Essay on prakriti ek maa in hindi about 250 words
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हम ब्रह्माण्ड के सबसे सुंदर ग्रह पर निवास करते हैं। जिसे हम अनेक नामों से पुकारते हैं। जैसे कि पृथ्वी, धरा, धरती आदि। हमारी इस धरती की सुंदरता ‘प्रकृति’ की वजह से है। जैसे एक बच्चा जन्म लेता और अपनी माँ की गोद और उसके आँचल के साये में पलकर बड़ा होता है वैसे ही मानव भी इस धरती पर ‘प्रकृति’ की गोद में और उसके आँचल के साये में पलकर बड़ा होता है इस कारण ‘प्रकृति’ हमारे लिये ‘माँ’ ही है।
‘प्रकृति’ हमें वो सब देती है जो एक ‘माँ’ अपने बच्चे को देती है। ‘माँ’ बिना किसी स्वार्थ को अपने बच्चे पर अपनी सब कुछ न्योछावर कर देती है और बदले में कुछ भी नही मांगती बस ये आशा करती है कि बच्चा समझदार होने पर उसका ध्यान रखे।
‘प्रकृति’भी निःस्वार्थ भाव से हमें अपना सबकुछ दे देती है। ये रोशनी, हवा, पानी, नदी, समुद्र, झरने, पहाड़, पेड़-पौधे, मिट्टी, सर्दी, गर्मी, बरसात सबकुछ ‘प्रकृति’ हमें बिना किसी भेद-भाव के प्रदान करती है।
‘प्रकृति’ हमें अपने सारे संसाधन उपलब्ध कराती है एक ‘माँ’ की तरह लालन-पालन करती है। जैसे कोई ‘माँ’अपने बच्चों में कोई भेद नही करती वैसे ‘प्रकृति’ भी अपने संसाधन हमें देने में कोई भेद नही करती है।
दुख की बात ये है कि हम मानव स्वार्थी हो गये हैं। हम ‘प्रकृति’ द्वारा हम पर किये गये उपकारों को भूल जाते हैं। प्रकृति जितना हमें देती है बदले में हम उसका उतना ध्यान नही रखते है। हम प्रकृति के संसाधनों का पूरी तरह से दोहन कर तो लेते हैं पर ये इस बात की चिंता नही करते कि ये संसाधन सीमित मात्रा में हैं और इनका इस तरह से उपयोग करें ये संसाधन सदैव कायम रहें।
हम मानव ही प्रकृति का स्वरूप बिगाड़ने में लगे हुये हैं। हम ये नही देखते कि हमें भी अपनी इस प्रकृति रूपी ‘माँ’ का ध्यान रखना है ताकि ये हमेशा हम अपनी स्नेह बरसाती रहे।
बड़े दुख की बात है कि मानव द्वारा तकनीक आदि के विकास के कारण हमें कृत्रिम जीवनशैली की तरफ ज्यादा अग्रसर हो गयें हैं और अपनी तथाकथित विकासरूपी महत्वाकांक्षाओं के कारण के कारण प्रकृति को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं।
इसी कारण ये ‘प्रकृतिरूपी माँ’ भी हम पर कुपित हो रही है और जिसके कारण असामान्य व अस्वभाविक भौगोलिक घटनायें बढ़ती जा रही हैं।
अब समय आ गया है कि मानव संभल जाये और वह अपनी इस ‘प्रकृतिरूपी माँ’ का मूलस्वरूप न बिगाड़े और एक संतान की तरह उसका पूरा ध्यान रखे नही तो एक दिन ऐसा आयेगा कि ‘प्रकृति’ हम पर पूरी तरह रुष्ट हो जायेगी तब हमारे पास बचने का भी अवसर नही होगा।
Answer:
प्रकृति एक माँ
सम्पूर्ण विश्व में अलग अलग तरह के लोग रहते हैं | अलग अलग तरह की संस्कृति अपनाई जाती है | कहीं पर ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं तो कहीं पर बिलकुल समतल मैदान हैं | हर स्थान में भिन्न प्रकार की जलवायु, पानी, हवा इत्यादि पाए जाते हैं | कहीं पर रेगिस्तान के बड़े बड़े पहाड़ हैं तो कहीं पर समुंद्र तटीय इलाके हैं | कहीं पर सोने की खाने हैं तो कहीं हीरे की , कहीं पर कोयला अधिकता में पाया जाता है तो कहीं पर तेल के कुंए | ये सब प्रकृति के ही देन है |
प्रकृति ने विश्व में इन सब संसाधनों का संतुलन बना कर रखा है | सम्पूर्ण विश्व इस संशाधनो का सदुपयोग करता आ रहा है | इनके लिए हम प्रकृति के आभारी हैं | जहाँ पर इन संसाधनों की अधिकता है बहाँ के लोग उनको बेच कर अपना पालन पोषण कर रहे हैं | संपूर्ण विश्व को प्रकृति की ये देन किसी माँ द्वारा अपने बच्चे के लिए किये गए पालन पोषण के कम नहीं है | प्रकृति ने बादल, बारिश, पानी, हवा इत्यादि संसाधन विश्व को प्रचुर मात्रा में दिए हैं |
प्रकृति के प्रति हमारे भी कुछ कर्तव्य बनते हैं कि ख़त्म हो रहे इन संसाधनों का उपयोग आवश्यकता अनुसार ही करें | आज ये स्थिति बन चुकी है कि इंधन जैसे पैट्रोल, डीजल, मिटटी का तेल का उपयोग हमारे द्वारा बहुत ही ज्यादा किया जा रहा है| कुछ ही सालों में यह संसाधन ख़त्म होने वाले हैं अत: हमें इनके दुरूपयोग पर रोक लगाना बहुत ही जरूरी है |
आओ हम सब प्रण लें कि इन सब संसाधनों का दुरूपयोग नहीं करेंगे व अपनी माँ रूपी प्रकृति के रक्षा करेंगे |