Essay on problems and solutions of water in hindi
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दरअसल, पहले गांवों में वर्षा जल संचयन परंपरा का एक अभिन्न अंग हुआ करता था। लोग पानी की बर्बादी को पाप समझते थे। लेकिन तीव्र गति से हो रहे नगरीकरण की चपेट में गांवों के आने के कारण वर्षा जल संचयन की प्रवृत्ति भी अब हवा में उड़ती नजर आने लगी है।
गौरतलब है कि दुनिया के सर्वाधिक बारिश होने वाले क्षेत्रों में भारत भी है, यहां हर वर्ष बर्फ पिघलने और वर्षा जल के रूप में औसतन 4000 अरब घन मीटर पानी प्राप्त होता है, जबकि यह देश वर्षा जल का 1869 अरब घनमीटर (मतलब सिर्फ 46 प्रतिशत) पानी का उपयोग कर पाता है, बाकी 54 प्रतिशत पानी व्यर्थ में बहकर नदी-नालों के द्वारा समुद्र में चला जाता है।
मणिपुर से भी छोटे इजराइल जैसे देशों में जहां वर्षा का औसत 25 से.मी. से भी कम है, वहां भी जीवन चल रहा है। वहां जल प्रबंधन तकनीक अति विकसित होकर जल की कमी का आभास नहीं होने देती, अपितु कृषि से कई बहुमूल्य उत्पादों का निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है, तो ये कार्य भारत क्यों नहीं कर सकता!
बारिश के पानी को विभिन्न स्त्रोतों व प्रकल्पों में सुरक्षित व संग्रहित रखना व करना वर्षा जल संचयन कहलाता है। वर्षा जल संचयन वर्षा जल के भंडारण को संदर्भित करता है, ताकि जरूरत पड़ने पर बाद में इसका उपयोग किया जा सके। इस तरह व्यापक जलराशि को एकत्रित करके पानी की किल्लत को कम किया जा सकता है।
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