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essay on plastic mukta bharat

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Answered by suyash9621
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Sansar Lochan

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[SANSAR EDITORIAL] प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग से प्रदूषित हो रहा पर्यावरण

Sansar LochanJune 6, 2018Sansar Editorial 2018Leave a Comment

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1 दैनिक जीवन में प्लास्टिक का आक्रमण

2 प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग

3 प्रदूषित होता समुद्र

4 Statistics

5 प्लास्टिक का वर्गीकरण

6 प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के तरीके

विश्व पर्यावरण दिवस की वैश्विक मेजबानी इस बार भारत को मिली है और हमारे कन्धों पर अब दुनिया को प्लास्टिक से मुक्त बनाने की जिम्मेदारी है. आज हम प्लास्टिक के जानलेवा असर की बात करेंगे. प्लास्टिक हमारी जिंदगी का आवश्यक हिस्सा बन चुका है. प्लास्टिक ने हमारा जीवन जितना आसान किया है उतना ही इसकी वजह से हमें कई मुश्किलों का सामना कर पड़ रहा है. प्लास्टिक का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में रोज जाने-अनजाने करते रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लास्टिक हमारे जीवन के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है. खासकर वह प्लास्टिक जिसे एक बार इस्तेमाल करके फेक दिया जाता है जिसमें थैलियाँ, पैकेजिंग और पानी की बोतलें शामिल होती हैं. अगर हमने प्लास्टिक के अति-प्रयोग को रोका नहीं तो शायद प्लास्टिक किसी दिन हमारे अंत की वजह भी बन जाएगा.

दैनिक जीवन में प्लास्टिक का आक्रमण

हर इंसान प्लास्टिक का किसी न किसी रूप में प्रयोग जरुर कर रहा है. हवा, पानी के अलावा जो चीज हमारे जीवन पर सबसे अधिक असर डाल रही है वह है प्लास्टिक. अक्सर हमारे दिन की शुरुआत प्लास्टिक से बनी कुर्सी पर बैठकर, प्लास्टिक की मेज पर प्लास्टिक के प्लेट में परोसे गए नाश्ते से होती है. हम जिस कार या वाहन में घर से निकलते हैं, उसे बनाने में प्लास्टिक का अच्छा-खासा इस्तेमाल होता है. दफ्तर पहुँच कर जिस कंप्यूटर पर हम काम करते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा प्लास्टिक है. यहाँ तक जिस की-बोर्ड से मैं टाइप कर रहा हूँ, वह भी प्लास्टिक का ही बना है. प्लास्टिक यानी पोलिमर की लोकप्रियता की वजह इसकी सरलता से उपलब्धता, कम कीमत, अधिक टिकाऊपन और हल्का वजन है. इसके अलावा आसानी से इसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है. इस पर हवा, पानी या मौसम असर नहीं करते. यह न आसानी से टूटता है और न गलता है. लेकिन सच मानिए तो इसकी विशेषता ही आज पूरे पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो रही है.

प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग

1950 में दुनिया-भर में प्लास्टिक उत्पादन 1.5 million टन था. 2015 आते-आते यह 322 million टन हो गया. यह हर साल औसतन 8.6% की दर से बढ़ रहा है. पिछले कुछ वर्षों में जैसे-जैसे प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ा है, वैसे-वैसे इसकी वजह से दिक्कतें भी बढ़ी हैं. हमारे मोहल्ले की नालियाँ और नहरें प्लास्टिक से भरे पड़े हैं. पशु-पक्षी और जलीय प्राणी इसकी कीमत चुका रहे हैं. जलीय जीवन, पर्यावरण और पारिस्थितिकी को प्लास्टिक से जो नुक्सान हो रहा है उसकी भरपाई कर पाना अब मुश्किल प्रतीत हो रहा है. खासकर समुद्री जल को इससे बेहद ज्यादा नुक्सान हुआ है. समुद्र में पन्नी, पैकेजिंग और बोतल के अलावा मछुवारों के जाल, मशीनों के टुकड़े और खिलौनों के ढेर तैर रहे हैं. जल के बहाव के साथ इकट्ठे हुए प्लास्टिक के ढेर किसी बड़े टापू से नजर आते हैं. इसके आलावा पानी में माइक्रो-प्लास्टिक भी हैं जो आसानी से नजर नहीं आते. आशंका जताई जा रही है कि 2050 तक समुद्र में 850 metric ton प्लास्टिक कचड़ा इकठ्ठा हो जायेगा. 2050 में सभी समुद्र और महासागरों में मौजूद मछलियों का अनुमानित वजन सिर्फ 821 million metric ton ही रह जाएगा. यानी समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक की मात्रा होगी. अर्थात् हम एक ऐसे प्लास्टिकमय भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ हम धरती में बिखरे प्लास्टिक की ढेर में हम दफन हो जायेंगे.

प्रदूषित होता समुद्र

प्लास्टिक अपने उत्पादन से लेकर इस्तेमाल तक सभी अवस्थाओं में पर्यावरण और समूचे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है.

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