Essay on manushyata 150 words
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मनुष्यता जीवन का आधार है । मनुष्यता के कारण ही हम मनुष्य कहलाते हैं। मनुष्यता के कारण ही यह संसार जीने योग्य है।
मनुष्यता हमें मानव मात्र से नहीं अपितु संसार के हर प्राणी से प्रेम करना सिखाती है। मनुष्यता के कारण ही हमारे अंदर परोपकार की भावना विद्यमान है। परन्तु समाज में मनुष्यता की कमी दिखाई दे रही है।
लोग आज दूसरों की सहायता करने को बेकार का काम मानते हैं। उनके अनुसार यदि दूसरे की सहायता करने बैठे तो अपना काम रूक जाता है। दूसरे की आर्थिक सहायता के नाम पर लोग गूंगे-बहरे हो जाते हैं।
लेकिन हद तब हो जाती है, जब वह किसी ऐसे व्यक्ति की सहायता नहीं करते, जो बेबस है। उदाहरण के तौर पर देखें तो यदि कोई व्यक्ति दुर्घटना का शिकार होकर भूमि पर पड़ा हुआ है, तो आधे लोग तो पुलिस के चक्करों में पड़ने के कारण किनारा काट लेते हैं, कुछ लोग यह कहकर किनारा काट लेते हैं कि खून या अस्पताल को देख नहीं सकते हैं, तो कुछ यह कहकर किनारा काट लेते हैं कि हम यहाँ के निवासी ही नहीं है। वह उस व्यक्ति की बुरी अवस्था को देखते रहते हैं।
दूसरे को सहायता करने के लिए कहते हैं परन्तु सहायता के लिए आगे नहीं बढ़ते। उनके इस व्यवहार के कारण वह बेबस मनुष्य मृत्यु का ग्रास बन जाता है। तब सभी उस पर दया दिखाते हुए पूरे समाज को, पुलिस को, या सरकार को दोष देते नज़र आते हैं।
समाज क्या है? इसके अंग कौन हैं? तो इसका प्रश्न हमारे ही पास है। समाज हमसे ही बनता है। हमने अपने लिए समाज को बनाया है और हम ही इसके अंग हैं। यदि हम मनुष्यता को भूल कर स्वयं के लिए ही जीते रहेंगे, तो न हम रहेंगे और न हमारा समाज।