गांधीजी के साथ फिर जेल में डाल दिये गये । लंदन के गोलमेल सम्मेलन के असफल होते ही उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के सिलसिले में कैद कर लिया गया । वे सन् 1945 तक जेल में रहे ।
देश के स्वत्तन्त्र होने के बाद वे प्रथम शिक्षा मन्त्री बने । विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948 और माध्यमिक शिक्षा आयोग 1959 में उन्होंने वैज्ञानिक व प्राविधिक शिक्षा की वकालत की । उन्हीं के प्रयत्नों से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना हुई । शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के साथ-साथ उन्होंने उर्दू भाषा और साहित्य की बड़ी सेवा की । आजीवन कार्य करते हुए 22 फरवरी 1958 को उनकी मृत्यु हो गयी ।
4. उपसंहार:
मौलाना अबुल कलाम आजाद सच्चे राष्ट्रभक्त, एक कुशल वक्ता तथा महान् विद्वान् थे । पुराने एवं नये विचारों में अद्भुत सामंजस्य रखने वाले हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे । देश सेवा और इस्लाम सेवा दोनों को एक्-दूसरे का पूरक मानते थे । हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संस्कृतियों के अनूठे सम्मिश्रण की वे एक मिसाल थे ।
Similar questions
Math,
7 months ago
English,
7 months ago
Math,
7 months ago
Hindi,
1 year ago
Social Sciences,
1 year ago
CBSE BOARD X,
1 year ago