Hindi, asked by rani118, 1 year ago

essay on Rani laxmibai in hindi

Answers

Answered by kashvi16
1
भारत भूमि पर मर मिटने वालों में अग्रणी महारानी लक्ष्मीबाई का नाम कौन नहीं जानता। भारत भूमि पर केवल वीर पुरूषों ने ही जन्म नहीं लिया वरन वीर नारियों ने भी जन्म लिया हैँ ऐसी ही नारियों में अग्रणी थी महारानी लक्ष्मीबाई।
महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 13 नवंबर 1835 ई0 को वाराणसी में हुआ। आपके पिता का नाम मोरोपंत तांबे एवं माता का नाम भागीरथी देवी था। लक्ष्मीबाई का बाल्यकाल का नाम मनुबाई था। माताश्री भागीरथी देवी धर्म और संस्कृति की साक्षात् प्रतिमूर्ति थीं अतः उन्होंने ने बचपन में मनुबाई को बहुत-सी धार्मिक सांस्कृतिक और शौर्यपूर्ण कथाऐँ सुनाई थी। उससे बालिका मनुबाई का अंतःकरण और ह्रदय उच्च और महान उज्जवल गुणों से भरता गया था। स्वदेश-प्रेम और वीरता के गुण कोमल मन में कूट-कूटकर भरे हुए थे। अभी मनुबाई छह वर्ष की थी कि तभी माताश्री का देहावसान हो गया। मनुबाई का लालन-पालन बाजीराव पेशवा के संरक्षण में हुआ। मनु-पेशवा बाजीराव के पुत्र नाना साहब के साथ खेलती थी और स्वभाव से नटखट-चंचल थी इसी कारण सभी आपको छबीली कहते थे। मोरे पंत (मनुबाई के पिता) पेशवा बाजीराव के यहाँ नौकर थे।

लक्ष्मीबाई बचपन से पुरूषों के योग्य खेलों में अधिक रूचि लेती थी। आपने घुड़सवारी तीर–कमान चलाना तलवार चलाना आदि कौशल बचपन से ही सीख लिए थे। नाना साहब के पुरूषों जैसे वस्त्र पहनकर व्यूह-रचना करने में छबीली ने अधिक रूचि ली। अस्त्र-शस्त्र विद्या में वह शीघ्र ही निपुण हो गई।

कुछ बड़ी होने पर मनुबाई का पाणिग्रहण संस्कार झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। मनुबाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई। आप को कुछ समय पश्चात् पुत्र की प्राप्ति भी हुई पर पुत्र तीन माह के भीतर ही मृत्यू को प्राप्त हो गया। अधिक उम्र तक पुत्र न होने तथा पुत्र-मृत्यु के दुःख से  राजा गंगाधर राव की भी मृत्यू हो गई काफी समय तक महारानी भी वियोग में डूबी रही और विविश होकर रानी ने दामोदर राव को गोद ले लिया। लॉर्ड डलहौजी ने महारानी के दत्तक पुत्र को मान्यता नहीं दी और झाँसी को सैन्य शक्ति के बल पर अँगरेजी राज्य में मिलाने का आदेश दे दिया। महारानी को यह सहन नहीं हुआ और उन्होंने झाँसी को अँगरेजो को देने से मना कर दिया। उन्होंने साफ-साफ कहा- ‘झाँसी हमारी है में अपनी झाँसी अँगरेजों को नहीं दूँगी।’
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी ।

खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ।। महारानी लक्ष्मीबाई वीरांगना होने के साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थी। महारानी का ह्रदय आँगरेजों के प्रति घृणा से भर गया था और वह उलसे बदला लेने के लिए ठीक समय और अवसर की तलाश में थी। भारत की सभी रियासतों के राजाओं और नवाबों को जिनकी रियासतों को अँगरेजों ने अपने राज्य में मिला लिया था एकजुटकर रानी अँगरेजों से भिड़ने के लिए तैयार हो गई। रानी अंतिम साँस तक अदम्य साहस एवं शौर्यपूर्वक लड़ती रही तथा स्वतंत्रता के यज्ञ-कुंड में अपनी आहुति दे डाली।

Similar questions