Hindi, asked by Anonymous, 1 year ago

essay on pandit din dayal upadhay in hindi


Anonymous: Thanx
yusuf6243: ur welcome

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Answered by yusuf6243
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पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ( जन्म: २५ सितम्बर १९१६–११ फ़रवरी १९६८) महान चिन्तक और संगठनकर्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी।
उपाध्यायजी नितान्त सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उनके हिंदी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। केवल एक बैठक में ही उन्होंने चन्द्रगुप्त नाटक लिख डाला था।
Answered by prachi106
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उनका जन्म 1916 को दीनदयाल धाम के पास वाले चंद्रभान गाँव में हुआ जो मथुरा से 26 किलोमीटर दूर है। उनके पिता भगवती प्रसाद एक जाने-माने ज्योतिषी थे और उनकी माँ श्रीमती रामप्यारी धार्मिक महिला थी। युवावस्था में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी और इसके बाद उनके अंकल ने उनका पालन-पोषण किया। अपने अंकल और आंटी के साथ रहते हुए उन्होंने अपनी पढाई भी पूरी की।

सीकर में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और फिर उन्होंने राजस्थान से मेट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद बोर्ड परीक्षा में वे प्रथम आए और सीकर के महाराजा कल्याण सिंह ने उन्हें स्वर्ण पदक देकर सम्मानित भी किया और उन्हें 10 रुपये की मासिक शिष्यवृत्ति भी दी जाती और उनकी किताबो के लिए उन्हें अतिरिक्त 250 रुपये दिए गए।

इसके बाद पिलानी में बिरला कॉलेज से उन्होंने इंटरमीडिएट की पढाई पूरी की, वर्तमान बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस का यह प्राचीन नाम था। इसके बाद 1939 में कंपुरिन के सनातन धर्म कॉलेज से उन्होंने बी.ए. की पढाई पूरी की और वही से फर्स्ट डिवीज़न में ग्रेजुएशन की पढाई भी पूरी कर ली। इसके बाद वे आगरा के सेंट जॉन कॉलेज में दाखिल हुए और वहाँ से अंग्रेजी साहित्य में उन्होंने मास्टर डिग्री हासिल की और इसके लिए उन्हें स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया गया।
इसके बाद उनके अंकल ने उन्हें प्रोविंशियल सर्विस परीक्षा में बैठने की सलाह दी और उनकी नियुक्ति भी की गयी, लेकिन राजनितिक लक्ष्य होने की वजह से उन्होंने वहाँ काम करने से मना कर दिया था। इसके बाद प्रयाग से उन्होंने बी.एड और एम्.एड की पढाई पूरी की।

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