essay on parvo ka badalta swaroop
Answers
Answered by
75
त्योहारों का बदलता स्वरुप
इस विषय से संबंधित हम आपको कुछ बिन्दु दे रहे हैं। इस विषय पर आप इस तरह से निबंध लिख सकते हैं-
१. भूमिका में त्योहारों का जीवन में महत्व का वर्णन कीजिए।
२. विषय विस्तार में पहले के समय में और आज के समय में पर्वों को मनाने के तरीके में आए अंतर को स्पष्ट कीजिए। आप इसके अंदर इस तरह से लिख सकते हैं- पहले के समय में लोगों में त्योहारों को लेकर विशेष उत्साह रहता था। स्त्रियाँ चूंकि घर में रहकर परिवार की देखभाल करती थीं, तो पर्वों को लेकर विशेष रूप से उत्साहित रहती थी। महीने पहले ही घर के लिए नई-नई चीज़ें बनाई जाती थी। एक हफ्ते पहले ही खाने-पीने हेतु तैयारी घर पर स्वयं करती थीं तथा बनाती भी स्वयं थी। इस दिन लोग सभी घरों में रहकर पर्वों को मनाते थे। सारे एक दूसरे के घर जाते और मिल-जुलकर पर्वों का आनंद उठाते थे। परन्तु समय बदलने के साथ ही पर्वों के स्वरूप में भी भारी अंतर आया है। चूंकि स्त्रियाँ भी काम करने लगी हैं। अतः नौकरों के द्वारा घर साफ करवा दिया जाता है। अब उनमें वह उत्साह दिखाई नहीं देता। कारण वह स्वयं बहुत थकी रहती हैं। बाहर से चीज़ें बनी-बनाई माँगा ली जाती हैं। लोग ज्यादात्तर घर से बाहर मनाना पसंद करते हैं। अब संबंधियों से मिलना प्रेम को बढ़ाना नहीं होता बल्कि कर्त्तव्यों का निर्वाह मात्र होता है। त्योहार में लोग बढ़-चढ़कर त्योहारों का आदान-प्रदान करते हैं, जो दिखावा मात्र होते हैं। सब अपनी मज़बूत आर्थिक स्थिति को दिखाना चाहते हैं। आजकल की पीढ़ियों में अपने पर्वों के लिए उत्साह समाप्त हो गया है। उन्हें पाश्चात्य सभ्यता से जुड़े त्योहार अधिक प्रिय लगते हैं। त्योहारों में अब वह प्रेम, उत्साह, संस्कृति के प्रति सम्मान समाप्त होता जा रहा है।
इस विषय से संबंधित हम आपको कुछ बिन्दु दे रहे हैं। इस विषय पर आप इस तरह से निबंध लिख सकते हैं-
१. भूमिका में त्योहारों का जीवन में महत्व का वर्णन कीजिए।
२. विषय विस्तार में पहले के समय में और आज के समय में पर्वों को मनाने के तरीके में आए अंतर को स्पष्ट कीजिए। आप इसके अंदर इस तरह से लिख सकते हैं- पहले के समय में लोगों में त्योहारों को लेकर विशेष उत्साह रहता था। स्त्रियाँ चूंकि घर में रहकर परिवार की देखभाल करती थीं, तो पर्वों को लेकर विशेष रूप से उत्साहित रहती थी। महीने पहले ही घर के लिए नई-नई चीज़ें बनाई जाती थी। एक हफ्ते पहले ही खाने-पीने हेतु तैयारी घर पर स्वयं करती थीं तथा बनाती भी स्वयं थी। इस दिन लोग सभी घरों में रहकर पर्वों को मनाते थे। सारे एक दूसरे के घर जाते और मिल-जुलकर पर्वों का आनंद उठाते थे। परन्तु समय बदलने के साथ ही पर्वों के स्वरूप में भी भारी अंतर आया है। चूंकि स्त्रियाँ भी काम करने लगी हैं। अतः नौकरों के द्वारा घर साफ करवा दिया जाता है। अब उनमें वह उत्साह दिखाई नहीं देता। कारण वह स्वयं बहुत थकी रहती हैं। बाहर से चीज़ें बनी-बनाई माँगा ली जाती हैं। लोग ज्यादात्तर घर से बाहर मनाना पसंद करते हैं। अब संबंधियों से मिलना प्रेम को बढ़ाना नहीं होता बल्कि कर्त्तव्यों का निर्वाह मात्र होता है। त्योहार में लोग बढ़-चढ़कर त्योहारों का आदान-प्रदान करते हैं, जो दिखावा मात्र होते हैं। सब अपनी मज़बूत आर्थिक स्थिति को दिखाना चाहते हैं। आजकल की पीढ़ियों में अपने पर्वों के लिए उत्साह समाप्त हो गया है। उन्हें पाश्चात्य सभ्यता से जुड़े त्योहार अधिक प्रिय लगते हैं। त्योहारों में अब वह प्रेम, उत्साह, संस्कृति के प्रति सम्मान समाप्त होता जा रहा है।
Similar questions