Essay on mere adarsh in hindi
Answers
मेरे आदर्श स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद, जिनका नाम आते ही मन में श्रद्धा और स्फूर्ति दोनों का संचार होता है। श्रद्धा इसलिये, क्योंकि उन्होंने भारत के नैतिक एवं जीवन मूल्यों को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया और स्फूर्ति इसलिये क्योंकि इन मूल्यों से जीवन को एक नई दिशा मिलती है।
युवाओं के लिए स्वामीजी का संदेश :- युवाओं के लिए उनका कहना था कि पहले अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाओ, मैदान में जाकर खेलो, कसरत करो ताकि स्वस्थ-पुष्ट शरीर से धर्म-अध्यात्म ग्रंथों में बताए आदर्शो में आचरण कर सको। आज जरूरत है ताकत और आत्म विश्वास की, आप में होनी चाहिए फौलादी शक्ति और अदम्य मनोबल।
शिक्षा ही आधार है :- अपने जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद ने न केवल पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया, बल्कि लाखों लोगों से मिले और उनका दुख-दर्द भी बांटा। इसी क्रम में हिमालय के अलावा, वे सुदूर दक्षिणवर्ती राज्यों में भी गए, जहां उनकी मुलाकात गरीब और अशिक्षित लोगों से भी हुई। साथ ही साथ धर्म संबंधित कई विद्रूपताएं भी उनके सामने आई। इसके आधार पर ही उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक देश की रीढ़ ‘युवा’ अशिक्षित रहेंगे, तब तक आजादी मिलना और गरीबी हटाना कठिन होगा। इसलिए उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से सोए हुए युवकों को जगाने का काम शुरू कर दिया।
स्वामी विवेकानंद ने अपनी वाणी से हमेशा भारतीय युवाओं को उत्साहित किया। उनके उपदेश आज भी संपूर्ण मानव जाति में शक्ति का संचार करते है। उनके अनुसार, किसी भी इंसान को असफलताओं को धूल के समान झटक कर फेंक देना चाहिए, तभी सफलता उनके करीब आती है। स्वामी जी के शब्दों में ‘हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए’।
मात्र 39 वर्ष की अवस्था में ही स्वामी विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए। हां यह सच है कि इतने वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी उनके कहे गए शब्द सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रेरणादायी है। कुछ महापुरुषों ने उनके प्रति उद्गार प्रकट किया है कि जब-जब मानवता निराश एवं हताश होगी, तब-तब स्वामी विवेकानंद के उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार जन-जन को प्रेरणा देते रहेगे और कहते रहेंगे-’उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रुको।’
सफलता के लिए स्वामी विवेकानंद का मूल-मंत्र:-
1. उठो जागो, रुको नहीं:- उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।
2. तूफान मचा दो:- तमाम संसार हिल उठता। क्या करूँ धीरे-धीरे अग्रसर होना पड़ रहा है। तूफ़ान मचा दो तूफ़ान!
3. अनुभव ही शिक्षक :-जब तक जीना, तब तक सीखना -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
4. पवित्रता और दृढ़ता:- पवित्रता, दृढ़ता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ।
5. ज्ञान और अविष्कार :- ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
6. मस्तिष्क पर अधिकार :- जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
7. स्तुति करें या निंदा :- लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो।
8. किसी के सामने सिर मत झुकाना :- तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
please mark me as brainlist