essay on majduro ki samasya aur Unka Samadhan 400 words in Hindi
Answers
मजदूर हमारे समाज का वह तबका है जिस पर समस्त आर्थिक उन्नति टिकी होती है । वह मानवीय श्रम का सबसे आदर्श उदाहरण है । वह सभी प्रकार के क्रियाकलापों की धुरी है । आज के मशीनी युग में भी उसकी महत्ता कम नहीं हुई है । उद्योग, व्यापार,कृषि, भवन निर्माण, पुल एवं सड़कों का निर्माण आदि समस्त क्रियाकलापों में मजदूरों के श्रम का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है ।
मजदूर अपना श्रम बेचता है । बदले में वह न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करता है । उसका जीवन-यापन दैनिक मजदूरी के आधार पर होता है । जब तक वह काम कर पाने में सक्षम होता है तब तक उसका गुजारा होता रहता है । जिस दिन वह अशक्त होकर काम छोड़ देता है, उस दिन से वह दूसरों पर निर्भर हो जाता है । भारत में कम से कम असंगिठत क्षेत्र के मजदूरों की तो यही स्थिति है । असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की न केवल मजदूरी कम होती है, अपितु उन्हें किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी प्राप्त नहीं होती ।
संगठित क्षेत्र के मजदूरों की स्थिति कुछ अच्छी है । उन्हें मासिक वेतन, महँगाई भत्ता, पेंशन एवं अन्य सुविधाएँ प्राप्त हैं । उनके काम करने की दशाएँ बेहतर होती हैं । कार्य के दौरान मृत्यु होने पर उन्हें विभाग की ओर से सुरक्षा प्रदान की जाती है ताकि उनका परिवार बेसहारा न हो
मजदूर चाहे किसी भी क्षेत्र का हो, आर्थिक क्रियाकलापों में उसकी अग्रणी भूमिका होती है । वह सड़कों एवं पुलों के निर्माण में सहयोग करता है । वह भवन निर्माण के क्षेत्र में भरपूर योगदान देता है । वह ईटें बनाता है, वह खेती में किसानों की मदद करता है । शहरों और गाँवों में उसे कई प्रकार के कार्य करने होते हैं । तालाबों, कुओं, नहरों और झीलों की खुदाई में उसके श्रम का बहुत इस्तेमाल होता है । रिक्यहचालक, सफाई, कर्मचारी, बढ़ई, लोहार, हस्तशिल्पी, दर्जी, पशुपालक आदि वास्तव में मजदूर ही होते हैं । सूती वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, हथकरघा उद्योग, लोहा एवं इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग आदि जितने भी प्रकार के उद्योग हैं उनमें मजदूरों की भागीदारी अपरिहार्य होती है ।
यदि मजदूरों की अब की स्थिति देखें तो उनकी हालत में सुधार होता दिखाई देता है । पहले मजदूरों की स्थिति दयनीय थी । उन्हें पर्याप्त काम नहीं मिल पाता था । जमींदार और बड़े-बड़े किसान उन्हें बंधुआ बनाकर रखते थे । उनसे श्रम अधिक लिया जाता था और पारिश्रमिक कम दिया जाता था । अब बंधुआ मजदूरी की प्रथा समाप्त कर दी गई है । सरकार की ओर से उनके लिए न्यूनतम मजदूरी की घोषणा की जाती है जिसमें समय-समय पर सुधार किया जाता है ।
मजदूरों के लिए प्रांतीय तथा केन्द्र सरकार की ओर से समय-समय पर कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की जाती है । रोजगार गारंटी कार्यक्रम के अधीन ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों के लिए कम से कम सौ दिनों के रोजगार या बेरोजगारी भत्ते की व्यवस्था की गई है । इन कदमों से मजदूरों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है भारतीय संविधान में श्रमिकों की सहूलियत के लिए कुछ ऐसे प्रावधान रखे गए हैं जिनका लाभ उन्हें मिला है । श्रमिकों से लिए जाने वाले काम के घंटे निर्धारित कर दिए गए हैं । उनसे अतिरिक्त श्रम लेने पर अतिरिक्त भुगतान भी करना पड़ता है । बंधुआ मजदूरी की प्रथा को कानूनी तौर पर समाप्त कर दिया गया है । श्रम से संबंधित मामलों के निबटारे के लिए श्रम-न्यायालय खोले गए हैं । बच्चों से काम लेने की प्रथा को कानूनी तौर पर समाप्त कर दिया गया है । श्रम संगठनों को अपने हित के लिए आन्दोलन चलाने का अधिकार प्रदान किया गया है ।
