essay on rajniti me brashtachar in hindi
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भ्रष्टाचार और राजनीति का एक गहरा संबंध है । जहां हम विकास की एक नई गाथा को रचने का सपना संजोए हुए हैं वहीं दुनिया के सामने हमारी गरीबी की सच्चाई को स्लमडॉग मिलेनियर जैसी फिल्मों के सहारे परोसा जा रहा है । आज हम भ्रष्टाचार के मामले में बंग्लादेश, श्रीलंका से भी आगे हैं ।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह सांसद मधुकोड़ा का मामला भ्रष्टाचार के मामले में सामने आया है । जिसमें ४ हजार करोड़ के घपले का पता चला है । कोड़ा का नाम भी उन राजनेताओं में जुड़ गया है जो भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाये गए हैं या घिरे हुए हैं । भ्रष्टाचार को फैलाने वाले राक्षस सत्ता में आसीन राजनीति के शीर्ष नेता हैं इसकी शुरूआत भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय से ही हो गई थी । १९५६ में खाद्यान्न मंत्रालय में करोड़ों रूपये की गड़बड़ी पकड़ी गई । जिसे सिराजुद्दीन काँड के नाम से जाना जाता है । उस समय केशवदेव मालवीय खाद्यान्न मंत्री थे उन्हें दोषी पाया गया । १९५८ में भारतीय जीवन बीमा में मुंधरा काँड हुआ जिसकी फिरोज गाँधी ने पोल खोली थी । १९६४ में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए “संथानम कमिटी” का गठन किया गया । इसने प्रशासन में बढ़ते भ्रष्टाचार की ओर संकेत किया था । इंदिरा गाँधी के समय में भ्रष्टाचार राजनीति में गहरी पैठ जमा चुकी थी । १९८० में “कुंआ तेल-कांड” १९८२ ,में “अंतुले प्रकरण कांड” १९८२ में ही “चुरहट लॉटरी कांड” प्रमुख है ।
१९८७ में हुए ‘बोर्फोस कांड’ ने तो राजीव गाँधी की कुर्सी हिलाकर रख दी थी । राजीव गाँधी को एक सार्वजनिक सभा में कहने के लिए विवश होना पड़ा कि “विकास कार्यों के मद में खर्च होने वाली राशि का मात्र १५ फीसदी हिस्सा ही सही व्यक्ति तक पहुँच पाता है । आज कई मामले ऐसे हैं जो न्यायालय में लंबित हैं या चल रहे हैं जिनमें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का नोट के बदले वोट का मामला बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का चारा घोटाला मामला (९९० करोड़) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मायावती का ताजकेरीडोर घोटाला ( १७५ करोड़) प्रमुख है । इसके अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पर ७८ करोड़, पंजाब के ही मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह पर १५०० करोड़ केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री ए राजा पर २०० करोड़ के घोटाले चल रहे हैं । इन घोटाले में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता भी शामिल हैं । सुप्रीम कोर्ट के फटकार के बाद उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री का मामला आगे नहीं बढ़ रहा है ।
पैसे लेकर सवाल पूछने पर कई नेता सामने आ चुके हैं । संसद भवन में नोट के बदले वोट के लिए पैसों की गड्डियां लहराई जाती हैं पर पता नहीं चल पाता है कि यह पैसा कहां से आया है । घोटाले का मुख्य स्रोत सरकारी खजाना है जिसे राजनेता प्रशासनिक अफसरों की मिली भगत से लुटाते हैं । हमारा संविधान इतना लचीला है कि एक तरफ सरकारी कर्मचारी पर आरोप लगते ही उसे निलंबित कर दिया जाता है दूसरी तरफ राजनेता आराम से अपने पद पर बने होते हैं । आखिर यह दो नीति क्यों?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह सांसद मधुकोड़ा का मामला भ्रष्टाचार के मामले में सामने आया है । जिसमें ४ हजार करोड़ के घपले का पता चला है । कोड़ा का नाम भी उन राजनेताओं में जुड़ गया है जो भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाये गए हैं या घिरे हुए हैं । भ्रष्टाचार को फैलाने वाले राक्षस सत्ता में आसीन राजनीति के शीर्ष नेता हैं इसकी शुरूआत भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय से ही हो गई थी । १९५६ में खाद्यान्न मंत्रालय में करोड़ों रूपये की गड़बड़ी पकड़ी गई । जिसे सिराजुद्दीन काँड के नाम से जाना जाता है । उस समय केशवदेव मालवीय खाद्यान्न मंत्री थे उन्हें दोषी पाया गया । १९५८ में भारतीय जीवन बीमा में मुंधरा काँड हुआ जिसकी फिरोज गाँधी ने पोल खोली थी । १९६४ में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए “संथानम कमिटी” का गठन किया गया । इसने प्रशासन में बढ़ते भ्रष्टाचार की ओर संकेत किया था । इंदिरा गाँधी के समय में भ्रष्टाचार राजनीति में गहरी पैठ जमा चुकी थी । १९८० में “कुंआ तेल-कांड” १९८२ ,में “अंतुले प्रकरण कांड” १९८२ में ही “चुरहट लॉटरी कांड” प्रमुख है ।
१९८७ में हुए ‘बोर्फोस कांड’ ने तो राजीव गाँधी की कुर्सी हिलाकर रख दी थी । राजीव गाँधी को एक सार्वजनिक सभा में कहने के लिए विवश होना पड़ा कि “विकास कार्यों के मद में खर्च होने वाली राशि का मात्र १५ फीसदी हिस्सा ही सही व्यक्ति तक पहुँच पाता है । आज कई मामले ऐसे हैं जो न्यायालय में लंबित हैं या चल रहे हैं जिनमें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का नोट के बदले वोट का मामला बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का चारा घोटाला मामला (९९० करोड़) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मायावती का ताजकेरीडोर घोटाला ( १७५ करोड़) प्रमुख है । इसके अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पर ७८ करोड़, पंजाब के ही मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह पर १५०० करोड़ केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री ए राजा पर २०० करोड़ के घोटाले चल रहे हैं । इन घोटाले में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता भी शामिल हैं । सुप्रीम कोर्ट के फटकार के बाद उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री का मामला आगे नहीं बढ़ रहा है ।
पैसे लेकर सवाल पूछने पर कई नेता सामने आ चुके हैं । संसद भवन में नोट के बदले वोट के लिए पैसों की गड्डियां लहराई जाती हैं पर पता नहीं चल पाता है कि यह पैसा कहां से आया है । घोटाले का मुख्य स्रोत सरकारी खजाना है जिसे राजनेता प्रशासनिक अफसरों की मिली भगत से लुटाते हैं । हमारा संविधान इतना लचीला है कि एक तरफ सरकारी कर्मचारी पर आरोप लगते ही उसे निलंबित कर दिया जाता है दूसरी तरफ राजनेता आराम से अपने पद पर बने होते हैं । आखिर यह दो नीति क्यों?
sherlingeorge55:
thank u
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भारत में भ्रष्टाचार चर्चा और आन्दोलनों का एक प्रमुख विषय रहा है। आजादी के एक दशक बाद से ही भारत भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा नजर आने लगा था और उस समय संसद में इस बात पर बहस भी होती थी। 21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ राममनोहर लोहिया ने जो भाषण दिया था वह आज भी प्रासंगिक है। उस वक्त डॉ लोहिया ने कहा था सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है।[1]
भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था और प्रत्येक व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भारत में राजनीतिक एवं नौकरशाही का भ्रष्टाचार बहुत ही व्यापक है। इसके अलावा न्यायपालिका, मीडिया, सेना, पुलिस आदि में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है।
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