Essay on mountain scenery in Hindi
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प्राकृतिक भौगोलिक दृष्टि से भारत विविधता भरा देश है । प्रकृति ने यहाँ ऐसे अनेक पहाड़ बनाए हैं, जो उन दिनों भी ठण्डे और सुखदायक रहा करते हैं, जिन दिनों देश के मैदानी इलाके भीषण गर्मी और लू के ताप से जल और झुलस रह होते हैं । ये या इस तरह के प्राय: पहाड़ी स्थल (ऊण्टी आदि को छोड्कर) हिमालय पर्वतमाला के अन्तर्गत ही पड़ते हैं, जिस का विस्तार उत्तर दिशा में स्थित उत्तर-प्रदेश, काश्मीर और हिमाचल प्रदेश तक अत्यन्त व्यापक है ।
इन स्थानों पर जैसे प्रकृति के विभिन्न एवं विविध रूपों ने अपना घर द्वार बना रखा है या फिर अपनी सुन्दर शृंगार-पिटारी खोल रखी है । इनमें से किसी एक स्थान का दर्शन ही सुख-आनन्द की सृष्टि करने वाला है । यदि यहाँ पर निवास का अवसर भी प्राप्त हो जाए, तब तो फिर कहना ही क्या? जिन दिनों देश के मैदानी भागों में भीषण गर्मी पड़ रही और झुलसा देने वाली लू चल रही होती हैं, .तब अक्सर धनी और सम्पन्न परिवार इन पर्वत-प्रदेशों के ठण्डे वातावरण में रहने चले आया करते हैं ।
हमारी आर्थिक स्थिति इस प्रकार कि नहीं कि हम लोग भी भीषण गर्मियों का समय हर वर्ष ऐसे ही किसी पहाड़ी प्रदेश पर बिता सकें; पर गत वर्ष हम कुछ मित्रों ने अपने घर-परिवार के संरक्षकों से आइघ लेकर गर्मी की छुट्टियों का कम-से-कम एक सप्ताह किसी पहाड़ी स्थल पर बिता कर वहाँ के वातावरण का नया अनुभव प्राप्त करने का निश्चय किया । पहले हमने काश्मीर जाने का निर्णय किया; पर पाकिस्तानी आतंकवाद के कारण वहाँ की यात्रा सुरक्षित न मान विचार बदल दिया । फिर हम ऊँटी, नैनीताल, रानीखेत, शिमला और मसूरी आदि जाने का कार्यक्रम बनाते रहे । बहुमत से अन्त में हमने मसूरी जाने का निर्णय ही किया, कि जो दिल्ली से सबसे निकटतम पहाड़ी स्थान था ।
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग तथा अन्य जानकार लोगों से पूछताछ करके हमने वहाँ के मौसम के बारे में सब तरह की जानकारी प्राप्त कर ली । वहाँ दिन में कैसे कपड़ों से काम चलता है, रात कितनी ठण्डी होती है आदि सभी कुछ जानकर हमने उसके अनुसार तैयारी आरम्भ कर दी । आखिर वह दिन आ गया, जिस दिन हम मित्रों ने मसूरी के लिए प्रस्थान करना था । रात को सभी मित्र अपना-अपना आवश्यक; पर हल्का-फुल्का सामान लेकर एक ही स्थान पर इकट्ठे हो गए ।
यात्रा बस से करनी थी और उसके लिए छ: स्थान हमने पहले ही आरक्षित करा लिए थे । सो अगली सुबह जल्दी से उठ, नहा-धो, नाश्ता क२ हम पहली बस से मसूरी के लिए रवाना हो गए । देहरादून के कुछ इधर तक तो यात्रा आम मैदानी इलाकों जैसी ही रही । ही, देहरादून की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपर की ओर उठती धरती और आस-पास के पठारों, खन्दकों, रास्ते के आस-पास उगे यूक्लइप्टिस के पेड़-पौधों को निहार कर इस अहसास से मन प्रसन्न एवं रोमांचित होने लगा कि हम लोग सचमुच ही किसी पहाड़ी यात्रा पर ही जा रहे हैं ।
