essay on media in hindi
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आज के समय में सोशल मीडिया के इस्तेमाल न सिर्फ स्टेटस सिम्बल के लिए, बल्कि एक जरूरत के रूप में आकार ले चूका है. इस बात में कोई शक नहीं है कि इंटरनेट क्रांति के दौर में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के रूप में दुनिया को एक बेहतरीन तोहफा मिला है. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सप्प, पिंटरेस्ट, टंब्लर, गूगल प्लस और ऐसे ही अनेक प्लेटफॉर्म पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोने की ताकत रखते हैं. यह बात कोई हवा हवाई नहीं है, बल्कि इन प्लेटफॉर्म्स ने विभिन्न अवसरों पर अपने महत्त्व को साबित भी किया है. चाहे देशी चुनाव हो अथवा विदेशी धरती पर कोई आंदोलन हो या फिर पर्सनल ब्रांडिंग ही क्यों न हो, आज लाइक्स, फालोवर्स, शेयर जैसे शब्द हर एक जुबान पर छाये हुए हैं. एक स्टडी के अनुसार 2014 में भारत के लोकसभा चुनाव में लगभग 150 सीटों पर सोशल मीडिया ने जीत में अपनी भूमिका निभाई थी, वहीं दिल्ली राज्य के बहुचर्चित चुनाव में अरविन्द केजरीवाल द्वारा नवगठित पार्टी ने अपना 80 फीसदी कैम्पेन सोशल मीडिया के माध्यम से ही किया, और परिणाम पूरी दुनिया ने देखा. इसके अतिरिक्त मिश्र देश में हुए आंदोलन में सोशल मीडिया की भूमिका हम सब जानते ही हैं और व्यक्तिगत ब्रांडिंग के लिए भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल नेताओं, खिलाडियों, अभिनेताओं द्वारा धड़ल्ले से किया जा रहा है. थोड़ा और आगे बढ़ा जाय, तो बड़े नेताओं के साथ छुटभैये नेता भी फेसबुक, ट्विटर प्रबंधन और मेलिंग के लिए आईटी- प्रोफेशनल्स से संपर्क साध रहे हैं, या फिर अपने किसी रिश्तेदार, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा हो, या जॉब कर रहा हो, उससे इस सम्बन्ध में सहायता ले रहे हैं. आप चाहे गाँव में ही क्यों न हों, आपको तमाम नवयुवक अपने फेसबुक और जुड़े मित्रों से सम्बंधित गतिविधियाँ शेयर करते नजर आएंगे. पर इन सकारात्मक दृश्यों के पीछे एक कड़वी परत भी दिखती है, जिसमें सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल भी उतनी ही तेजी से बढ़ रहा है. मुज़फ्फरनगर में पिछले दिनों हुए दंगों में सोशल मीडिया के इस्तेमाल की खबरें बड़ी तेजी से फैली थीं, तो जम्मू कश्मीर में भी आये दिन इस तरह की खबरें देखने को मिलती ही रहती हैं. इसके अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में नफरत भरे संदेशों को सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाया जा रहा है, कई बार इरादतन और संगठित रूप में तो कई बार बहकावे में युवक – युवतियां ऐसे कदम उठा देते हैं, जो उनकी गिरफ़्तारी तक जा पहुँच जाता है. हालाँकि, इस सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, जिसमें तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गयी है, उससे इन माध्यमों का गलत इस्तेमाल करने वालों द्वारा फायदा उठाने की सम्भावना भी बढ़ सकती है. अभी हाल ही में कविता कृष्णन और बॉलीवुड के आदर्शवादी ‘बाबूजी’ कहे जाने वाले सीनियर अभिनेता आलोक नाथ के बीच ट्विटर पर गाली – गलौच किये जाने का शो हावी रहा, जिसको लेकर सोशल मीडिया यूजर्स ने ज़ोरदार, मगर नकारात्मक सक्रियता दिखाई. इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना वह दर्द नहीं छुपा पाये, जिसे उन्होंने एक लम्बे समय तक झेला है. एक खबर के अनुसार पीएम ने सोशल मीडिया पर सक्रिय अपने 100 समर्थकों से बातचीत के दौरान कहा, ‘सोशल मीडिया पर मुझे जिन भद्दे और गाली जैसे शब्दों का सामना करना पड़ा है, यदि उनके प्रिंट निकाले जाएं तो पूरा ताजमहल ढंक जाएगा.’ इसके बावजूद पीएम मोदी ने आलोचनाओं को शालीनता से सुनते हुए अपने समर्थकों से परिपक्व बर्ताव करने की नसीहत दी, जिसे सराहा ही जाना चाहिए. वैसे, मजाक में कहा जा सकता है कि शायद सोशल मीडिया पर गाली – गलौच झेलने के बाद ही नरेंद्र मोदी इसके प्रति सीरियस हुए होंगे और तभी उनको इसकी मजबूती का अहसास भी हो गया होगा.
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