Hindi, asked by navinchourasia, 1 year ago

essay on nari shiksha

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Answered by muskan123419
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Explanation:

भारत में नारियों को हर दृष्टि से पूज्य शक्तिस्वरूपा माना जाता रहा है । इतिहास के कुछ अंधकारमय कालखण्ड को छोड्‌कर सदा ही नारी के शिक्षा एवं संस्कार को महत्व प्रदान किया गया ।

मुसलमानी सभ्यता के बीच परदे की प्रथा के कारण नारीशिक्षा भारत में लुप्तप्राय हो गई । केवल अपवाद रूप से समृद्ध मुसलमान परिवार की महिलाएँ ही घर पर शिक्षा ग्रहण करती थीं । इन में नूरजहाँ, जहाँआरा तथा जेबुन्निसा के नाम प्रसिद्ध हैं । हिंदुओं में बालविवाह, सती की प्रथा इत्यादि कारणों से बहुसंख्यक नारियाँ शिक्षा से वंचित रहीं ।

भारत में १९वीं शताब्दी में प्राय: सभी शैक्षिक संस्थाएँ जनता में नेतृत्व करनेवाले व्यक्तियों द्वारा संचालित थीं । इनमें कुछ अँग्रेज व्यक्ति भी थे । इस समय राजा राममोहन राय ने बाल विवाह तथा सती की प्रथा को दूर करने का अथक परिश्रम किया । इन कुप्रथाओं के दूर होने से नारीशिक्षा को प्रोत्साहन मिला । ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने बंगाल में कई स्कूल लड़कियों की शिक्षा के लिए खोले ।

सन् १८८२ के भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर कमीशन) के अनुसार भारत सरकार की ओर से शिक्षिका प्रशिक्षण का प्रबंध हुआ । आयोग ने नारीशिक्षा के संबंध में अनेक उत्साहवर्धक सुझाव प्रस्तुत किए किंतु धर्मपरिवर्तन का भय -रहने के कारण सुझाव अधिक कार्यान्वित न हो सके । १९वीं शताब्दी के अंत तक भारत में कुल १२ कॉलेज, ४६७ स्कूल तथा ५६२८ प्राइमरी स्कूल लड़कियों के लिए थे । संपूर्ण भारत में छात्राओं की संख्या ४,४४,४७० थी । शताब्दी के अंत तक शनै: शनै: नारियाँ उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हो रही थीं किंतु उनमें सुसलमान छात्राओं का अभाव था ।

१९वीं शताब्दी में इंग्लैड, फ्रांस तथा जर्मनी में लड़कियों के लिए अनेक कॉलेज खुल चुके थे । इंग्लैड में लड़कियों को लड़कों के ही समान शिक्षा देने की चेष्टा की जा रही थी किंतु १९ वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैड में यह योजना बनाई गई कि नारीशिक्षा की समस्त शाखाओं को पाठक्रम में स्थान दिया जाए । इसे किंग्स कॉलेज लंदन के एफ. डी. मॉरिस तथा अन्य लोगों ने बहुत बढ़ावा दिया ।

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