देहरादून का मौसम दिल्ली जैसा ही था । वहाँ बस लगभग आधा घण्टा रुकी रही । घोषणा हुई कि यहाँ नाश्ता-भोजन किया जा सकता है । इसके बाद बस मसूरी पहुँच कर ही रुकेगी । खैरनाश्ता-भोजन के बाद -बस मसूरी के लिए चल पड़ी । कुछ मील आगे टैक्स-पोस्ट पार करने के ब जब चक्करदार चढ़ाई आरम्भ हुई और मौसम में भी ठण्डक घुलते जाने का अहसास हुआ, तो हम सभी का मन खिल उठा ।
पता लगा कि वहाँ से लगभग 3०-35 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद ही मसूरी पहुँचा जा सकेगा । जो हो, अन्त में मसूरी पहुँच ही गए । तब तक लग रहा था साँझ होने वाली है । .बस रुकते ही फटेहाल और ठण्ड से ठिठुर रहे भूखे-नंगे मजदूरों ने हमें आ कर घेर लिया । होटलों के एजेण्ट भी अपने-अपने रंगीन कार्ड और बातों की रंगीनियाँ लेकर हमारे रहने- ठहरने को व्यवस्था कर देने के लिए आ गए ।
लेकिन सबकी सुनने और सोच विचार के बाद हमनें एक मजदूर के साथ जाना उचित समझा जिसने रहने के लिए सस्ता निवास दिलाने का वचन दिया । मुख्य सड़क मालरोड से काफी हट कर पीछे होते हुए भी वह स्थान काफी अच्छा और सस्ता था । सामान रख, चाय पीकर हम उसी समय नीचे मालरोड की सैर करने आ जाए । वहाँ का वातावरण बड़ा गहमागहम भरा और रंगीन था । काफी देर इधर-उधर घूमने, एक ढाबे पर खाना खाने के बाद हम लोग अपने निवास पर आकर जैसे घोड़े बेचकर सो गए ।
अगली सुबह रख खुली तो खिड़की से देखा कि सारी घाटी घुa*aाँ-धुa*aाँ हो रही हैं । महसूस हुआ जैसे धुँधवारे बादल खिड़की की राह भीतर भी घुसे आ रहे हैं । दृश्य बड़ा ही मनोरम था । उसके बाद झमाझम वर्षा और फिर धूप चमकने लगी । नाश्ता आदि कर हम वहाँ के धोबीघाट, कैम्बल हाइट, काम्पटी फाल, नेहरू पार्क तथा अन्य दर्शनीय स्थल देखने निकल पडे । सभी स्थान तीन-चार रोज में जाकर देख सके । सबसे रोमांचक काम्पटी फाल तक की पैदल यात्रा रह
इन स्थानों पर जैसे प्रकृति के विभिन्न एवं विविध रूपों ने अपना घर द्वार बना रखा है या फिर अपनी सुन्दर शृंगार-पिटारी खोल रखी है । इनमें से किसी एक स्थान का दर्शन ही सुख-आनन्द की सृष्टि करने वाला है । यदि यहाँ पर निवास का अवसर भी प्राप्त हो जाए, तब तो फिर कहना ही क्या? जिन दिनों देश के मैदानी भागों में भीषण गर्मी पड़ रही और झुलसा देने वाली लू चल रही होती हैं, .तब अक्सर धनी और सम्पन्न परिवार इन पर्वत-प्रदेशों के ठण्डे वातावरण में रहने चले आया करते हैं ।
हमारी आर्थिक स्थिति इस प्रकार कि नहीं कि हम लोग भी भीषण गर्मियों का समय हर वर्ष ऐसे ही किसी पहाड़ी प्रदेश पर बिता सकें; पर गत वर्ष हम कुछ मित्रों ने अपने घर-परिवार के संरक्षकों से आइघ लेकर गर्मी की छुट्टियों का कम-से-कम एक सप्ताह किसी पहाड़ी स्थल पर बिता कर वहाँ के वातावरण का नया अनुभव प्राप्त करने का निश्चय किया । पहले हमने काश्मीर जाने का निर्णय किया; पर पाकिस्तानी आतंकवाद के कारण वहाँ की यात्रा सुरक्षित न मान विचार बदल दिया । फिर हम ऊँटी, नैनीताल, रानीखेत, शिमला और मसूरी आदि जाने का कार्यक्रम बनाते रहे । बहुमत से अन्त में हमने मसूरी जाने का निर्णय ही किया, कि जो दिल्ली से सबसे निकटतम पहाड़ी स्थान था ।