इन सबके बावजूद श्रमिकों के कल्याण की दिशा में अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है । खासकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए अभी अनेक कार्य करने हैं । उन्हें पेंशन तथा कुछ सामाजिक सुरक्षा देने की जरूरत है । मजदूरों के श्रम का सम्मान होना चाहिए । उनकी जीवन-दशा में सुधार की प्रक्रिया तेज की जानी चाहिए । ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि उन्हें बारहों महीने पर्याप्त काम मिले । राष्ट्र की प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले को प्रगति के लाभों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए ।
मजदूरों की समस्याएं और उसके समाधान
Explanation
भूमि एक अपरिहार्य लेकिन अर्थशास्त्र में एक निष्क्रिय कारक उत्पादन है। श्रम के उपयोग के बिना कोई उत्पादन संभव नहीं है। हम श्रम के बिना किसी भी उत्पादन की उम्मीद नहीं कर सकते हैं, अर्थात, इसे उत्पादन का एक अनिवार्य और सक्रिय कारक क्यों कहा जाता है। श्रम मुख्य कारकों में से एक है जो समाज की भौतिक नींव का गठन करता है।
एक अर्थव्यवस्था में, जहां कृषि प्राथमिक व्यवसाय है और कृषि से अधिकांश राष्ट्रीय आय का योगदान होता है, श्रम से संबंधित समस्याएं होती हैं, लेकिन जटिल रूप में नहीं। श्रमिक समस्याओं को सामाजिक समस्या माना जा सकता है जो विभिन्न समूहों के बीच होती है, जहां सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहकारी प्रयासों का अभाव होता है।
मजदूरी:
मजदूरी श्रम की सेवा के लिए एक भुगतान है, चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक। हालांकि एक साधारण भाषा में एक कार्यालय के कार्यकारी मंत्री या शिक्षक को एक वेतन, एक वकील या एक डॉक्टर, और एक कुशल या अकुशल कर्मचारी को एक वेतन प्राप्त करने के लिए कहा जाता है, फिर भी अर्थशास्त्र में अलग-अलग सेवाओं और सभी के लिए ऐसा कोई भेद नहीं किया जाता है। उनमें से एक मजदूरी प्राप्त करने के लिए कहा जाता है।
संघवाद:
ट्रेड यूनियन एक अनूठा संगठन है जिसमें यह स्पष्ट, वास्तव में एकमात्र उद्देश्य है, विरोध करना। मूल तथ्य यह है कि मजबूती से समझा जा सकता है कि ट्रेड यूनियनवाद विपक्ष की एक प्रणाली है और सरकार की नहीं है, और यह कि यूनियन अपने स्वयं के आंतरिक मामलों को छोड़कर कुछ भी प्रबंधित करने के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकते हैं।
प्राथमिकताएँ निर्धारित करें
कर्मचारियों के लिए अनुसूची प्राथमिकताएं मायने रखती हैं, विशेष रूप से सहस्राब्दी के साथ। अपनी प्रतिष्ठा को आलसी होने के बावजूद, नियोक्ताओं ने बताया कि सहस्राब्दी रात की शिफ्ट, ओवरटाइम और लंबे घंटों में काम करने के लिए काफी इच्छुक थे। यह काम की नैतिकता का सवाल नहीं है ... यह भविष्यवाणी के बारे में अधिक है।
कार्य से अनुपस्थित होना
देश भर में अनुपस्थिति एक समस्या है। नियोक्ता रिपोर्ट करते हैं कि सबसे आम कारण कर्मचारी अनुपस्थिति के लिए देते हैं कि उनका बच्चा (वृद्ध) बीमार है, चाइल्डकैअर के साथ चुनौतियां हैं, या उनके पास परिवहन मुद्दे हैं।