India Languages, asked by delhi192, 8 months ago

essay on morning walk in sanskrit

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Answered by chinu1618
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शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् अर्थात धर्म की साधना शरीर के माध्यम से ही की जा सकती है। जाहिर है कि जीवन की सार्थकता और जीवन का लक्षण ही कर्म है और कोई भी कार्य करने के लिए शारीरिक सक्षमता और शारीरिक स्वास्थ्य आवश्यक है वैसे भी प्रचलित वाक्य है कि स्वस्थ शरीर मेंही स्वस्थ मन का निवास होता है और काम तो कोई भी हो यदि मन से किआ जाय तभी सफलता प्राप्त हो सकती है बेमन से नहीं।

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित भोजन शयन स्वच्छता तथा किंचित व्यायाम की भी आवश्यकता ही तो है।..... और घूमना-फिरना या कहे कि टहलना एक ऐसा व्यायाम है कि जिसके विषय में यदि कहा जाय कि हींग लगे न फिटकिरी और रंग आए चोखा तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

सैर की सबसे बडी खासियत है उसकी सरलता। यह इतना आसान क्रिया-कलाप है कि हर उम्र और हर वर्ग का व्यक्ति चाहे वह महिला हो या पुरूष इसे आसानी से कर सकता है और फिर यह सैर यदि सुबह किया जाये तो कहना ही क्या-सोने पे सुहागा-और क्या। क्योंकि प्रातःकाल के शांत वातावरण में स्वच्छ-शुद्ध प्राणवायु सुलभ होती है। 

अँगरेजी कहावत है-अर्ली टु बेड एंड अर्ली टु राइज मेक्स अ मैन हेल्दी वेल्दी एंड वाइस। अतः सुबह उठना पहली शर्त है। इसके बाद अल्प प्रयत्न से असीम लाभ होना अवश्यंभावी है। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय क्षेत्र में रहता हूँ। महानगरीय जीवनकी कतिपय अपनी व्यस्तताएँ और विवशताएँ हैं जिनके कारण रात को देर से ही सोना हो पाता है रात को देर से सोया व्यक्ति सुबह उस वक्त ही उठ पाता है जब प्रातःकालीन सैर का समय निकल चुका होता है। मैं रात को चाहे जिस समय भी सोऊँ सूबह चार बजे बिस्तर से उठ जाता हूँ। इसके लिए मैं घड़ी में सुबह पौने चार बजे का अलार्म लगाकर तब सोता हूँ तथा सुबह जब नियत समय पर अलार्म बजना शुरू होता है तो सुनकर फौरन उठ बैठता हूँ। इसमें प्रारंभ में तो कुछ कठिनाई हुई थी यह सहज और स्वाभाविक बन गया है-हाँ कभी यदि रात को सोने में अधिक व्यवधान होता है और नींद पूरी नहीं हो पाती तो मैं दिन में ही कुछ देर झपकी झपकी लेकर कसर पूरी कर लेता हूँ। सुबह उठकर नित्यक्रिया से निवृत्त होकर मैं सैर के लिए निकल पड़ताहूँ। मैरा सौभागय् है कि शहर का यह क्षेत्र पार्कों और खुले मैदानों से समृद्ध है। इन पार्कों और खुले मैदानों में इस समय कई लोग कदमों से चहल कदमी कर रहे होते हैं। कोई योगासन करता होता है तो कोई दौड़ लगा रहा होता है। कुछ बुजुर्ग इकट्ठे होकर कहकहे लगा रहे होते हैं। खुलकर हँसने और कहकहे लगाने से भी बहुत लाभ होता है इससे तनाव पास नही फटकता और दिल की बीमारियों से बचाव होता है।

यह सब दृश्य देखता हुआ मैं तेज कदमों से आगे बढ़ता ही जाता हूँ और नगर में अन्यत्र दुर्लभ वन क्षेत्र में प्रवेश कर जाता हूँ। थोड़ी-सी चढ़ाई चढ़ने पर एक चौराहा है जिसके बीचों बीच एक गुंबज बना हुआ है। सुबह की सैर और व्यायाम के शौकीनो की बड़ी तादाद यहाँ पहुँचती है। एक सज्जन अपने खानदानी नुस्खे से आँखों के लिए मुफीद सुरमा लिए बैठे रहते हैं और अपने पहुँचने वाले लोगों की आँखों में सुरम डालकर सेवा करतेह । कुछ कदरदान उनसे सुरमें की शीशी खरीद ले जाते हैं। कुछ लोग बैडमिंटन खेलते हैं तो कुछ दौड़ लगाते हैं तथा व्यायाम योगासन दि करते बहुत से लोग दिखलाई पड़तेहं। यहीं एक बहुत पुराना जिम भी ह जहाँ युवक वेटलिफ्टिंग तथा अन्य कसरते करते रहते हैं। यह वन-क्षेत्र कापी दूरी में पसरा हुआ है। मैंतो वन में गुसकर खूब घूमता हूँ। बाँति-भाँति के कलरव करते पक्षियों को उनके प्राकृतिक परिवेश में देख कर आनंद भी होता है और पशु-पक्षियों के विषय में ज्ञ3न भी बढ़ता है।

सूर्योदय का दृश्य लुभावना तो होता ही है पर साथ-साथ वृक्षों पर किलोल करते बंदरों को द्खना तथा पक्षियों का कलरव  सुनना मन को प्रफुल्लित कर देता है। इन्हीं दृश्यों में खोया हुआ मै जब उदित सूर्य को प्रखर होता पाता हूँ तो प्रखर होता पाता हूँ तो लौट पड़ता हूँ घर की ओर...।

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