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग तथा अन्य जानकार लोगों से पूछताछ करके हमने वहाँ के मौसम के बारे में सब तरह की जानकारी प्राप्त कर ली । वहाँ दिन में कैसे कपड़ों से काम चलता है, रात कितनी ठण्डी होती है आदि सभी कुछ जानकर हमने उसके अनुसार तैयारी आरम्भ कर दी । आखिर वह दिन आ गया, जिस दिन हम मित्रों ने मसूरी के लिए प्रस्थान करना था । रात को सभी मित्र अपना-अपना आवश्यक; पर हल्का-फुल्का सामान लेकर एक ही स्थान पर इकट्ठे हो गए ।
यात्रा बस से करनी थी और उसके लिए छ: स्थान हमने पहले ही आरक्षित करा लिए थे । सो अगली सुबह जल्दी से उठ, नहा-धो, नाश्ता क२ हम पहली बस से मसूरी के लिए रवाना हो गए । देहरादून के कुछ इधर तक तो यात्रा आम मैदानी इलाकों जैसी ही रही । ही, देहरादून की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपर की ओर उठती धरती और आस-पास के पठारों, खन्दकों, रास्ते के आस-पास उगे यूक्लइप्टिस के पेड़-पौधों को निहार कर इस अहसास से मन प्रसन्न एवं रोमांचित होने लगा कि हम लोग सचमुच ही किसी पहाड़ी यात्रा पर ही जा रहे हैं ।
देहरादून का मौसम दिल्ली जैसा ही था । वहाँ बस लगभग आधा घण्टा रुकी रही । घोषणा हुई कि यहाँ नाश्ता-भोजन किया जा सकता है । इसके बाद बस मसूरी पहुँच कर ही रुकेगी । खैरनाश्ता-भोजन के बाद -बस मसूरी के लिए चल पड़ी । कुछ मील आगे टैक्स-पोस्ट पार करने के ब जब चक्करदार चढ़ाई आरम्भ हुई और मौसम में भी ठण्डक घुलते जाने का अहसास हुआ, तो हम सभी का मन खिल उठा ।
पता लगा कि वहाँ से लगभग 3०-35 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद ही मसूरी पहुँचा जा सकेगा । जो हो, अन्त में मसूरी पहुँच ही गए । तब तक लग रहा था साँझ होने वाली है । .बस रुकते ही फटेहाल और ठण्ड से ठिठुर रहे भूखे-नंगे मजदूरों ने हमें आ कर घेर लिया । होटलों के एजेण्ट भी अपने-अपने रंगीन कार्ड और बातों की रंगीनियाँ लेकर हमारे रहने- ठहरने को व्यवस्था कर देने के लिए आ गए ।
लेकिन सबकी सुनने और सोच विचार के बाद हमनें एक मजदूर के साथ जाना उचित समझा जिसने रहने के लिए सस्ता निवास दिलाने का वचन दिया । मुख्य सड़क मालरोड से काफी हट कर पीछे होते हुए भी वह स्थान काफी अच्छा और सस्ता था । सामान रख, चाय पीकर हम उसी समय नीचे मालरोड की सैर करने आ जाए । वहाँ का वातावरण बड़ा गहमागहम भरा और रंगीन था । काफी देर इधर-उधर घूमने, एक ढाबे पर खाना खाने के बाद हम लोग अपने निवास पर आकर जैसे घोड़े बेचकर सो गए ।
अगली सुबह रख खुली तो खिड़की से देखा कि सारी घाटी घुa*aाँ-धुa*aाँ हो रही हैं । महसूस हुआ जैसे धुँधवारे बादल खिड़की की राह भीतर भी घुसे आ रहे हैं । दृश्य बड़ा ही मनोरम था । उसके बाद झमाझम वर्षा और फिर धूप चमकने लगी । नाश्ता आदि कर हम वहाँ के धोबीघाट, कैम्बल हाइट, काम्पटी फाल, नेहरू पार्क तथा अन्य दर्शनीय स्थल देखने निकल पडे । सभी स्थान तीन-चार रोज में जाकर देख सके । सबसे रोमांचक काम्पटी फाल तक की पैदल यात्रा रह
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